पूर्व प्रधानमंत्री पीवी नरसिम्हा राव को मुख्यमंत्री अरविंद केजरीवाल ने किया नमन
नई दिल्ली। मुख्यमंत्री अरविंद केजरीवाल ने भारत के पूर्व प्रधानमंत्री पीवी नरसिम्हा राव की जन्म जयंती पर उन्हें नमन किया है। मुख्यमंत्री ने ट्वीट कर संदेश जारी करते हुए लिखा कि ‘ पूर्व प्रधानमंत्री पी वी नरसिम्हा राव जी की जयंती पर उन्हें नमन।’
पी. रंगा राव के पुत्र पी.वी. नरसिंह राव का जन्म 28 जून 1921 को करीमनगर में हुआ था। उन्होंने हैदराबाद के उस्मानिया विश्वविद्यालय, मुंबई विश्वविद्यालय एवं नागपुर विश्वविद्यालय से अपनी पढ़ाई की। विभिन्न राजनीतिक और प्रशासनिक पदों पर रहने के साथ वर्ष 1991 में राव जब प्रधानमंत्री बने तो उनकी उम्र 71 साल थी। आम लोग उनके बारे में ज़्यादा जानते नहीं थे। हालांकि, अपने लंबे सार्वजनिक जीवन में राव आंध्रप्रदेश के मुख्य़मंत्री रहे। बाद में वे केंद्रीय गृह, विदेश, वित्त, मानव संसाधन जैसे महत्वपूर्ण मंत्रालयों के मंत्री भी रहे। लेकिन ये बात सही है कि भारत में आकस्मिक या अप्रत्याशित रूप से बनाए गए प्रधानमंत्रियों में पहले प्रधानमंत्री पीवी नरसिम्हा राव ही थे।
वरिष्ठ व अनुभवी राजनीतिज्ञ नरसिम्हा राव ने देश के लिए कई बहुमूल्य कामों को अंजाम दिए। सरकार संभालने के बाद उन्होंने राजनीतिक स्थिरता का माहौल बनाया। कांग्रेस को सुदृढ़ किया, साथ ही अपने कामकाज से यह संदेश भी दिया कि नेहरू-गांधी परिवारों से ही राजकाज चलेगा, ऐसा नहीं है। देश में आर्थिक सुधारों का बड़ा श्रेय पूर्व प्रधानमंत्री पीवी नरसिम्हा राव को दिया जाता है।अपने कार्यकाल में राव ने कई ऐतिहासिक फैसले किए, ताकि देश गरीबी से बाहर आ सके। बता दें कि वो ऐसा दौर था, जब देश को अपना सोना तक विदेशों में गिरवी रखना पड़ा था। इसके बाद राव ने देसी बाजार को खोल दिया था, जिसके कारण वे उस दौर में आलोचना का शिकार भी हुए।
उनकी सरकार जाने के बाद से वो एक तरह से राजनीतिक हासिये पर चले गए। वर्ष 1996 के बाद जब व प्रधानमंत्री पद से हटे उसके बाद कांग्रेस पार्टी में उनकी वो स्थिति नहीं रह गई जैसी पहले हुआ करती थी। वर्ष 2004 में सोनिया गांधी के नेतृत्व वाले संयुक्त प्रगतिशील गठबंधन की सरकार केंद्र में सत्तासीन हुई। इसके आठ महीने बाद पीवी नरसिम्हा राव की मौत हो गई।अंतिम समय में वे “अयोध्या 6 दिसंबर 1992” नामक अपनी पुस्तक पर काम करने में लगे रहे।मृत्यु से पूर्व वे किताब तैयार कर चुके थे, लेकिन इसे उन्होंने अपने जीवन में प्रकाशित नहीं किया, बल्कि यह इच्छा व्यक्त की कि किताब उनकी मौत के एक साल बाद प्रकाशित की जाए।