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लोकरूचि-कल्पवास पक्षी तीन अंतिम प्रयागराज

झांसी से संगम क्षेत्र में स्नान करने पहुंचे राधेश्याम और श्याम बिहारी ने बताया कि जिस प्रकार माघ मेले में बिना आमंत्रण और निमंत्रण के श्रद्धालु स्नान और कल्पवास करने कलेंडर के एक निर्धारित तिथि पर पहुंचते हैं उसी प्रकार ये पक्षी भी अपने समय से पतीर्थराज प्रयाग में पहुंच जाते हैं। माघ मेले के समय इनको संगम के जल पर अठखेलियां करते देख जा सकता है। इनका जल के ऊपर क्रीडा करना और इनकी आवाज मन को बहुत सुकुन प्रदान करने वाला होता है।
श्याम बिहारी ने बताया कि एक तरफ ये पक्षी आकर्षण का केंद्र बने हुए हैं तो वहीं दूसरी तरफ अपनी खूबसूरती से संगम की शोभा बढ़ा रहे हैं। लोग घंटों तक घाट पर बैठकर गंगा में अठखेलियां करते इन विदेशी पक्षियों को निहारते रहते हैं। इतना ही नहीं लोग इनकी मेहमान नवाजी में कोई कसर नहीं छोड़ते हैं। कोई इन्हें बेसन से बनी सेव तो कोई पपड़ी खिलाता है तो वहीं ये पक्षी उनके स्वागत को स्वीकार कर बहुत चाव से खाते हैं।
बर्ल्डफ्लू इन पक्षियों का कुछ नहीं बिगाड़ सकता क्योंकि ये गंगा के उस जल पर रहकर क्रीड़ा करती है जिसमें अनकों औषधियां विराजमान है। उन्होने बताया कि किसी भी नदी का घर में संचित जल कुछ दिनों के बाद खराब हो जाता है लेकिन गंगा का जल लंबे समय तक श्रद्धालु अपने घरों में संचित कर रखते हैं।अपने औषधीय गुणों के कारण ही वह खराब नहीं होता।

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