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समझें बसपा का सियासी दांव, रैली, सभा और बयानबाजी से दूर रहकर क्या संदेश दे रहीं हैं !!!

चुनावी दौर में भी बहुजन समाज पार्टी की मुखिया मायावती ने जनता से दूरी बना रखी है। पिछले 85 दिन के अंदर वे केवल 10 बार ही सार्वजनिक तौर पर नजर आईं, जबकि 122 बार ट्वीट किया। इस पर कई तरह की चर्चाएं होने लगी हैं। खैर, मायावती ने साल के पहले दिन चुप्पी तोड़ी और विपक्ष के एक-एक आरोपों का जवाब दिया। यह भी बताया कि आखिर वे क्यों चुनावी रैलियों से दूर हैं?

उत्तर प्रदेश की सियासत में बहुजन समाज पार्टी यानी बसपा की भूमिका काफी अहम मानी जाती है। फिर मायावती सत्ता में रहें या न रहें, उनकी चर्चा हमेशा होती है। पिछले कई दिनों से उनके सक्रिय न रहने पर विपक्ष ने कटाक्ष करना शुरू कर दिया था। चर्चा इसलिए भी थी क्योंकि भले ही मायावती जनसभा या रैली नहीं कर रहीं थीं, लेकिन हर दूसरे दिन किसी न किसी मुद्दे पर उनका ट्विट जरूर आता था, लेकिन एक हफ्ते से वह भी बंद था। ऐसे में 30 दिसंबर को गृहमंत्री अमित शाह ने भी चुनावी रैली से खुलकर बोल भी दिया।

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शाह ने मुरादाबाद, अलीगढ़ और उन्नाव में चुनावी रैली को संबोधित करते हुए कहा, ‘विकास तो बबुआ के बस की बात नहीं है और बुआ जी तो अभी तक ठंड के कारण बाहर ही नहीं निकल पाईं हैं। अरे… बहनजी चुनाव के मैदान में आ जाइए बाद में मत कहना प्रचार नहीं करने दिया। ये बुआ, बबुआ और बहन तीनों मिलकर एकसाथ भी आ जाएं तो भी भाजपा कार्यकर्ताओं से नहीं जीत सकते हैं।’

शाह का बयान मायावती पर अब तक का सबसे बड़ा जुबानी हमला माना जा रहा है। ऐसे में उम्मीद थी कि मायावती इसका जवाब जरूर देंगी। हुआ भी यही। मायावती आज साल के पहले दिन मीडिया से रूबरू हुईं। इस दौरान उन्होंने शाह ही नहीं, बल्कि विपक्ष व मीडिया के कयासों पर भी लगाम लगाने की कोशिश की। मायावती का बयान सियासी गलियारे में चर्चा का विषय बना हुआ है। उनके हर एक शब्द और लाइन का मतलब निकाला जा रहा है। राजनीतिक विश्लेषक इसे बसपा का सियासी दांव बता रहे हैं। विश्लेषकों का कहना है कि रैली, सभा और बेवजह विरोधियों पर बयानबाजी से दूर रहकर मायावती वोटर्स के बीच एक बड़ा संदेश देने की कोशिश कर रही हैं।
पहले जान लें,  85 दिन में कितनी बार दिखीं मायावती

  • 1. 09 अक्टूबर : बसपा संस्थापक कांशीराम की पुण्यतिथि पर मायावती ने लखनऊ में प्रेस कॉन्फ्रेंस की और रैली को संबोधित किया।
    2. 09 नवंबर: सपा, भाजपा और कांग्रेस के आरोपों का जवाब देने के लिए मायावती ने प्रेस बयान जारी किया।
    3. 13 नवंबर : मां के निधन पर बसपा सुप्रीमो मायावती दिल्ली पहुंचीं।
    4. 15 नवंबर : बसपा मुख्यालय पर मायावती की मां के निधन पर श्रद्धांजलि सभा आयोजित हुई।
    5. 23 नवंबर : पार्टी के पदाधिकारियों के साथ बैठक की।
    6. 24 नवंबर : 2007 से 2012 के बीच बसपा शासन में हुए कामकाज की रिपोर्ट जारी की।
    7. 26 नवंबर : संविधान दिवस पर मीडिया से रूबरू हुईं।
    8. 30 नवंबर : पार्टी कार्यालय पर पदाधिकारियों के साथ बैठक।
    9. 06 दिसंबर : बाबा साहब भीमराव अंबेडकर की पुण्यतिथि पर प्रेस कॉन्फ्रेंस की।
    10. 23 दिसंबर : प्रेस कॉन्फ्रेंस की।

                                                                    तीन बिंदुओं में समझें बसपा का सियासी दांव

1. रैली से ज्यादा डोर टू डोर कैंपेन पर फोकस  – राजनीतिक विश्लेषक प्रो. एमपी सिंह कहते हैं, ‘बसपा हमेशा से मीडिया, सोशल मीडिया से दूर रही है। बसपा सुप्रीमो मायावती का मानना रहा है कि उनके लिए प्रतिबद्ध मतदाता उनके अलावा कहीं नहीं जाएंगे। लंबे समय तक यह सही भी साबित होता रहा, लेकिन 2014 के बाद से इसमें बड़ा बदलाव देखने को मिला। 2017 विधानसभा चुनाव के बाद इसमें और भी तेजी आई। बुरी हार के बाद मजबूरन मायावती को भी 2018 में ट्विटर पर अकाउंट बनाना पड़ा, लेकिन वह इससे ज्यादा डोर टू डोर कैंपेन में ही विश्वास रखती हैं। इसलिए अभी जब ज्यादातर राजनीतिक दल बड़ी-बड़ी रैलियां कर रहे हैं तो बसपा के कार्यकर्ताओं को डोर टू डोर कैंपेन करने का फरमान दिया गया है। खासतौर पर पार्टी के नेताओं से कहा गया है कि बसपा के कोर वोटर्स के बीच जाकर उन्हें साथ जोडे़ं।’

प्रो. सिंह के मुताबिक, डोर टू डोर कैंपेन से दो फायदे मिलते हैं। पहला यह कि पार्टी का नेता सीधे अपने वोटर से जुडता है और दूसरा यह कि इसमें खर्च भी कम होता है। मायावती चुनावी रैलियां करने से पहले अपने कोर वोटर्स के बीच अपना संदेश पहुंचाना चाहती हैं, ताकि जब वह रैली करें तो उसका असर और भी व्यापक हो जाए।

2. भावनात्मक संदेश देने की कोशिश – पिछले कुछ सालों में मायावती पर कई बार टिकट बेचने का आरोप लग चुका है। बसपा छोड़ने वाला हर शख्स यही कहता है कि पार्टी का टिकट पाने के लिए करोड़ों रुपये देने पड़ते हैं। मायावती ने अपनी प्रेस कॉन्फ्रेंस के जरिए पार्टी की स्थिति को लेकर भी अपने कोर वोटर्स के बीच भावनात्मक संदेश दिया। मायावती ने कहा, ‘बसपा गरीबों की पार्टी है, हमारे पास अन्य पार्टियों की तरह धन नहीं है। इसलिए अगर मैं रैलियां करूंगी तो आर्थिक बोझ बढ़ जाएगा। इसलिए बसपा अन्य पार्टियों की नकल नहीं कर रही और ताबड़तोड़ रैलियां नहीं कर रही।’

मायावती ने आगे कहा, ‘जो लोग ताबड़तोड़ रैलियां कर रहे हैं उन्हें ठंड में जो गर्मी चढ़ी है, वो गरीब के पैसे की ही गर्मी चढ़ी है। वो सरकारी खजाने की ही गर्मी चढ़ी है। सत्ता में पार्टी में नहीं होती तब ये ताबड़तोड़ जनसभा नहीं कर पाती। रिश्ते नाते पर कटाक्ष करने की याद नहीं आती।‘ प्रो. एमपी सिंह के कहते हैं कि मायावती ने इन शब्दों के जरिए पैसे से टिकट बांटने के आरोपों का जवाब तो दिया ही साथ में दलित बिरादरी में एक भावनात्मक संदेश भी दे दिया कि अब दलितों की जिम्मेदारी है कि वह बसपा का वजूद कायम रखें। यह एक तरह की अपील भी है ताकि बसपा की विचारधारा से जुड़े लोग पार्टी की आर्थिक मदद को भी आगे आएं।

3. बेवजह बयानबाजी से बचाव  – वरिष्ठ पत्रकार अशोक श्रीवास्तव बताते हैं, ‘मायावती ने 2019 लोकसभा चुनाव से काफी सबक लिया है। तब उन्होंने समाजवादी पार्टी के साथ गठबंधन किया था। अखिलेश यादव के साथ मिलकर उन्होंने भाजपा पर खूब सियासी कटाक्ष किया था। तब प्रधानमंत्री मोदी और मुख्यमंत्री योगी समेत भाजपा के नेताओं ने इन्हीं बयानों का आधार बनाकर मायावती के खिलाफ माहौल बना दिया था। इसका मायावती को काफी नुकसान उठाना पड़ा था। यही कारण है कि इस बार वह किसी के खिलाफ सीधे बयानबाजी करने से बच रहीं हैं।’

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