महिला खिलाड़ियों को पुरुषों के मुक़ाबले एक तिहाई से कम मीडिया कवरेज मिलती है -बीबीसी

बीबीसी की एक रिसर्च में सामने आया है कि खेल जगत की ख़बरों में महिला खिलाड़ियों को 30 फ़ीसद से भी कम कवरेज मिलती है. इस रिसर्च के सैंपल साइज़ के लिए 2017 से 2020 के बीच दो दैनिक अंग्रेज़ी अख़बारों के 2000 समाचार पत्रों का अध्ययन किया गया है. शोधकर्ताओं ने पाया कि एक फ़ीसद से भी कम महिला खिलाड़ियों से जुड़ी ख़बरें पहले पन्ने पर जगह पा सकीं.
मीडिया में महिला खिलाड़ियों को कितनी जगह – साल 2017 में रिसर्च की शुरूआत में 10 खेल की ख़बरों में से केवल 1 समाचार महिला खिलाड़ियों के बारे में था. हालाँकि, साल 2020 के अंत तक इसमें काफ़ी सुधार हुआ लेकिन रिसर्च बताता हैं कि इस अवधि के दौरान कवरेज में काफ़ी उतार-चढ़ाव देखा गया. इस तरह के ट्रेंड के पीछे एक अहम कारण बड़े खेल इवेंट का ऐलान रहा है, जैसे- ओलंपिक्स, कॉमलवेल्थ गेम्स, टेनिस टूर्नामेंट, बैडमिंटन लीग का ऐलान. इन इवेंट के ऐलान ने महिला खिलाड़ियों की कवरेज में एक तरह के उत्प्रेरक का काम किया है. महिला खिलाड़ियों को पुरूषों के मुक़ाबले एक तिहाई से भी कम कवरेज मिलती है
एक उदाहरण के तौर पर समझिए कि कोविड-19 के दुनियाभर में छा जाने से पहले माना जा रहा था कि टोक्यो ओलंपिक साल 2020 में होगा. इसलिए ओलंपिक्स को क्वालिफ़ाई करने से लेकर नए रिकॉर्ड बनाने की ख़बरों को मीडिया में जगह मिल रही थी. दूसरा उदाहरण है आईसीसी महिला टी20 विश्वकप का. साल 2020 की शुरूआत में ये विश्वकप टूर्नामेंट हुआ जहां भारतीय महिला क्रिकेट टीम फ़ाइनल में पहुँची. इनमें सबसे ज्यादा सुर्खियां महिला बल्लेबाज़ शेफ़ाली वर्मा ने बटोरीं. पूरे टूर्नामेंट में शेफ़ाली ने दमदार बल्लेबाज़ी की और अख़बारों में ऐसी कई हेडलाइंस छाई रहीं जिनका शीर्षक था- ‘शेफ़ाली वर्मा कौन हैं?’, ‘शेफ़ाली वर्मा हमें प्रेरणा देती हैं. ‘
किस खेल को मिली सबसे ज़्यादा तवज्जो? – रिसर्च में पाया गया कि महिला खिलाड़ियों से जुड़ी ख़बरों के मामले में टेनिस एक ऐसा खेल था जिसे बड़े पैमाने पर कवर किया गया. इसके अलावा बैडमिंटन, एथलेटिक्स और बॉक्सिंग को भी प्रमुखता के साथ कवर किया गया. बीबीसी ने रिसर्च में पाया कि पीवी सिंधु, सानिया मिर्जा, साइना नेहवाल और मैरी कॉम जैसे खिलाड़ियों को फ्रंट और स्पोर्ट्स पेज दोनों पर जगह मिली. महिला खिलाड़ियों से जुड़ी खबरों के मामले में टेनिस एक ऐसा खेल था जिसे बड़े पैमाने पर कवर किया गया. दिलचस्प बात यह है कि सिंगल खिलाड़ियों को मिक्स्ड खिलाड़ियों या टीमों के मुक़ाबले अधिक कवरेज मिली. लगभग 50 प्रतिशत कहानियाँ एकल खिलाड़ियों के बारे में थीं, जबकि 21 प्रतिशत कहानियों में पुरुषों और महिलाओं दोनों यानी मिक्स्ड खिलाड़ियों को शामिल किया गया था.
कवरेज की गुणवत्ता – पुरुष खिलाड़ी बड़े और एक्शन से भरपूर तस्वीरों के साथ स्पोर्ट्स पेज पर हावी दिखे लेकिन महिलाओं से संबंधित खेलों को शायद ही इतनी विस्तृत जगह मिलती है. रिसर्च में पाया गया कि महिला खिलाड़ियों से जुड़ी कहानियों में इस्तेमाल की गई तस्वीरें या तो आम तौर पर आकार में छोटी थीं या उनकी कोई तस्वीर नहीं थी. मैरी कॉम, पीवी सिंधु और साइना नेहवाल जैसे जाने-माने एथलीटों से जुड़ी कहानियों में ही तस्वीरें थीं. लगभग 40 प्रतिशत महिला खिलाड़ियों की ख़बर में कहानियों के साथ तस्वीर नहीं थी. पुरुष खिलाड़ी बड़े और एक्शन से भरपूर तस्वीरों के साथ स्पोर्ट्स पेज पर हावी दिखे लेकिन महिलाओं से संबंधित खेलों को शायद ही इतनी विस्तृत जगह मिलती है. महिला खिलाड़ियों को लेकर छपी रिपोर्ट की प्रकृति समझने के लिए शोधकर्ताओं ने न्यूज़ रिपोर्ट्स को कुछ कैटेगरी में बांटा, जैसे- इंटरव्यू, फ़ोटो-फ़ीचर, स्पेशल फ़ीचर और ऑर्टिकल. ज्यादातर रिपोर्ट एक अपडेट समाचार पर केंद्रित थे जो एक ख़ास खेल इवेंट के बारे में थी. किसी खिलाड़ी विशेष की प्रोफ़ाइल और हाइलाइट्स बहुत कम दिखे. उदाहरण के लिए, रिसर्च के तीने सालों में केवल 9 बार ही स्पोर्ट्सवुमन को कवर करते हुए एक फोटो फीचर प्रकाशित किया गया. और इसमें घरेलू और अंतरराष्ट्रीय दोनों खिलाड़ी शामिल रहीं.
सबसे आगे हरियाणा – रिसर्च में इस बात का अध्ययन भी किया गया कि खेल से जुड़ी ख़बरों में किस राज्य का सबसे ज़्यादा ज़िक्र है. इससे सबसे आगे हरियाणा राज्य का नाम रहा. 60 बार हरियाणा राज्य का आर्टिकल्स में ज़िक्र मिला वहीं आंध्र प्रदेश का 28 बार और पूर्वोत्तर राज्य मणिपुर का नाम 20 बार इस तरह की रिपोर्ट्स में पाया गया. ज्यादातर ख़बरों में उन्हीं खिलाड़ियों के साथ उनके राज्य का नाम लिखा गया जो प्रसिद्ध नहीं थे. जैसे कोई खिलाड़ी अगर हरियाणा से ताल्लुक़ रखती हैं और उनके लिए ‘झज्जर गर्ल ‘,’हरियाणा बॉक्सर, ‘भिवानी गर्ल’ जैसे की-वर्ड का इस्तेमाल किया जाता है ताकि ये जानकारी दी जाए कि वो किस राज्य या ज़िले से आती हैं. इसमें बीबीसी को ‘असम गर्ल’,’ दिल्ली गर्ल’ और ‘महाराष्ट्र गर्ल’ जैसे की-वर्ड भी मिले.
महिलाओं से जुड़े विशेषणों का इस्तेमाल – महिला खिलाड़ियों की ख़बरों की हेडलाइन में एक ख़ास तरह के विशेषणों का इस्तेमाल किया जाता है जो ज्यादातर स्त्रीवाची शब्द होते हैं. उदाहरण के लिए अगर मैरी कॉम से जुड़ी ख़बर है तो इसके लिए इस्तेमाल होने वाले विशेषण थे- ‘मैगनिफ़िशेंट मैरी’, ‘आयरन लेडी’, ‘एजलेस मेरी’. इसके अलावा क्वीन जैसे शब्दों का इस्तेमाल भी महिला खिलाड़ियों के लिए कई बार किया जाता है. ‘स्वीट कैरोलीन’, ‘क्वीन सोफ़िया’, ‘कनाडा की क्वीन’, ‘जापान की स्विम क्वीन’, ‘बैडमिंटन क्वीन’, ‘टीनएज शूटिंग सेंसेशन’, ‘साइमन,डार्लिंग ऑफ़ पेरिस’, ‘ट्रैक क्वीन’, ‘कमबैक क्वीन’ जैसे कई शब्दों का इस्तेमाल किया गया. ऐसे बेहद कम ही उदाहरण मिले जहां महिला खिलाड़ियों के लिए ‘फाइटर ‘, ‘रेज़र-शार्प’, ‘आयरन लेडी’, ‘फेन्सर ‘और चैंपियन जैसे शब्द हेडलाइन या लेख के भीतर इस्तेमाल किए गए.
रिसर्च की कार्यप्रणाली और सीमाएँ – इस रिसर्च प्रोजक्ट की मैथडोलॉजी के लिए भारत के दो बड़े अंग्रेजी दैनिक अख़बार ‘टाइम्स ऑफ इंडिया’ और ‘हिंदुस्तान टाइम्स’ के कंटेंट का विश्लेषण किया गया है. शोध के लिए चयनित समय अवधि दिसंबर 2017 से अक्टूबर 2020 के बीच है यानी कुल तीन साल का समय. ये समय अवधि अख़बार के डिजिटल आर्काइव की उपलब्धता पर आधारित थी. अख़बार के दिल्ली संस्करण का अध्ययन किया गया. इसके लिए फ्रंट पेज और स्पोर्ट्स पेज को सैंपल के रूप में चुना गया था. लेकिन अगर शोधकर्ताओं को किसी अन्य पेज पर इसी तरह की कहानियां मिली तो इसे भी शोध में दर्ज किया गया. लेकिन मुख्य पन्ना और खेल पन्ने को छोड़ अन्य पन्नों पर ज्यादा ज़ोर नहीं दिया गया है.
सभी कहानियों और खेल पन्नों पर प्रकाशित सभी तस्वीरों को गिना गया है. तस्वीरों के साथ-साथ फ्रंट पेज पर प्रकाशित खेल की कहानियों और तस्वीरों को भी गिना गया. महिला खिलाड़ियों पर की गई कहानियों को अलग से गिना गया, इसके लिए भी कई पहलुओं को ध्यान में रखा गया जैसे कि किस तरह के खेल की कवरेज हुई, कितने खिलाड़ियों की कवरेज हुई , कितनी बड़ी ख़बर लिखी गई, तस्वीर का आकार , किस तरह की तस्वीर का इस्तेमाल हुआ और खिलाड़ियों को किस तरह का विशेषण दिया गया. इसके अलावा ये भी देखा गया कि लेख इंटरव्यू था, साधारण ख़बर थी या फिर फ़ीचर था. इस रिसर्च की सीमाएं ये थी कि इसकी अवधि तीन साल की थी. ख़बरों के मानक में कॉलम के आकार को बड़ा आधार बनाया गया क्योंकि हम डिजिटल पेपर का अध्ययन कर रहे थे. ऐसे में हमने इन आर्टिकल को मिलने वाली जगह पर ध्यान केंद्रित रखा.