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तीलू रौतेली पुरस्कार से सम्मानित होंगी बेटी बबीता रावत

स. सम्पादक शिवाकान्त पाठक

जिद और हौंसलो से पहाड़ की बंजर भूमि में दिखलाई स्वरोजगार की राह..
ग्राउंड जीरो से संजय चौहान।
राज्य सरकार द्वारा विभिन्न क्षेत्रों में में उल्लेखनीय कार्य करने वाली महिलाओं का चयन प्रतिष्ठित तीलू रौतेली पुरस्कार के लिए किया गया। बृहस्पतिवार को महिला सशक्तीकरण एवं बाल विकास राज्यमंत्री रेखा आर्या ने वर्ष 2019-20 के लिए दिए जाने वाले इन पुरस्कारों के नामों की घोषणा की। 2019-20 के लिए 21 महिलाओं को तीलू रौतेली पुरस्कार और 22 आंगनबाड़ी कार्यकर्ताओं को भी अच्छा कार्य करनें के लिए पुरस्कृत किया गया!

8 अगस्त को इन महिलाओं को वर्चुअल माध्यम से पुरस्कृत किया गया । तीलू रौतेली पुरस्कार के लिए चयनित महिलाओं को 21 हजार की धनराशि और प्रशस्ति पत्र दिया जाता है जबकि आंगनवाड़ी कार्यकर्ती को दस हजार की धनराशि और प्रशस्ति पत्र दिया जाता है।

इसी सूची में एक नाम है बबिता रावत का, रूद्रप्रयाग जनपद के सौड़ उमरेला गाँव की बबीता रावत का चयन बंजर भूमि को उपजाऊ बनाकर उसमें सब्जी उत्पादन, पशुपालन, मशरूम उत्पादन के जरिए आत्मनिर्भर माॅडल को हकीकत में बदलने के लिये तीलू रौतेली पुरस्कार के लिए किया गया है।

गौरतलब है कि बबीता रावत के संघर्ष और उनकी कहानी पहाड़ की महिलाओं और युवतियों के लिए प्रेरणादायी है। आर्थिक तंगी और संघर्षों नें बबिता को जिंदगी के असल मायनों से रूबरू करवाया लेकिन बबिता नें कभी हार नहीं मानी। जिद और बुलंद हौंसलों से बबिता नें अपना मुकाम खुद हासिल किया है। रूद्रप्रयाग जनपद के सौड़ उमरेला गाँव की बबीता रावत के पिताजी सुरेन्द्र सिंह रावत के जिम्में उसके सात भाई बहिनों समेत नौ सदस्यों के परिवार की भरण पोषण की जिम्मेदारी थी। लेकिन 2009 में अचानक बबीता के पिताजी का स्वास्थ्य खराब होने से परिवार के सामने आर्थिक तंगी आ खड़ी हुई थी। परिवार का गुजर बसर खेती से बस किसी तरह से बमुश्किल से चल रहा था। ऐसी विपरीत परिस्थितियों मे भी बबीता का हौंसला नहीं डिगा, बबीता नें हार नहीं मानी और खुद अपनी किस्मत बदलने के लिए खेंतो में हल चलाया। उस समय बबीता की उम्र महज 13 बरस की थी। बबीता हर रोज सुबह सबेरे अपने खेतों में हल लगाने के बाद पांच किमी दूर पैदल इण्टर काॅलेज रूद्रप्रयाग में पढ़ाई करने के लिए जाती थी और साथ में दूध बेचने के लिए भी लाती थी। जिससे परिवार का खर्चा आसानी से चलने लगा था।

धीरे धीरे बबीता नें सब्जियों का उत्पादन भी शुरू किया और पिछले दो सालों से उपलब्ध सीमित संसाधनों से वो मशरूम उत्पादन का भी कार्य कर रही है। जिससे बबीता को अच्छी आमदनी मिल जाती। रात दिन मेहनत करके बबीता नें पूरे परिवार की जिम्मेदारी, पिताजी की दवाई सहित खुद की एम0ए0 तक की पढाई का खर्चा भी वहन किया और अपनी तीन बहिनों की शादियां भी सम्पन्न करवाई। बबीता नें विपरीत पारिस्थतियों में भी स्वरोजगार के जरिये परिवार को आर्थिक तंगी से उभारने का जो कार्य किया है वो वाकई अनुकरणीय तो है ही अपितु प्रेरणादायक भी है। बबीता नें अपनी बंजर भूमि में खुद हल चलाकर उसे उपजाऊ बनाया और उसमें सब्जी उत्पादन, पशुपालन, मशरूम उत्पादन के जरिए स्वरोजगार माॅडल को हकीकत में बदला। और इससे बबिता को अच्छी खासी आमदनी और मुनाफा हो जाता है। कोरोना वाइरस के वैश्विक संकट की इस आपातकालीन घडी में लाॅकडाउन के दौरान जहां अन्य युवाओं का रोजगार छिना वहीं बबिता रावत नें लाॅकडाउन के दौरान भी मटर, भिंडी, शिमला मिर्च, बैंगन, गोबी सहित विभिन्न सब्जियों का उत्पादन करके आत्मनिर्भर माॅडल को हकीकत में उतारा।

वास्तव में देखा जाए तो बबीता नें अपने बुलंद हौंसलो से अपनी किस्मत की रेखा को ही बदलकर रख दी। भले ही बबीता के गाँव सौड़ उमरेला के सामने बहने वाली अलकनंदा नदी में हर रोज हजारों क्यूसेक पानी यों ही बह जाता हो परंतु बबीता नें हर रोज विपरीत परिस्थितियों से लडकर और मेहनत कर माटी में सोना उगाया है। बबीता की संघर्षों की कहानी उन लोगों के लिए नजीर हैं जो किस्मत के भरोसे बैठे रहते है। कोरोना काल में घर वापस लौटे लोगों को बबिता से प्रेरणा लेनी चाहिए।

तुम्हारे साहस को हजारों सैल्यूट बबीता, तीलू रौतेली पुरस्कार के लिए चयनित होने पर हमारी ओर से ढेरों बधाइयाँ। तीलू रौतेली पुरस्कार के जरिए आपके धरातलीय कार्य पर मुहर लगी है। बबीता रावत को स्वरोजगार के लिए विभिन्न अवसरों पर सम्मानित किया जा चुका है जबकि दर्जनों पुरूष्कार भी मिल चुके हैं। आशा और उम्मीद करते हैं कि आने वाले समय में आपको हर रोज ऐसे ही अनगिनत सम्मान मिलते रहें।