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रूस और यूक्रेन के बढ़ते तनाव के बीच भारत का इस समस्‍या को लेकर क्‍या स्‍टैंड;

नई दिल्‍ली। रूस और यूक्रेन के बढ़ते तनाव के बीच एक बार दुनिया में युद्ध के बादल मंडरा रहे हैं। यूक्रेन के पक्ष में अमेरिका और नाटो के सदस्‍य देशों ने कमर कस ली है। दुनिया के कई देश इस मतभेद को लेकर लाम‍बंद हो रहे हैं। ऐसे में सवाल यह उठता है कि भारत का इस समस्‍या को लेकर क्‍या स्‍टैंड होगा। सवाल यह है कि क्‍या इस समस्‍या पर भारत का रुख तटस्‍थ रहेगा। क्‍या भारत अपने परंपरागत मित्र रूस के साथ रहेगा या वह नाटो व अमेरिका के साथ जाएगा। जाहिर है कि भारत और रूस के संबंध काफी पुराने हैं, लेकिन हाल में भारत और चीन सीमा विवाद के साथ अमेरिका से नजदकियां बढ़ी है। आइए जानते हैं कि इन सब मसलों पर विशेषज्ञों की क्‍या राय है।

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प्रो. हर्ष वी पंत ने कहा कि रूस-यूक्रेन के बीच जारी सैन्य टकराव का असर पश्चिमी देशों के साथ दुनिया के अन्‍य देशों पर भी पड़ रहा है। उन्‍होंने कहा कि पश्चिमी देशों ने रूस पर प्रतिबंध लगाने का ऐलान किया है। उधर, रूस ने भी कहा है पश्चिमी देशों को इसका करारा जबाव मिलेगा। रूस यूरोप में गैस की आपूर्ति में कटौती कर सकता है। इसका असर तेल की कीमतों पर पडे़गा। यूक्रेन का डोनबास इलाका जो रूस और यूक्रेन बीच विवाद में सबसे अहम है और यहां का सबसे बड़ा रिजर्व है।

प्रो हर्ष वी पंत ने कहा कि भारत अफगानिस्तान जैसी घटना से सबक लेगा। भारत अफगान‍िस्‍तान जैसी स्थिति से बचना चाहेगा। अमेरिका अफगानिस्‍तान से निकल आया है और तालिबान को मान्यता देने में चीन ने बेहद तेजी दिखाई। भारत अफगानिस्तान, पाकिस्तान, इराक, ईरान,लीबिया और यहां तक की चीन में अमेरीकी नीतियों की कीमत अदा कर चुका है। भारत की चिंता एक और मामले को लेकर बढ़ेगी क्योंकि यूक्रेन तनाव की वजह से अमेरिका का ध्यान एशिया-प्रशांत क्षेत्र से हट कर पूर्वी यूरोप पर बना रहेगा।

रूस और यूक्रेन के बढ़ते तनाव का असर भारत और पाकिस्‍तान के संबंधों पर भी पड़ेगा। भारत और अमेरिका के निकट आने के बाद पाकिस्‍तान भी रूस के साथ द्विपक्षीय रिश्‍ते की कोशिश कर रहा है। अमेरिका के साथ रणनीतिक साझेदारी खत्‍म होने के बाद से पाकिस्‍तान रूस के साथ द्विपक्षीय साझेदारी बढ़ाने में लगा है। उन्‍होंने कहा कि पुतिन के लिए हमला करना इतना सरल नहीं है। रूस की अर्थव्यवस्था यूरोप में गैस सप्लाई पर बहुत हद तक निर्भर है। अगर रूस हमला करता है तो चीन के साथ रूस की निकटता बढ़ेगी और यह भारत के लिए कतई ठीक नहीं होगा। रूस सैन्य आपूर्ति तो नहीं रोकेगा, लेकिन इंडो-पैसिफ‍िक में अमेरिका के साथ रणनीतिक साझेदारी प्रभावित होगी।

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