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स्‍मृति‍ ने कहा- NCERT के नए सि‍लेबस में शामि‍ल होगा हैंड हाईजीन कोर्स: KGMU

लखनऊ. केन्‍द्रीय मानव संसाधन वि‍कास स्‍मृति‍ ईरानी ने कहा है कि‍ एनसीईआरटी के नए सि‍लेबस में हैंड हाईजीन कोर्स को शामि‍ल कि‍या जायेगा। जि‍ससे स्‍कूलों में पढने वाले बच्‍चे शुरू से ही स्‍वच्‍छता के प्रति‍ जागरूक हो सकेंगे। उन्‍होंने कहा है कि‍ जब नए सि‍लेबस तैयार कि‍ए जाएंगे तो उसमें इसे अवश्‍य शामि‍ल कि‍या जाएगा। एमएचआरडी मि‍नि‍स्‍टर की तरफ से यह घोषणा किंग जार्ज मेडि‍कल यूनि‍वर्सि‍टी के कुलपति‍ प्रो. रवि‍कांत की तरफ से दि‍ए गए सुझाव के बाद की गई है।
इस मौके पर स्‍मृति‍ ईरानी ने कुलपति‍ प्रो रवि‍कांत को एनसीईआरटी की कमेटी में शामि‍ल होने का नि‍मंत्रण भी दि‍या। शुक्रवार को राजधानी में एक कार्यक्रम में शि‍रकत करने आई एमएचआरडी मि‍नि‍स्‍टर की तरफ से यह बात किंग जार्ज मेडि‍कल यूनि‍वर्सि‍टी के साइंस कन्‍वेंशन सेंटर में मेडि‍कोज से मुखाति‍ब होने के दौरान कही गयी।
कुलपति‍ के प्रस्‍ताव को दि‍या समर्थन, कहा बच्‍चों को मि‍लेगी जानकारी
-कुलपति‍ प्रो रवि‍कांत ने संस्‍थान की प्रगति‍ रि‍पोर्ट रखते हुए सुझाव दि‍या कि‍ हैंड हाईजीन की तरफ बच्‍चों को पांच साल की उम्र से ही व्‍यवहारि‍क ज्ञान दि‍या जाना चाहि‍ए।
-उन्‍होंने कहा कि‍ हम डॉक्टरी के पहले व दूसरे साल में इस बात की शिक्षा नहीं दे सकते कि मरीजों से किस तरह बात की जाए और उनके साथ कैसा व्यवहार किया जाए।
-उन्‍होंने कहा कि‍ अगर स्कूली स्तर से ही बच्चों को इसका ज्ञान, स्‍वच्‍छता व हाईजीन के बारे में जानकारी दी जाय तो स्‍वच्‍छ भारत मि‍शन का सपना सफल हो सकता है।
-कार्यक्रम के दौरान स्‍मृति‍ ईरानी ने कुलपति‍ की सराहना करते हुए कहा कि‍ नये सलेबस तैयार करते समय इसे शामि‍ल कि‍या जायेगा।
-उन्‍होंने कहा कि‍ एनसीईआरटी जब स्कूलों के लिए नए पाठ्यक्रम तैयार करेगा तो वह इस बात का ध्यान रखेगा कि स्कूली बच्चों को कक्षा पांच से ही हाथ धोने, हाईजीन का ख्‍याल रखने, लोगों से बात करने व किसी की मदद करने के गुणों का भी ज्ञान दिया जा सके।
-उन्‍होंने आश्‍वासन दि‍या कि‍ इस प्रकार के कोर्स नये सलेबस में शामि‍ल कि‍ये जायेंगे।
-उन्‍होंने प्रो रवि‍कांत को एनसीईआरटी की कमेटी में शामि‍ल होने का नि‍मंत्रण भी दि‍या।
रि‍सर्च पर जताई चिंता, कहा डीयू के एक रि‍सर्च में टीबी की जांच प्रेगनेंसी कि‍ट की तरह संभव
-उन्‍होंने कहा कि‍ देश के चिकित्सा संस्थान रि‍सर्च की दिशा में काफी पीछे हैं।
संस्थानों में सीनि‍यर रेजीडेन्ट व स्‍टूडेंटस पर काम का इतना अधिक दबाव है कि वह शोध की दिशा में सोच ही नहीं पाते हैं।
-जो डॉक्टर शोध भी करना चाहते हैं तो वह महज औपचारिक करते हैं, बाहर जाकर शोध नहीं करते हैं।
-उन्‍होंने कहा कि‍ डाक्‍टर्स को चाहि‍ए कि‍ उनका शोध का प्रकाशन अंतर्राष्‍ट्रीय स्‍तर पर होने के साथ ही पेटेंट हासि‍ल करे।
-उन्‍होंने डीयू (दि‍ल्‍ली यूनि‍वर्सि‍टी) में एक प्रोफेसर द्वारा कि‍ये गये शोध का उदाहरण देते हुए कहा कि‍ टीवी की जांच उसी तरह संभव है, जैसे प्रेगनेंसी कि‍ट से प्रेगनेंसी की जांच की जाती है।
-उन्‍होंने कहा कि‍ आईआईटी खडगपुर में काकरोच के डि‍सेक्‍शन पर शोध चल रहा है।
-उन्‍होंने कहा कि‍ मै एक ऐसे आईआईटी स्‍टूडेंटस को जानती हूं जो डायलि‍सि‍स में होने वाले तार पर रि‍सर्च कर रहा है।
-उसके शोध के सफल होते ही उसे पेटेन्ट मिलना तय है और उसके बाद डायलिसिस की जो मशीन वर्तमान में आठ लाख में आती है, वह उस तार के निर्माण से 60 हजार रुपये की लागत पर आ जाएगी।
शोध के सहारे ही एक मेडि‍कल स्‍टूडेंट बन सकता है सफल डाक्‍टर
-उन्होंने कहा कि शोधकार्यों के माध्यम से ही एक मेडिकल छात्र एक सफल डॉक्टर बन सकता है।
-उन्‍होने कहा कि‍ आज देश में अच्छे चिकित्सा संस्थान होने के बावजूद ग्रामीण स्तरों पर स्वास्थ्य सेवाएं नहीं पहुंच रही हैं, यह एक चिन्ता का विषय है।
-उन्होंने केजीएमयू के चिकित्सा शिक्षा की सराहना करते हुए कहा कि केजीएमयू ने अब तक पूरे देश को 22 हजार चिकित्सा विशेषज्ञ दिए हैं।
-आशा है कि यहां से भी निकलने वाले डॉक्टरों को ऐसी शिक्षा दी जाए कि वह महीने में एक दिन गांव को गरीब जनता के इलाज में अपना समय दें।

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