प्रयागराज

कहानी एक महत्वपूर्ण विद्या के रूप में छाई हुई है- प्रो सुरेन्द्र प्रताप  हिन्दुस्तानी एकेडेमी में ‘हिन्दी की प्रारम्भिक कहानियों का कथ्य विश्लेषण’ विषयक संगोष्ठी का आयोजन 

प्रयागराज -:  हिन्दुस्तानी एकेडेमी के तत्वावधान में आज ‘हिन्दी की प्रारम्भिक कहानियों का कथ्य विश्लेषण’ विषयक संगोष्ठी का आयोजन किया गया। कार्यक्रम का शुभारम्भ सरस्वती जी की प्रतिमा पर  माल्यार्पण एवं दीप प्रज्ज्वलन के साथ हुआ। कार्यक्रम के प्रारम्भ में एकेडेमी के प्रशासनिक अधिकारी गोपालजी पाण्डेय ने आमंत्रित अतिथियों का स्वागत पुष्पगुच्छ, स्मृति चिह्न और शाॅल देकर किया।
                संगोष्ठी की अध्यक्षता करते हुए प्रो. सुरेन्द्र प्रताप पूर्व विभागाध्यक्ष हिन्दी, काशी विद्यापीठ, वाराणसी ने कहा कि ‘हिंदी कहानी का विकास यूरोप की तुलना में विलंब से हुआ कहानी का विकास 19वीं सदी से शुरू होता है और अब कहानी एक महत्वपूर्ण विद्या के रूप में छाई हुई है विगत पाँच दशकों में कहानियों में काफी प्रयोग हुए हैं। सम्मानित वक्ता के रूप में प्रो. ओमप्रकाश सिंह ने कहा कि ‘ हिंदी कहानी का जन्म 20वीं शताब्दी में हुआ वैसे कहानी कहना और सुना तो हमारे रगों में बसा हुआ है। प्रो शिव प्रसाद शुक्ल, आचार्य हिन्दी, इलाहाबाद विश्वविद्यालय ने ‘हिन्दी की प्रारम्भिक कहानियों का कथ्य विश्लेषण’ पर प्रकाश डालते हुए कहा कि भारतीय कथा या कहानी साहित्य का इतिहास काफी पुराना है।
                       पाश्चात्य साहित्य तर्क विज्ञान के आधार पर 19 वीं शताब्दी के उत्तरार्द्ध में कहानी लिखने की कोशिश कर रहा था। जबकि भारत में वैदिक, बौद्धिक, जैनिक कहानियों की भरमार पहले से रही हैं। संगोष्ठी में प्रो. रामपाल गंगवार, आचार्य हिन्दी, डाॅ. भीमराॅव अम्बेडकर विश्वविद्यालय, लखनऊ ने भी अपने विचार व्यक्त किये। संगोष्ठी का संचालन डाॅ. अरुण कुमार मिश्र ने किया। कार्यक्रम के अन्त में धन्यवाद ज्ञापन एकेडेमी के प्रशासनिक अधिकारी गोपालजी पाण्डेय ने किया। कार्यक्रम में रविनंदन सिंह, डाॅ. अनिल कुमार सिंह, शाम्भवी, डाॅ. पीयूष मिश्र ‘पीयूष’, पारुल सिंह राठौर, रंजना गुप्ता, अरविन्द कुमार उपाध्याय सहित शोधार्थी एवं शहर के गणमान्य आदि उपस्थित रहे।

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