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नेचुरल फार्मिंग से लहलहा रही धान की फसल

अमेठी। खाद बीज की समस्या और फसल में लगने वाले रोगों ने जहां किसानों का चौन उड़ा रखा है वहीं जीरो बजट खेती की तकनीक अपनाने वाले दामोदर शुक्ला के खेतों में रोगमुक्त धान की फसल लहलहा रही है। फसल देखकर लोगों को सहज विश्वास नहीं होता कि इसमें रासायनिक दवाओं या उर्वरकों का प्रयोग नहीं हुआ है। मुसाफिरखाना कस्बा निवासी दामोदर शुक्ला ने जीरो बजट की खेती की तकनीक आचार्य नरेंद्र देव विश्वविद्यालय कुमारगंज के कृषि वैज्ञानिक डॉक्टर एसपी सिंह से सीखकर इस बार अपने खेतों में प्रयोग की तो इसके सकारात्मक परिणाम दिखे। श्री शुक्ल बताते हैं कि जीरो बजट खेती नेचुरल फार्मिंग (प्राकृतिक खेती) है जिसका आधार गाय का गोबर, मूत्र और पत्तियों से तैयार होने वाला जीव-अमृत होता है। गाय के एक ग्राम गोबर में 3 से 5 सौ करोड़ ऐसे जीवाणु होते हैं जो खेतों की मिट्टी के लिए जरूरी होते हैं। उनका कहना है कि एक गाय पालने वाले किसान उसके अपशिष्टों से 30 एकड़ जैविक खेती कर सकता है जिसमें लागत घटने से आय बढऩा स्वाभाविक है। अपनी फसल दिखाते हुए दामोदर शुक्ला ने बताया कि उन्होंने देशी घर का बीज लेकर उसे बीजामृत से उपचारित कर नर्सरी डाली थी। खेत में घन जीवामृत डालकर रोपाई की थी। फसल न केवल रोगमुक्त है बल्कि उत्पादन भी अधिक होने के आसार हैं। श्री शुक्ल कहते हैं कि अगर किसान इस तकनीक को अपनाएं तो आय बढऩे के साथ रासायनिक उर्वरकों कीटनाशकों के प्रयोग से उत्पादित अनाज के सेवन से होने वाली बीमारियों से भी बचा जा सकता है। बीजामृत गाय के गोबर, मूत्र, चूने और पानी से तैयार किया गया वह घोल है जिसका प्रयोग बुवाई से पहले बीजों को उपचारित करने के लिए किया जाता है। इससे अंकुरण अच्छा होता है। घन जीवामृत से बढ़ता है उत्पादन-घन जीवामृत एक सूखी खाद है। इसे गाय के गोबर, गुड़ या फलों के गूदे, दाल के बेसन, खेत की जीवाणुयुक्त मिट्टी और गोमूत्र को मिलाकर बनाया जाता है।

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