यूपी सरकार ने नुकसान की भरपाई के नोटिस वापस लिए, जाने पूरा मालमा
नई दिल्ली। उत्तर प्रदेश सरकार ने सुप्रीम कोर्ट को बताया कि उसने संशोधित नागरिकता कानून (सीएए) के विरोध में प्रदर्शन करने वालों के विरुद्ध शुरू की गई समस्त कार्रवाई और भरपाई के लिए जारी नोटिस वापस ले लिए हैं। सुप्रीम कोर्ट ने अब तक की गई वसूली को लौटाने (रिफंड) के आदेश दिए हैं। हालांकि शीर्ष कोर्ट ने यूपी सरकार को नए कानून के तहत कार्रवाई करने की आजादी दे दी है। यूपी में 2019 में हुए सीएए विरोध प्रदर्शन में सरकारी व निजी सम्पतियों के नुकसान की वसूली के लिए भेजे गए सभी 274 नोटिस और कार्यवाहियों को वापस लिया गया है।
सुप्रीम कोर्ट ने दिए वसूल राशि लौटाने के निर्देश
उप्र सरकार ने शीर्ष अदालत को बताया कि सीएए विरोधी प्रदर्शनों के दौरान हुए नुकसान की भरपाई के इन नोटिसों को 13 और 14 फरवरी को वापस लिया गया। सुप्रीम कोर्ट ने रिफंड के निर्देश एक याचिका की सुनवाई करते हुए दिए। याचिका में यूपी सरकार द्वारा जारी वसूली के नोटिसों को खारिज करने की मांग की गई थी। यूपी में सीएए विरोधी प्रदर्शन के दौरान संपत्तियों को नुकसान पहुंचाने के कारण राज्य सरकार ने प्रदर्शनकारियों से उसकी भरपाई का फैसला किया था। जस्टिस डीवाई चंद्रचूड व जस्टिस सूर्यकांत की पीठ ने कहा कि यूपी सरकार प्रदर्शनकारियों से वसूली गई करोड़ों रुपये की राशि लौटाए।
यह कानून 31 अगस्त 2020 को अधिसूचित किया गया था
इसके साथ ही शीर्ष अदालत ने यूपी सरकार को सीएए विरोधी प्रदर्शनकारियों के खिलाफ नए कानून श्उत्तर प्रदेश सार्वजनिक और निजी संपत्ति के नुकसान की वसूली अधिनियमश् के तहत कार्यवाही की आजादी दे दी। यह कानून 31 अगस्त 2020 को अधिसूचित किया गया था। पीठ ने अतिरिक्त महाविधक्ता गरिमा प्रसाद की यह दलील मानने से इनकार कर दिया कि वसूल राशि के रिफंड की बजाए प्रदर्शनकारियों व राज्य सरकार को इसके लिए ट्रिब्यूनल में जाने को कहा जाना चाहिए। इससे पहले 11 फरवरी को हुई सुनवाई में सुप्रीम कोर्ट ने सीएए विरोधी प्रदर्शनकारियों को दिसंबर 2019 में जारी वसूली नोटिसों को लेकर यूपी सरकार की खिंचाई की थी।
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कोर्ट ने राज्य सरकार को नोटिस वापस लेने के लिए अंतिम अवसर देते हुए चेतावनी दी थी कि यदि ऐसा नहीं किया गया तो वह कानून का उल्लंघन करने वाले इन नोटिसों को कानून को खारिज कर देगी। याचिकाकर्ता परवेज आरिफ टीटू ने कोर्ट से इन नोटिस को मनमाना व कानून के खिलाफ बताते हुए खारिज करने का आग्रह किया था। उन्होंने कहा था कि जिला प्रशासन द्वारा मनमाने ढंग से नोटिस भेजे गए। एक नोटिस तो छह साल पहले 94 साल की उम्र में दिवंगत हो चुके व्यक्ति को भेजा गया।