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वैज्ञानिकों ने प्रयोगशाला परीक्षण में बड़ी सफलता; नए अंगों के लिए नहीं करना होगा इंतजार;

वैज्ञानिकों ने प्रयोगशाला परीक्षण में बड़ी सफलता पाई है। वैज्ञानिकों ने एक इंसानी फेफड़े को यूनिवर्सल अंग के रूप में बदलने में सफलता पाई है। यह पहला वैज्ञानिक अध्ययन है जो यूनिवर्सल अंग के सिद्धांत को प्रयोगशाला में सफलतापूर्वक सिद्ध कर सका है। शोधकर्ताओं का दावा है कि उनकी तकनीक के जरिए सभी इंसानी दाता अंग को यूनिवर्सल अंगों में बदलना संभव होना चाहिए। साथ ही संभावना है कि निकट भविष्य में किसी भी रक्त समूह वाले जरूरतमंद व्यक्ति को ऐसे यूनिवर्सल अंग प्रत्यारोपित हो सकेंगे।

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अंग फेल होने के चलते मौत हो जाने की घटनाएं दिन पर दिन बड़ी हैं। इस बीच अंगदान करने व अंग प्रत्यारोपण का प्रचलन भी बढ़ा है। मगर सबसे बड़ी समस्या यहीं आती है कि अंग दाता और ग्राही के रक्त समूह एक से नहीं मिलते या उनके अंगों का आकार अलग अलग होता है ऐसे में यूनिवर्सल अंग तैयार होना ऐतिहासिक उपलब्धि है। यह शोध टोरंटो विश्वविद्यालय के विज्ञानिक दलों ने किया है। जो साइंस ट्रांसलेशनल मेडिसिन जर्नल में प्रकाशित हुआ है।

नए अंगों के लिए नहीं करना होगा इंतजार

शोधकर्ताओं का कहना है, वर्तमान में सफल ऑर्गन ट्रांसप्‍लांट के लिए डोनर और रिसीवर का ब्‍लड ग्रुप एक ही होना जरूरी है। वहीं दुर्लभ बी ब्‍लड ग्रुप वाले मरीजों को 20 साल तक नए अंगों के लिए इंतजार करना पड़ सकता है। नए प्रयोग के लागू होने पर यह इंतजार कम हो सकता है। शोधकर्ताओं के मुताबिक, ऑर्गन ट्रांसप्‍लांट के लिए मरीज को जितना ज्‍यादा इंतजार करना पड़ता है उसकी जान का जोखिम उतना ही बढ़ता है। इसलिए यह प्रयोग भविष्‍य में बड़ा बदलाव ला सकता है।

डेढ़ साल में होगा मानक परीक्षण

शोधकर्ताओं ने यूनिवर्सल फेफड़ों को शरीर से बाहर एक चिकित्सकीय उपकरण एक्स वीवो परफ्यूजन की मदद से जीवित रखने का सफल प्रयोग किया है। शोध दल की योजना है कि अगले डेढ़ साल में इसका मानक परीक्षण किया जाए।

यूनिवर्सल ब्‍लड ऑर्गन तैयार करने का रास्ता होगा साफ

डेलीमेल की रिपोर्ट में यह प्रयोग करने वाले कनाडा के वैज्ञानिक डॉ. स्‍टीफन विथर का कहना है, जिस तरह O ब्‍लड ग्रुप वाले लोग किसी को भी ब्‍लड डोनेट कर सकते हैं, उसकी तरह नए प्रयोग की मदद से भविष्‍य में यूनिवर्सल ब्‍लड ऑर्गन तैयार करने का रास्‍ता साफ हो सकेगा। शोधकर्ताओं की टीम का कहना है, इसके लिए अगले 2 सालों में क्‍लीनिकल ट्रायल शुरू किया जाएगा। उम्‍मीद है कि दूसरे ब्‍लड ग्रुप में कंवर्ट किए हुए ऑर्गन को मरीज में लगाया जा सकेगा।

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