राष्ट्रीय धर्म का हो सम्मान, तभी हिन्दुस्तान सुरक्षित: शंकराचार्य वासुदेवानंद
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प्रयागराज । नौ दिवसीय आराधना महोत्सव में जगतगुरु शंकराचार्य स्वामी वासुदेवानंद सरस्वती ने अपने आशीर्वाद में कहा कि प्रत्येक राष्ट्र की अपनी संस्कृति व अपना धर्म होता है और राष्ट्र के प्रमुख की जिम्मेदारी है कि अपने राष्ट्र की और राष्ट्रीय धर्म का सम्मान व उसकी सुरक्षा करें।
उन्होंने कहा कि जब राजा अपने प्रजा को समृद्धि वाह खुशहाली के लिए सतत प्रयत्नशील रहता है तो प्रजा जनता भी राष्ट्र रक्षा के लिए अपने राज-प्रमुख के साथ खड़ी होती है। उन्होंने बताया कि राज सत्ता व राष्ट्र की सेना के बीच परस्पर समन्वय एवं सहयोग जरूरी है। आज अयोध्या में भगवान राम के भव्य मंदिर का निर्माण हो रहा है, प्रयागराज में किले में बंद अक्षयवट का दर्शन आम श्रद्धालुओं को होने लगा। यह इसीलिए संभव हो पाया कि देश के प्रधानमंत्री का निर्णय इसके पक्ष में था। सेना का मनोबल भी निःशंक भाव से इस निर्णय के प्रति सकारात्मक व समर्थक रहा है।
श्रीमद् भागवत कथा में स्वामी अखंडानंद सरस्वती के शिष्य वृंदावन से आए व्यास श्रवणसनंद ने कथा के प्रथम दिन श्रीमद् भागवत महापुराण के महात्मय का वर्णन करते हुए बताया कि इसमें 1800 श्लोक हैं। यह सभी शास्त्रों में श्रेष्ठ है। वेदों उपनिषदों का ज्ञान भी इसमें सम्मिलित है। श्रीमद् भागवत महापुराण की कथा कहने व सुनने वाले के लिए संसार सागर पार करने की परंपरागत नाव है। यह नाव हमें हमारी गुरु परम्परा से मिली है। श्री नारायण से होकर भगवान आदि शंकराचार्य से चलते हुए आज तक संचालित है। ब्रह्मलीन स्वामी शांतानंद सरस्वती जी की स्मृति में अलोपीबाग में आयोजित नौ दिवसीय आराधना महोत्सव उसी परम्परा का अनुपालन है।
उक्त अवसर पर आए संत श्री परमहंस आश्रम टीकरमाफी स्वामी हरिचैतन्य ब्रह्मचारी ने कहा कि जिस तरह से भगवान की आराधना करते हैं उसी भाव से गुरु की भी वंदना करनी चाहिए। हमारी वंश परम्परा का संत हमारा है, वह चाहे जहां आए या चाहे जहां रहे। आराधना महोत्सव के प्रथम दिन दंडी सन्यासी विनोदानंद, पंडित शिवार्चन उपाध्याय (पूर्व प्राचार्य ), स्वामी रामसुखदास, ब्रह्मचारी आत्मानंद, ब्रह्मचारी विशुद्धानंद, विपिन मिश्रा, ब्रह्मचारी जितेंद्रानंद, सीताराम शर्मा, मनीष आदि ने वेदी पूजन आरती व ब्रह्मलीन हुए शंकराचार्य के चित्रों पर माल्यार्पण किया।