बांझिन पुकारेली दूनू कर जोरे…
कार्यशाला का दूसरा दिन, छठ गीत सीखने की होड़
लखनऊ । छठ पूजा के पारम्परिक गीत सीखने की होड़ लगी हुई है। अन्तर्राष्ट्रीय भोजपुरी सेवा न्यास द्वारा लोक संस्कृति शोध संस्थान के सहयोग से आयोजित आनलाइन में देश के कोने कोने से लोग जुड़ रहे हैं। इनमें किशोर वर्ग के प्रतिभागी तो हैं ही अनेक वरिष्ठ जन भी छठ पूजा के मनोहर गीत सीखने का मोह संवरण नहीं कर पा रहे हैं। शुक्रवार को कार्यशाला के दूसरे दिवस वरिष्ठ लोकगायिका श्रीमती आरती पाण्डेय ने अघ्र्य की बेला में गाये जाने वाले गीतों का अभ्यास कराया। कहा कि लोक में सूर्यदेव का मानवीकरण किया गया है। छठ के गीतों में जब व्रती कमर भर पानी में खड़े होकर सूर्योदय की प्रतीक्षा करते हैं तब व्रतियों की पीड़ा मां को सहन नहीं होती और वह सूर्य को जगाती है। कहती है कि जल्दी जाओ और व्रतियों का अघ्र्य स्वीकार करो। कार्यशाला समन्वयक सुधा द्विवेदी ने बताया कि छठ गीत कार्यशाला में किशोर वर्ग के प्रतिभागियों में तनु चौहान, गुरुग्राम से शिवांगिनी, कानपुर से गुंजा सिंह ठाकुर, गौरव गुप्ता, विद्याभूषण सोनी, सौरभ कमल तो हैं ही हर आयु वर्ग के प्रतिभागी सम्मिलित हैं जिसमें रूपाली श्रीवास्तव, अंजलि सिंह, रीता श्रीवास्तव, मधु श्रीवास्तव ‘नर्मदा मधु श्रीवास्तव ‘शक्ति , मीरा दीक्षित, सुमन पाण्डा, ज्योति किरन रतन, सीमा अग्रवाल, आशा श्रीवास्तव, मंजू श्रीवास्तव, रश्मि उपाध्याय, कवलजीत सिंह, रेनू दुबे, कुसुम वर्मा, रेखा अग्रवाल, निशा जायसवाल, साधना मिश्रा, संगीता खरे, ठाकुर, शारदा पाण्डेय, ऊषा किरण पाण्डेय, विजयलक्ष्मी, सरिता तिवारी, प्रीति सिंह परिहार, आरती तिवारी, कीर्तिका श्रीवास्तवा, नीलम द्विवेदी, सरिता अग्रवाल, ऊषा सिंह, रिंकी सिंह, तनु चौहान, कान्ति दीक्षित, अर्चना अग्रवाल, सुमन पांडेय, गायत्री त्रिपाठी, मंजुला पांडेय आदि प्रमुख हैं। कार्यशाला में पटना के घाट पर हमहूं अरघिया देब, कउने खेते जनमल धान सुधान हो कउने खेते डटहर पान हो, आठही काठ के कोठरिया हो दीनानाथ, बांझिन पुकारेली दूनू कर जोरे उगीं हे सुरुजदेव भोर भिनुसरवा अरघ केरि बेरिया, देहीं न छठी मइया आसीस आपन… जैसे गीतों का अभ्यास कराया गया।