बंगाल विधानसभा में पहली बार बाम मोर्चा व कांग्रेस का एक भी विधायक नहीं,बाममोर्चा में दो फाड़

कोलकाता :पश्चिम बंगाल विधानसभा चुनाव में टीएमसी और बीजेपी के बीच लड़ाई में पूरी तरह साफ हो जाने वाली भारतीय कम्युनिस्ट पार्टी (मार्क्सवादी) के कुछ नेताओं ने वाम मोर्चे के गठबंधन की चुनावी रणनीति पर सवाल उठाया है। गुरुवार को यह मुद्दा और गरम हो गया जब वाम मोर्चे के सहयोगियों की एक बंद कमरे में हुई बैठक में हंगामा खड़ा हो गया।
चुनाव में करारी हार मिलने के बाद गुरुवार को वाम मोर्चे के सहयोगियों की एक बंद कमरे में बैठक हुई जहां सीपीआईएम पर आरोप लगाया किया उसने बिना किसी विस्तृत बातचीत के आईएसएफ के साथ जाने का फैसला किया।
बता दें कि पहली बार, बंगाल विधानसभा में न तो कोई वामपंथी विधायक पहुंचा और न हीं कोई कांग्रेसी। यहां केरल में माकपा की जीत के ठीक उल्टा हुआ है। बंगाल चुनाव में सीपीआईएम, कांग्रेस और आईएसएफ का संयुक्त मोर्चा गठबंधन था। इनमें सिर्फ आईएसएफ की राष्ट्रीय सेक्युलर मजलिस पार्टी को ही एक सीट मिल पाई।
दक्षिण 24 परगना की भांगर सीट से अब्बास सिद्दीकी के भाई नौशाद सिद्दीकी ही जीत दर्ज करा पाए। बंगाल में 292 सीटों पर मतदान हुआ था उनमें टीएमसी को 213 जबकि बीजेपी को 77 सीट मिली। बाकी दो सीटों मतदान नहीं हो पाया क्योंकि वहां कोरोना की वजह से उम्मीदवार की मौत हो गई थी।
चुनाव हारने वाले माकपा के तीन वरिष्ठ नेताओं ने आईएसएफ के साथ गठबंधन पर सवाल उठाए हैं। आवाज उठानों वालों में अशोक भट्टाचार्य हैं जो पूर्व शहरी विकाम मंत्री हैं और ये सिलीगुड़ी से चुनाव हार गए। दूसरा कांति गांगुली जो कि रायडीघी सीट से चुनाव हार गए और तीसरा तन्मय भट्टाचार्य हैं जो कि दुमदुम सीट से चुनाव हार गए।
तन्मय भट्टाचार्य ने कहा कि नेतृत्व को जिम्मेदारी स्वीकार करनी होगी। आईएसएफ के साथ गठबंधन की समीक्षा की जानी चाहिए। क्या लोगों ने इसे स्वीकार किया? जो लोग ऊपर से निर्णय लेते हैं, उन्हें जवाबदेह होना चाहिए। गांगुली ने कहा कि नेतृत्व को हमारी हार का कारण स्पष्ट करना होगा। वहीं, अशोक भट्टाचार्य ने कहा कि यह स्पष्ट है कि सभी मुस्लिम वोट टीएमसी में गए। हमें कुछ भी नहीं मिला।