पाक सैनिक को मिला भारत में पद्म सम्मान दिलचस्प कहानी

नई दिल्ली:बुधवार को राष्ट्रपति रामनाथ कोविंद ने कई अहम हस्तियों को विशेष सम्मानों से सम्मानित किया। इन्हीं शख्सियतों में से एक थे लेफ्टिनेंट कर्नल काजी सज्जाद अली जहीर। यूं तो लेफ्टिनेंट कर्नल जहीर कभी पाकिस्तानी सैनिक हुआ करते थे लेकिन आज जब उन्हें पद्म श्री से नवाजा गया तब इस नाम ने सभी का ध्यान अपनी ओर खींचा। लेफ्टिनेंट कर्नल काजी सज्जाद अली जहीर वो नाम है जिससे आज पाकिस्तान बेपनाह नफरत करता है। लेफ्टिनेंट कर्नल काजी सज्जाद अली जहीर ने साल 1971 में पाकिस्तान के खिलाफ लड़ाई में भारत का साथ दिया था और इस युद्ध में भारत ने पड़ोसी मुल्क को धूल चटाया था।
बात साल 1971 के मार्च के महीने की है। पाकिस्तानी आर्मी का एक जवान जिसकी पोस्टिंग सियालकोट सेक्टर में थी वो अचानक बॉर्डर पार कर भारत में घुस गया। उसके जूते में कुछ कागज और नक्शे रखे हुए थे। उस वक्त बॉर्डर पर तैनात भारतीय सैनिकों ने उसे पाकिस्तानी जासूस समझा और तुरंत पकड़ लिया। जल्दी ही इस शख्स को पठानकोट ले जाया गया और यहां वरिष्ठ अधिकारियों ने उससे कई सवाल-जवाब किये। उस वक्त 20 साल के इस पाकिस्तानी सैनिक ने भारतीय अधिकारियों को पाकिस्तानी आर्मी के पोजिशन की जानकारियों से भरे दस्तावेज सौंपे। भारतीय अधिकारी समझ गये कि यह गंभीर मामला है।
1971 की लड़ाई में पाकिस्तान को झटका देने वाला यह जवान कोई और नहीं बल्कि लेफ्टिनेंट कर्नल काजी सज्जाद अली जहीर ही था। इस घटना के बाद पाकिस्तानी सैनिक को दिल्ली ले जाया गया और उन्हें वहां एक सुरक्षित स्थान पर रखा गया। यहां उन्होंने कई महीने गुजारे और मुक्ति वाहिनी में गुरिल्ला लड़ाई के गुर सीखाए ताकि पाकिस्तानी सैनिकों को धूल चटा सकें। 1971 की लड़ाई में कर्नल जहीर ने भारत का साथ दिया और पाकिस्तानी सैनिकों के छक्के छुड़ा दिये थे।
एक खास बात यह भी है कि पाकिस्तान ने लेफ्टिनेंट कर्नल जहीर को मौत की सजा सुनाई थी और पिछले 50 साल से पाकिस्तान इस सजा को मुकम्मल अंजाम तक पहुंचाने के इंतजार में है। बांग्लादेश की आजादी से पहले कर्नल जहीर पाकिस्तानी सेना के बड़े अधिकारी थे, लेकिन पाकिस्तानी सेना ने बांग्लादेश के लोगों पर इतने जुल्म किए, कि कर्नल जहीर जैसे लोग उसे बर्दाश्त नहीं कर पाए और उन्होंने पाकिस्तान के खिलाफ हल्ला बोल दिया।
उस समय कर्नल जहीर ने पाकिस्तानी सैनिकों के खिलाफ मोर्चा खोल दिया था। बताया जाता है कि पाकिस्तान की गलत हरकतों की वजह से उन्होंने भारतीय सेना को कई गोपनीय दस्तावेज भी सौंपे थे, जिसकी वजह से पाकिस्तानी सैनिकों की उस समय के पूर्वी पाकिस्तान यानी बांग्लादेश में हालत खराब हो गई।जिसके बाद बांग्लादेश को नया मुल्क बनाया गया था।
इसे पूरा करने के लिए कर्नल जहीर ने ही भारतीय सैनिकों के साथ मिलकर मुक्ति वाहिनी तैयार की थी। इसमें हजारों लड़ाकों को सैनिक ट्रेनिंग दी गई थी। भारतीय सेना ने इतनी जबर्दस्त ट्रेनिंग दी थी जिसके बाद पाकिस्तान को उनके सामने टिक पाना मुश्किल थाजिसके बाद पाकिस्तान की हालत ऐसी हो गई कि वो सबसे ज्यादा गुस्सा कर्नल जहीर पर ही निकाला था.
पाकिस्तान छोड़ कर कर्नल क्यों चले गये? इसकी वजह बताते हुए वो खुद कहते हैं कि ‘जिन्ना का पाकिस्तान एक कब्रिस्तान बन गया। हमारे साथ वहां सेकेंड-क्लास सिटिजन की तरह व्यवहार किया जाता था। हमारे पास कोई अधिकार नहीं थे। हमसे वादा किया गया था प्रजातंत्र का लेकिन हमें वो नहीं मिला। हमें मार्शल कानून मिला। जिन्ना कहते थे कि हमारे पास बराबर के अधिकार हैं लेकिन हमें वो नहीं मिलता था। हमसे पाकिस्तान के नौकर की तरह व्यवहार किया जाता था।’
कर्नल जहीर ने कहा, ‘सियालकोट में पाकिस्तान की बेहतरीन पारा-ब्रिगेड का सदस्य होने के बावजूद मैं अकेला था। लेकिन तब मैंने सोचा कि मेरे अंदर तीन लोग हैं- मैं, मैं खुद और मैं..इसलिए मैंने सोचना शुरू किया कि मुझे किस रास्ते पर जाना है। मैंने जम्मू की तरफ जाने वाले रास्ते को चुना…जहां पेट्रोलिंग काफी कम होती थी।’ कर्नल जहीर के पिता ब्रिटिश आर्मी में अफसर थे और द्वितीय विश्व युद्ध में उन्होंने हिस्सा भी लिया था। उनके छोटे भाई मुक्ति वाहिनी के सदस्य थे और उन्होंने बांग्लादेश की आजादी के लिए लड़ाई भी लड़ी।
भारत में अपनी एंट्री को याद करते हुए उन्होंने कहा कि जब वो सीमा पार कर भारत में घुसने की कोशिश कर रहे थे तब उस वक्त दोनों तरफ से फायरिंग हो रही थी। उन्होंने बताया, ‘मैं एक बड़े गड्ढे में कूद गया। उस वक्त दोनों तरफ से फायरिंग हो रही थी। मैं पूरे गड्डे को पार कर गया और फिर भारत की सीमा में घुसा। जिसके बाद मुझे दिल्ली ले जाया गया जहां कई महीनों तक वरिष्ठ अधिकारी और कई एजेंसियों ने मुझसे बातचीत की। उनलोगों ने कभी मुझसे नहीं कहा कि मैं उनकी हिरासत में हूं। मुझे अच्छा खाना दिया गया और मुझसे अच्छा बर्ताव किया गया।’
वो खुद को नक्शे पढ़ने में माहिर बताते हैं। लेफ्टिनेंट कर्नल ने नक्शा पढ़ कर पाकिस्तानी सैनिकों के सही-सही पोजिशन के बारे में अहम और सटीक जानकारियां वरिष्ठ अधिकारियों को दी थी। पाकिस्तान के खिलाफ 1971 की लड़ाई में कर्नल जहीर ने भारतीय सैनिकों के साथ आपसी समन्वय बनाते हुए काम किया है और फिर उन्होंने मुक्ति वाहिनी के सैनिकों के साथ मिलकर पाकिस्तान के खिलाफ गुरिल्ला वार शुरू कर दिया। उन्होंने कहा कि, “हमने सितंबर 1971 से गुरिल्ला ऑपरेशन शुरू किया और पाकिस्तानी सेना को अधिकतम नुकसान पहुंचाने के लिए काम किया।