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भस्मासुर से जान बचाकर यहां छिपे थे शिवजी, पचमढ़ी जाने बनाई थी सुरंग: MYTH

नई दिल्ली/भोपाल.श्रावण के महीने में शिवालयों में भगवान शंकर के दर्शन और पूजा के लिए भक्तों की भीड़ उमड़ रही है। देशभर में मौजूद कई शिवलिंग और मंदिर भक्तों की आस्था का केंद्र हैं। ऐसा ही एक प्राचीन शिवमंदिर मध्य प्रदेश के इटारसी के पास सतपुड़ा की वादियों के बीच मौजूद है। ये इकलौता मंदिर है जहां शिवलिंग पर सिर्फ सिंदूर चढ़ाया जाता है। पुराणों की मानें तो भस्मासुर राक्षस के कहर से बचने के लिए शिवजी ने तिलकसिंदूर धाम में आकर शरण ली थी। पचमढ़ी जाने के लिए मौजूद है सुरंग…
– मान्यता है कि शिवजी ने तिलकसिंदूर में लंबा वक्त गुजारा था। उन्होंने यहां से पचमढ़ी जाने के लिए एक सुरंग बनाई।
– पचमढ़ी में शिवजी के पांच मठ चौरागढ़, बड़ा महादेव, जटाशंकर, गुप्त महादेव और नागद्वारी मौजूद हैं। जहां गुफाओं में वे कई सालों तक रहे।
– मंदिर के पुजारियों का दावा है कि 80 KM लंबी सीक्रेट सुरंग आज भी मौजूद है। इससे पचमढ़ी पहुंचा जा सकता है।
– यहां आने वाले मनीष मौर्य ने बताया कि जान का खतरा होने और रास्ता दुर्गम होने से कोई इस रास्ते पर जाने की हिम्मत नहीं कर पाता है।

शिवजी ने मोहिनी रूप लेकर किया राक्षस का अंत

– शिवपुराण में कहा गया है कि भस्मासुर ने तपस्या कर शिवजी से वरदान ले लिया था।
– राक्षस को शक्ति मिली कि जिसके सिर पर वह हाथ रख देता, वो जलकर भस्म हो जाता था।
– लेकिन अपना दिया वरदान ही शिवजी के लिए काल बन गया। भस्मासुर ने भगवान को ही खत्म करने का मन बना लिया।
– शिवजी खुद को बचाते हुए तिलकसिंदूर में आकर छिपे और फिर गुप्त सुरंग बनाकर पचमढ़ी पहुंचे थे।
– भस्मासुर को खत्म करने के लिए शिवजी ने मोहिनी नाम की सुंदर महिला का रूप धारण किया।
– मोहिनी ने राक्षस को अपने जाल में फंसाया और उसका हाथ उसी के सिर पर रखवा दिया। इस तरह भस्मासुर का अंत हुआ।
कहां है मंदिर?
– तिलकसिंदूर मंदिर इटारसी जंक्शन से 18 किलोमीटर दूर सतपुड़ा की पहाड़ियों के बीच बना है।
– इस मंदिर में मौजूद शिवलिंग हजारों साल पुराना बताया जाता है।
– हजारों साल से आदिवासी राजा और भक्त भगवान शिव के धाम में पूजा करने आते रहे हैं।
महाशिवरात्रि पर लगता है मेला
– हरे-भरे पहाड़ और झरनों के बीच हर साल शिवरात्रि के मौके पर शिवधाम में मेला लगता है।
– हजारों की संख्या में भक्त मंदिर में मौजूद शिवलिंग का सिंदूर से अभिषेक करते हैं।
– आसपास के गांवों में रहने वाले आदिवासी लोग दो दिन के इस मेले में खरीददारी करते हैं।