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Climate change : जाने अचानक बादल फटने का कारण, देखें खबर में

नयी दिल्ली। Climate change : जाने अचानक बादल फटने का कारण, देखें खबर में…. विशेषज्ञों का कहना है कि जलवायु परिवर्तन और हिमालय में अनियोजित मानवीय हस्तक्षेप ने आपदाओं के प्रति पहाड़ों की संवेदनशीलता को बढ़ा दिया है, जिसके परिणामस्वरूप संपत्ति और मानव जीवन के नुकसान में कई गुना वृद्धि हुई है। हाल में बादल फटने के कारण अचानक आई बाढ़ ने जम्मू-कश्मीर के पहलगाम में अमरनाथ गुफा मंदिर के पास एक आधार शिविर स्थल को नष्ट कर दिया, जिसमें 15 तीर्थयात्री मारे गए।

Climate change : जलवायु परिवर्तन से संवेदनशील हिमालय पर खतरा बढ़ रहा है: विशेषज्ञ

साउथ एशिया नेटवर्क आन डैम्स, रिवर एंड पीपल (एसएएनडीआरपी) के समन्वयक हिमांशु ठक्कर ने कहा, ‘‘जलवायु परिवर्तन ने इसकी संवेदनशीलता में एक और परत जोड़ दी है। यह भूस्खलन, अचानक बाढ़ और बादल फटने की घटनाओं को और अधिक विनाशकारी बना रहा है।’’ ठक्कर ने कहा, ‘‘हम पर्यावरणीय प्रभाव का ईमानदार आकलन नहीं करते हैं, न ही हम पहाड़ों की वहन क्षमता को ध्यान में रखते हैं।

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हमारे पास हिमालय के लिए एक विश्वसनीय आपदा प्रबंधन प्रणाली भी नहीं है।’’ भूस्खलन, बाढ़ और मिट्टी के कटाव के कारण कृषि भूमि प्रभावित होने से पहाड़ों में खाद्य सुरक्षा खतरे में है। उन्होंने कहा, ‘‘पहले हमारे पास जलग्रहण क्षेत्रों में घने जंगल थे जो बारिश के पानी को जमीन में रिसने में मदद करते थे और यह जल मानसून के बाद जल स्रोतों के रूप में उपलब्ध हो जाता था।

Climate change : अब जंगलों के कटने से बारिश का पानी बह जाता है

अब जंगलों के कटने से बारिश का पानी बह जाता है, इसलिए जलाशय गायब हो रहे हैं और सिंचाई के लिए पानी की उपलब्धता कम हो रही है।’’ अगस्त 2018 में नीति आयोग द्वारा जारी एक रिपोर्ट के अनुसार, भारतीय हिमालयी क्षेत्र (आईएचआर) में लगभग 50 प्रतिशत झरने सूख रहे हैं। भारत भर में 50 लाख झरने हैं, जिनमें से लगभग 30 लाख अकेले आईएचआर में हैं। रिपोर्ट में कहा गया है कि भारत में 20 करोड़ से अधिक लोग झरनों पर निर्भर हैं, जिनमें से पांच करोड़ लोग क्षेत्र के 12 राज्यों में रहते हैं।

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अनियोजित मानवीय हस्तक्षेपों – बांधों, जल विद्युत परियोजनाओं, राजमार्गों, खनन, वनों की कटाई, भवन निर्माण, अनियमित पर्यटन और तीर्थयात्रा के कारण पहाड़ नाजुक हो रहे हैं। विज्ञान और प्रौद्योगिकी मंत्रालय के तहत एक स्वायत्त संस्थान, वाडिया इंस्टीट्यूट आफ हिमालयन जियोलाजी के 2020 के एक अध्ययन के अनुसार, गंगोत्री ग्लेशियर के पास ‘ब्लैक कार्बन’ सांद्रता जंगल की आग और कृषि कचरे के जलने के कारण गर्मियों में 400 गुना बढ़ जाती है, जो प्रकाश अवशोषित करने की ‘ब्लैक कार्बन’ की प्रकृति के कारण ग्लेशियर के पिघलने का कारण बन सकते हैं।

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