हनुमानजी का भाषा पर अधिकार
वाल्मीकि-रामायण का किष्किंधा-कांड मेरे सामने है! भिक्षुवेश में आकर हनुमान रामलक्ष्मण का वास्तविक परिचय जानना चाहते हैं और समझना चाहते हैं कि इनका इधर आने का वास्तविक प्रयोजन क्या है? वे जिस कूटनयिक-भाषा में राम से बातें करते हैं, उस भाषा को सुन कर राम चकित हैं!
वे लक्ष्मण से कहते हैं। जिसने गहरा अध्ययन नहीं किया, वह ऐसी उदात्त भाषा में बातें नहीं कर सकता! इन्होंने व्याकरण का भी अध्ययन किया है, इतनी देर से बात करते हुए भी इनके मुख से एक भी अशुद्धि नहीं निकली! इनके संभाषण के समय इनकी मुख नेत्र ललाट भौंह आदि की मुद्रा में कोई विकार नहीं दीखा!इन्होंने बहुत थोड़े शब्दों में ही अपना कथ्य स्पष्ट कर दिया है! बोलते समय इनकी आवाज न धीमी रही है न ऊंची! न तो इन्होंने रुक रुक बोला है और न ही शब्द और वाक्यों को तोड़ा मरोड़ा है!
जिसके पास ऐसी भाषा होगी, उसका मनोरथ सिद्ध क्यों नहीं होगा?
वाग्भूषणं भूषणम्!
केयूरा न विभूषयन्ति पुरुषं हारा न चन्द्रोज्ज्वला
न स्नानं न विलेपनं न कुसुमं नालङ्कृता मूर्धजाः।
वाण्येका समलंकरोति पुरुषं या संस्कृता धार्यते
क्षीयन्ते खलु भूषणानि सततं वाग्भूषणं भूषणम्।।
सुसंस्कृत वाणी ही मनुष्य की वास्तविक शोभा है!
बाजूबंद हो अथवा चन्द्रमा के समान उज्ज्वल हार हो,
स्नान, चन्दन, फूल हों अथवा सजे हुए केश हों,
इनमें से कोई भी चीज सुसंस्कृत वाणी के समान नहीं है!
सुसंस्कृता वाणी ही सच्चा आभूषण है।