शीर्ष अदालत ने कहा कि हमें ऐसा समाज नहीं चाहिए, जाने पूरा मालमा

नई दिल्ली। शीर्ष अदालत ने कहा कि हमें ऐसा समाज नहीं चाहिए, जाने पूरा मालमा, सुप्रीम कोर्ट ने सोमवार को एक सेवानिवृत्त इंजीनियर, सोशल डेमोक्रेटिक पार्टी आफ इंडिया और पापुलर फ्रंट आफ इंडिया के सदस्यों सहित अन्य की जमानत याचिकाओं पर विचार करने से इन्कार कर दिया। इन पर 2020 के बेंगलुरु दंगे में संलिप्तता का आरोप है। शीर्ष अदालत ने कहा कि हमें ऐसा समाज नहीं चाहिए। 68 वर्षीय सेवानिवृत्त इंजीनियर मोहम्मद कलीम अहमद की ओर से पेश वरिष्ठ अधिवक्ता सिद्धार्थ लूथरा ने जस्टिस दिनेश माहेश्वरी और विक्रम नाथ की पीठ से कहा कि उनके मुवक्किल का नाम मूल प्राथमिकी में नहीं था।
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राष्ट्रीय जांच एजेंसी (एनआइए) द्वारा जांच की जिम्मेदारी संभालने के बाद उसे आरोपित बनाया गया। लूथरा ने कहा कि वह पहले ही 14 महीने से हिरासत में है और मामले में 154 गवाह थे। पीठ ने कहा कि उसने मामले के विवरण को देखा है। हाई कोर्ट ने एक विस्तृत आदेश पारित किया है। इसमें कहा गया है कि अन्य प्रविधानों के साथ यूएपीए के तहत आरोप थे। सुप्रीम कोर्ट ने सोमवार को कहा कि अदालतों को जनहित याचिकाकर्ताओं की वास्तविकता की जांच करते समय सतर्क रहना चाहिए ताकि यह सुनिश्चित किया जा सके कि वास्तविक दावों के रूप में तुच्छ या निजी हितों को तो नहीं साधा जा रहा।
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इसके साथ ही शीर्ष अदालत ने सरकार और निजी पक्ष के बीच छह दशक पुराने संपत्ति विवाद से जुड़ी जनहित याचिका पर बांबे हाई कोर्ट के फैसले को रद कर दिया। शीर्ष अदालत बांबे हाई कोर्ट के 2010 के फैसले पर टिप्पणी कर रही थी जिसमें हाई कोर्ट ने महाराष्ट्र के राजस्व मंत्री के 17 मार्च, 1998 के एकपक्षीय आदेश को बहाल कर दिया था। राजस्व मंत्री ने आदेश दिया था कि कथित निजी संपत्ति सरकार की है।
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इस आदेश में उन्होंने मंत्रालय के 1995 के आदेश को पलट दिया था जिसमें कहा गया था कि 1894 की डीड आफ एक्सचेंज के आधार पर पांच एकड़ से अधिक की जमीन पर गोंसाल्विस परिवार का स्वामित्व है। प्रधान न्यायाधीश एनवी रमना की अध्यक्षता वाली पीठ ने कहा कि जनहित याचिकाओं का भारतीय न्याय तंत्र पर लाभकारी असर रहा है और सामान्य तौर पर नागरिकों की स्थिति सुधरी है। इसके बावजूद हजारों गैरजरूरी याचिकाएं दाखिल हुई हैं जिनसे अदालतों पर बोझ बढ़ा है।