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मीडिया के प्रति अविश्वास बढ़ाता फेक न्यूज का बढ़ता चलन

तनवीर जाफरी
मीडिया देश व समाज के सभी वर्गों व अंगों को एक दूसरे से बाखबर करने का दायित्व निभाता आ रहा है। जन मानस मीडिया द्वारा प्रकाशित ध्प्रसारित खबरों पर न केवल विश्वास करता है बल्कि इसके माध्यम से सामने आने वाले विषयों व मुद्दों को बहस,चर्चा व जानकारी का सशक्त जरीया भी समझता है।परन्तु दुर्भाग्यवश हमारे देश में लालची,सत्ताभोगी तथा व्यवसायिक सोच रखने वाले मीडिया से ही संबद्ध एक बड़े वर्ग ने मीडिया के सिद्धांतों से समझौता कर इसे कलंकित करने का गोया बीड़ा उठा रखा है। और इसी गैर जिम्मेदार व अनैतिक रास्ते पर चलते हुए मीडिया ने अपनी साख पर ऐसा बट्टा लगाया है कि पाठकों व दर्शकों के लिए अब इस बात का भेद कर पाना मुश्किल हो गया है कि कौन सी खबर सच्ची है कौन सी झूठी ? कौन सी खबर पेड न्यूज है और कौन सी पत्रकारिता के मापदंडों को पूरा करने वाली ? कौन सी फेक न्यूज है और कौन सी सच्ची खबर ? मीडिया द्वारा अपनी जिम्मेदारी से मुंह मोडऩे का सिलसिला वैसे तो गत 6-7 वर्षों से जारी है। परन्तु विगत कुछ महीनों में यानी कोरोना काल के समय से मीडिया ने फेक न्यूज व पूर्वाग्रह आधारित समाचारों तथा कपोल कल्पनाओं पर आधारित रेत पर किले बनाने का जो सिलसिला शुरू किया उसने मीडिया व उसकी विश्वसनीयता से करोड़ों देशवासियों का मोह भंग कर दिया।

भारतीय मीडिया ने कोरोना काल में सत्ता संरक्षण में कभी तब्लीगी जमाअत को ऐसे बदनाम करने की कोशिश की गोया भारत में कोरोना के वाहक व विस्तारक की मुख्य भूमिका जमाअतियों की ही रही हो। मुंबई में लॉक डाउन के दौरान अपने घर गांव की वापसी के लिए रेलवे स्टेशन के बाहर जब हजारों कामगार इकठ्ठा हुए तो हमारे देश का दूरदर्शी व काबिल मीडिया उन असहाय लोगों की भीड़ इक_ी होने का कारण,उनकी चिंताओं या मजबूरियों पर अपना ध्यान केंद्रित करने के बजाए यह देख रहा था कि स्टेशन के बाहर स्थित मस्जिद का इस इक_ी भीड़ से क्या संबंध हो सकता है ? उसके बाद सिलसिला शुरू हुआ बदनसीब फिल्म कलाकार सुशांत सिंह राजपूत व रिया चक्रवर्ती के मीडिया ट्रायल का। इस विषय ने लगभग तीन महीने तक न चाहते हुए भी जनता को मीडिया का वह नागिन डांस दिखाया जिसकी कल्पना भी नहीं की जा सकती थी।

बदतमीज,बेहूदे व असंस्कारी एंकर्स ने सत्ता का रहमो-करम हासिल करने व धन व लाभ अर्जित करने के लिए स्वयं को सत्ता का ऐसा भोंपू बना डाला कि कल तक अच्छी नजरों से देखे जाने वाले अनेक प्रसिद्ध एंकर व समाचार वाचक सत्ता के दलाल कहे जाने लगे। गत दिनों फेक न्यूज का एक और करिश्मा नजरों के सामने आया। गत 19 नवंबर को देश की विश्वसनीय समाचार एजेंसी पी टी आई के हवाले से यह खबर प्रसारित की गयी कि भारतीय सेना ने पाक अधिकृत कश्मीर के इलाके में घुस कर आतंकियों के कई लाँचिंग पैड ध्वस्त कर डाले। समाचार पत्रों व टी वी चौनल्स को जैसे ही यह आधी अधूरी व अपुष्ट खबर हाथ लगी ,भारतीय मीडिया अपने श्सबसे तेजश् के दावे को सच करने के लिए इसी खबर को लेकर उडऩे लगा। तरह तरह के आकर्षक शीर्षक गढ़े जाने लगे। किसी ने लिखा घुस कर मारा तो किसी ने लिखा श्चुन चुनकर माराश्,किसी ने लिखा पाक पर हमला तो कोई बता रहा था गुलाम कश्मीर पर भारतीय एयर स्ट्राइक आदि आदि। अभी यह अपुष्ट व गैर जिम्मेदाराना खबर प्रसारित हो ही रही थी कि इस खबर के चाँद घंटों के भीतर ही भारतीय सेना की ओर से इसी खबर से संबंधित एक स्पष्टीकरण जारी किया गया। भारतीय सेना की ओर से जारी खंडन एक दूसरी न्यूज एजेंसी ए एन आई ने जारी करते हुए भारतीय सेना के सैन्य अभियान के महानिदेशक लेफ्टिनेंट जनरल परमजीत सिंह के हवाले से यह स्पष्ट किया कि नियंत्रण रेखा के उस पार यानी पाक अधिकृत कश्मीर में भारतीय सेना द्वारा किसी तरह की कार्रवाई किये जाने की खबर पूरी तरह फर्जी है।

सेना ने गुरुवार (19 नवंबर) को पाक अधिकृत कश्मीर क्षेत्र में कोई भी कार्रवाई नहीं की। परन्तु इस खंडन के जारी होने से पहले ही अनेक टी वी चौनल इस फर्जी खबर पर तड़का लगाना शुरू कर चुके थे। यहाँ तक कि देश के सैकड़ों समाचार पत्रों ने भी पाक अधिकृत कश्मीर में एयर स्ट्राइक की झूठी खबर अपने पहले पन्ने पर बैनर न्यूज के रूप में प्रकाशित की। यह घटना इस बात का भी प्रमाण है कि मीडिया को अपने सबसे तेज के कथन से हटकर सबसे विश्वसनीय के कथन पर अमल करना चाहिए। बहरहाल,इसके पहले भी स्वयं को देश का नंबर वन बताने वाले टी वी चौनल्स अपने ऐसे ही आचरण के चलते कई बार अदालतों की घुड़कियाँ सुन चुके हैं। कई बार इन्हें माफीमांगनी पड़ी है। परन्तु अपनी जिम्मेदारियों के विपरीत अपने निर्धारित एजेंडे पर चलने की इनकी जिद व सनक के चलते गोया इन्होंने मीडिया के सिद्धांतों की बलि चढ़ाने की सुपारी ले रखी है। टी आर पी बढ़ाने का फर्जी खेल खेलने वाले यह फर्जी एंकर व पत्थरकार कभी स्टूडियो में मौलवी-पंडित को भिड़ा कर खुद तो मजे लेते हैं और देश में तनाव पैदा करते हैं।कभी स्टूडियो में भारत व पाक में बैठा मीडिया का ही कोई मोहरा रुपी अतिथि एक दूसरे को राकेट व मिसाइल के कट आउट दिखा कर दोनों देशों का माहौल खराब करता है। जिस तरह एंकर व पत्रकार फेक व फर्जी होते हैं ठीक उसी तरह इनके अनेक अतिथि भी फर्जी व फेक होते हैं। इनकी जल्दबाजी व एजेंडा पत्रकारिता का ही नतीजा है कि फेक न्यूज का चलन दिन प्रति दिन बढ़ता ही जा रहा है। और इसमें कोई संदेह नहीं कि फेक न्यूज के इस बढ़ते चलन से आम लोगों का मीडिया के प्रति अविश्वास भी और अधिक बढ़ेगा।

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