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नए परिसीमन के प्रस्ताव से जम्मू को कितना फायदा

जम्मू:जम्मू कश्मीर में विधानसभा सीटों का परिसीमन करने वाले आयोग ने नए चुनावी नक्शे का ड्राफ्ट सौंप दिया है। इसमें जम्मू को 6 सीटें अतिरिक्त देने और 1 सीट कश्मीर में बढ़ाने का प्रस्ताव दिया गया है। इसके अलावा 16 सीटें दलितों और आदिवासी समुदायों के लिए आरक्षित की गई हैं। इस ड्राफ्ट को लेकर नेशनल कॉन्फ्रेंस और पीडीपी समेत कई दलों ने आपत्ति जताई है। 2011 की जनगणना के आंकड़ों के मुताबिक कश्मीर घाटी में जम्मू के मुकाबले 15 लाख आबादी अधिक है। ऐसे में विपक्षी दल सवाल उठा रहे हैं कि जम्मू को 6 अतिरिक्त सीटें देने का अर्थ राजनीति का केंद्र कश्मीर से अलग हटाना है।

5 अगस्त, 2019 से पहले तक राज्य में 87 विधानसभा सीटें थीं। राज्य के पुनर्गठन के बाद जम्मू कश्मीर में 83 सीटें ही बचीं। इनमें से 37 सीटें जम्मू और 46 सीटें कश्मीर में थीं। अब जम्मू में 6 सीटें बढ़ेंगी तो आंकड़ा 43 हो जाएगा और कश्मीर में कुल सीटों की संख्या 47 होगी। इस तरह केंद्र शासित प्रदेश में 90 सीटें हो जाएंगी। हालांकि इसे लेकर ही आपत्ति भी है कि जम्मू और कश्मीर संभाग के बीच पहले जो 9 सीटों का अंतर था, वह अब 4 का ही रह जाएगा। इसके अलावा दलित और आदिवासी समुदाय के आरक्षण से भी गणित अब काफी बदल सकता है।
सूत्रों के मुताबिक परिसीमन आयोग ने अपने ड्राफ्ट में जम्मू संभाग के कठुआ, उधमपुर, सांबा, डोडा, किश्तवाड़, राजौरी जिलों में 1-1 सीट बढ़ाने का प्रस्ताव दिया है। इसके अलावा कश्मीर के कुपवाड़ा में एक सीट बढ़ाने की बात है। दरअसल कठुआ, सांबा और उधमपुर हिंदू बहुल जिले हैं। यहां हिंदू समुदाय की आबादी 86 से 88 फीसदी के बीच है। इसके अलावा किश्तवाड़, डोडा और राजौरी में भी भले ही मुस्लिम आबादी अधिक है, लेकिन हिंदू भी 34 से 45 फीसदी तक हैं। जो चुनावी गणित बदलने का दम रखते हैं। भाजपा के आलोचकों का कहना है कि इस नए ड्राफ्ट को आबादी को ध्यान में रखकर बनाया गया है। इसमें उन जिलों को ज्यादा सीटें दी जा रही हैं, जहां हिंदू आबादी अच्छी संख्या में है।
भाजपा लंबे समय से जम्मू को विधानसभा में कम प्रतिनिधित्व मिलने का मुद्दा उठाती रही है। 2014 के विधानसभा चुनाव में भाजपा पहली बार इस इलाके में 25 सीटें जीत गई थी और पीडीपी के साथ सत्ता में भागीदार बनी थी। पहली बार राज्य की सत्ता में हिस्सेदारी रखने वाली भाजपा को लगता है कि जम्मू की सीटें बढ़ने से वह अकेले अपने दम पर भी सत्ता में आ सकती है। ऐसा नहीं भी होता है तो वह सीनियर पार्टनर के तौर पर गठबंधन में शामिल होने की ताकत हासिल कर लेगी। दरअसल विधानसभा में पारित प्रस्ताव के तहत राज्य में 2031 तक परिसीमन नहीं हो सकता था। लेकिन 2019 में राज्य का ही पुनर्गठन हो गया। ऐसे में तत्कालीन विधानसभा से पारित नियम का कोई औचित्य नहीं बचा और अब नए सिरे से परिसीमन हो रहा है।

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