Breaking News
(husband )
(husband )

पति (husband )विदेश में रहता है, तो क्या घरेलू हिंसा का मामला वैध है?

चेन्नई. मद्रास उच्च न्यायालय ने बुधवार को अपने एक निर्णय में कहा कि भारत में अस्थायी या स्थायी रूप से रहने वाली कोई भी महिला घरेलू हिंसा अधिनियम के तहत अदालत से राहत पाने की हकदार है, भले ही उसका पति (husband ) देश से बाहर रहता हो. जस्टिस एस. एम. सुब्रमण्यम ने एक अमेरिकी नागरिक द्वारा दायर याचिका को खारिज करते हुए यह आदेश जारी किया, जिसमें उसकी पत्नी द्वारा चेन्नई परिवार अदालत में उसके खिलाफ दायर घरेलू हिंसा की शिकायत को चुनौती दी गई थी.

उन्होंने कहा, ‘कार्रवाई का कारण भारत में हुआ है क्योंकि पीड़ित व्यक्ति यहां रह रहा है, भले ही दूसरे देश में रहने वाले पति या पत्नी द्वारा आर्थिक रूप से दुर्व्यवहार किया गया हो.’  जज ने पति के इस तर्क को स्वीकार करने से इनकार कर दिया कि उसकी पत्नी की शिकायत को खारिज कर दिया जाना चाहिए क्योंकि अमेरिका की एक अदालत ने पहले ही उसके द्वारा दायर तलाक की याचिका पर एकतरफा आदेश पारित कर दिया था और उसे अपने 15 वर्षीय जुड़वां बच्चों की कस्टडी दे दी थी.

जस्टिस सुब्रमण्यम ने कहा, ‘विदेशी अदालतों द्वारा पारित डिक्री और आदेशों की मान्यता एक दुविधा बनी हुई है, क्योंकि जब भी ऐसा करने के लिए कहा जाता है, तो इस देश की अदालतें सीपीसी के प्रावधानों को ध्यान में रखते हुए ऐसे डिक्री और आदेशों की वैधता निर्धारित करने के लिए बाध्य होती हैं.’ उन्होंने आगे कहा, ‘नाबालिग के कल्याण से संबंधित किसी भी पहलू पर विदेशी अदालतों का एक विशेष दृष्टिकोण लेना इस देश की अदालतों के लिए इस मामले में स्वतंत्र विचार को बंद करने के लिए काफी नहीं है.

पिता को बच्चों की कस्टडी देने वाली उसी अदालत की एक डिविजन बेंच का हवाला देते हुए जस्टिस सुब्रमण्यम ने कहा, ‘बच्चों को जबरन उनके पिता को सौंपने से मनोवैज्ञानिक नुकसान होगा और बच्चे अपनी मां की गैरमौजूदगी में शांतिपूर्ण जीवन जीने की स्थिति में नहीं होंगे.’ न्यायाधीश ने कहा कि बच्चों को लेकर उचित विचार किया जाना चाहिए क्योंकि वे ‘परिपक्व नाबालिग’ थे. इसके बाद कोर्ट ने बच्चों को मां की अंतरिम हिरासत में दे दिया.