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सरकार से मांगा 2.20 करोड़ मुआवजा…

नई दिल्ली। कस्तूरबा गांधी मार्ग स्थित एक संपत्ति पर कब्जा जमाए रखने से किराया, लाभ और ब्याज के नुकसान की भरपाई करने के लिए केंद्र सरकार को आदेश देने की मांग को लेकर हाईकोर्ट में याचिका दाखिल की गई। याचिका में आरोप है कि केंद्रीय आवास एवं शहरी मामलों के मंत्रालय के भूसंपदा निदेशालय ने गैर कानूनी तरीके से संपत्ति पर कब्जा जमाए रखा। संपत्ति के मालिकों ने इस नुकसान के लिए करीब ढाई करोड़ रुपये की मांग की है।

हाईकोर्ट में यह याचिका राजीव सरीन, दीपक सरीन और राधिका सरीन की ओर से दाखिल की गई। ये तीनों याचिकाकर्ता आपातकाल को असंवैधानिक घोषित करने की मांग को लेकर पिछले साल सुप्रीम कोर्ट का दरवाजा खटखटाने वाली 94 साल की वीरा सरीन की संताने हैं। याचिका में कहा गया है कि अंसल भवन स्थित उनके फ्लैट को मंत्रालय ने 1999-2020 के दौरान अवैध तरीके से अपने कब्जे में रखा था। ऐसे में वे मुआवजा पाने का हकदार है। याचिकाकर्ताओं ने कहा है कि वर्ष 1974 व 1976 के दौरान उनके पिता एच.के सरीन के व्यवसायिक परिसर में छापेमारी की गई थी।

साथ ही कहा कि इसके 1975 में दिल्ली सरकार ने विदेशी मुद्रा संरक्षण और तस्करी गतिविधि रोकथाम अधिनियम 1974 (कोफेपोसा) के प्रावधानों के तहत एक डिटेंशन आदेश जारी किया। इसके बाद 1980 में एचके सरीन को आय व आय के स्रोतों के बारे में जानकारी देने के लिए कारण बताओ नोटिस जारी करने के साथ-साथ यह भी बताने के लिए कहा गया था कि क्यों न अंसल भवन की संपत्ति सहित विभिन्न संपत्तियों को जब्त कर लिया जाए।

अधिवक्ता सिद्धांत कुमार के माध्यम से दाखिल याचिका में उन्होंने कहा कि कारण बताओ नोटिस जारी होने से पहले उक्त संपत्ति को 1976 से आवास मंत्रालय के माध्यम से भारत सरकार को लीज पर दिया गया था। इसके बाद 1998 में संबंधित सक्षम अधिकारी द्वारा अंसल भवन में संपत्ति सहित विभिन्न संपत्तियों को जब्त करने के तहत एक आदेश पारित किया गया। याचिका में कहा गया है कि इसी मामले में वर्ष 1999 में श्रम एवं रोजगार मंत्रालय ने अंसल भवन स्थित उनकी संपत्ति को जब्त संपत्ति के रूप में अपने कब्जे में ले लिया।

याचिकाकर्ताओं ने कहा है कि उनके पिता ने सेफमा के तहत अपीलीय प्राधिकरण के समक्ष इस आदेश को चुनौती दी थी जिसे दिसंबर 2001 में खारिज कर दिया गया। इस आदेश के आने से पहले ही 16 अक्तूबर 2000 को उनका निधन हो गया। याचिकाकर्ताओं ने दावा किया है कि वर्ष 2014 में हाईकोर्ट ने अपने फैसले में कहा कि स्वर्गीय एचके के खिलाफ गलत तरीके से सेफमा के तहत मामला दर्ज किया गया था। याचिका के अनुसार न्यायालय के आदेश पर अवैध कब्जे के रूप में आंशिक मुआवजा मिलने में तीन साल लग गए। याचिकाकर्ताओं ने कहा कि न्यायालय ने संपत्ति को जब्त करने को अवैध घोषित कर दिया है ऐसे मे उसे मुआवजा दिया जाना चाहिए।

याचिका में सरकार से वर्ष 1999 से 2020 के बीच की अवधि में अवैध कब्जे से होने वाले किराए व ब्याज के नुकसान के लिए मुआवजे के तौर पर 2.20 करोड़ रुपये की मांग की। इस मामले की सुनवाई अगले सप्ताह होने की संभावना है।

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