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भारत का 2000 साल पुराना मानव उदर का उत्कृष्ट नमूना

इलाहाबाद संग्रहालय में मौजूद है, आज से 2000 साल पुराना मानव उदर (पेट) का बेहद प्राचीन मॉडल. जिसमें उन सभी बारीकियों को दर्शाया गया है जिसे आज एडवांस मेडिकल साइंस का हिस्सा बताया जाता है. इसलिए संग्रहालय में स्थित टेराकोटा का यह मॉडल इस बात का प्रमाण है कि हमारे हजारों साल पूर्व भी हम चिकित्सा के क्षेत्र में बहुत विकसित थे.

आधुनिक भारत का हजारों साल पुराना एक गौरवशाली इतिहास है, जो हमें बताता है कि हम लगभग हर क्षेत्र में अग्रणी थे. हमारे यहां नालंदा विश्वविद्यालय, हड़प्पा जैसी विकसित सभ्यता और तो और सुश्रुत और वैद्यराज जीवक जैसे महान चिकित्सक भी थे, इसलिए तो हमारे पूर्वज विश्व गुरु कहलाये. इन सब के बीच अगर बात करें भारतीय प्राचीन चिकित्सा पद्धति(Indian ancient medical practice) की तो हमारे पास ऐसे कई प्रमाण हैं जो स्पष्ट करते हैं कि यहां, आधुनिक समय में देश-विदेश में होने वाली सर्जरी का भी प्रचलन था. तभी तो सुश्रुत को शल्य क्रिया(surgery) का जनक माना जाता है. हमारा सौभाग्य है कि हमारे पास आज एक प्रमाण प्रयागराज में भी मौजूद है जो इस पावन भूमि के गौरवशाली इतिहास को बयां करता है.

प्रयागराज से लगभग 20 किलोमीटर दूर कौशांबी में उत्खनन के दौरान एक पत्थर मिला, जिसपर शोध करने के बाद यह पता चला कि पक्की मिट्टी (टेराकोटा) से निर्मित इस अवशेष में मानव उदर (पेट) की आंतरिक संरचना को बनाया गया है. इस मॉडल पर मानव पाचन तंत्र को स्पष्ट रूप से उकेरा गया है, जिसमे छोटी आंत , बड़ी आंत, अग्नाश्य को बनाया है.

यह नमूना मानव उदर की शल्यक्रिया का है. संग्रहालय के निर्देशक प्रमोद गुप्ता ने बताया है कि प्रयागराज मंडल के कौशांबी जनपद से प्राप्त यह नमूना उत्तरी भारतीय पुरातत्व की उत्कृष्ट उपलब्धि है. यह मॉडल इलाहाबाद संग्रहालय के मृण्मूर्ति कला वीथिका में सुरक्षित और प्रदर्शित है.

इलाहाबाद संग्रहालय के व्याख्याता डॉ सुशील शुक्ला ने हमें बताया है कि नमूना प्राचीन काल में वत्स महाजनपद की राजधानी रही कौशांबी से प्राप्त हुआ है, जो कि कोशम इनाम और कोशम खिराज के दो गांवो के मध्य में यमुना तट में स्थित है.

डॉक्टर सुशील शुक्ला ने बताया कि पुरातत्व विभाग को मिले एक पालि साहित्य के अनुसार यह नमूना बनारस के एक व्यापारी के पेट का है, जिसका ऑपरेशन वैद्यराज जीवक ने राजा उदयन के शासनकाल में किया था. राजा उदयन का राजप्रसाद (राजमहल) भी कौशांबी जिले में यमुना किनारे जमीन से खुदाई करके निकाला गया है. जिसके 25% हिस्से पर काम हुआ है शेष अभी बाकी है.