नई दिल्ली। दिल्ली दंगे की साजिश के मामले में जेएनयू के पूर्व छात्र उमर खालिद की जमानत अर्जी का विरोध करते हुए विशेष लोक अभियोजक अमित प्रसाद ने कोर्ट में कहा कि प्रदर्शन के दौरान साजिशकर्ताओं को स्थानीय लोगों का साथ नहीं मिल रहा था। भीड़ जुटाने के लिए वे धरनास्थलों पर कलाकारों के समूह हो बुलाकर ‘डमरूबाजी’ करा रहे थे। जैसे ही 11 फरवरी 2020 को अमेरिका के तत्कालीन राष्ट्रपति के दिल्ली आने की पुष्टि हुई, साजिशकर्ताओं ने ‘डमरूबाजी’ बंद कर विरोध की नई रणनीति अपनाई। इस संबंध में उन्होंने अतिरिक्त सत्र न्यायाधीश अमिताभ रावत की कोर्ट में शनिवार को कथित तौर पर साजिशकर्ताओं के वाट्सएप ग्रुप के चैट प्रस्तुत किए।
कुशीनगर में भी खत्म हुई प्रतिद्वंद्विता;
विशेष लोक अभियोजक अमित प्रसाद ने कोर्ट में कहा कि दंगे से पहले उत्तर-पूर्वी दिल्ली में बने विभिन्न धरनास्थल वास्तविक नहीं थे। तर्क देते हुए उन्होंने कहा कि धरनास्थल वास्तविक होते तो इनमें स्थानीय लोग शामिल होते। कथित तौर पर साजिशकर्ताओं की चैट से जाहिर होता है कि इन धरनास्थलों का प्रबंधन वाट्सएप पर बने दिल्ली प्रोटेस्ट सपोर्ट ग्रुप (डीपीएसजी) समेत कई अन्य ग्रुप के जरिये किया जा रहा था। उन्होंने अपनी बता को और तथ्यात्मक रूप से रखने के लिए डीपीएसजी के कुछ ऐसे चैट दिखाए, जिसमें धरनास्थलों की पल-पल की जानकारी अपडेट हो रही थी। विभिन्न वाट्सएप ग्रुप में एक जैसे चैट के माध्यम से उन्होंने इनके बीच की कड़ी को जोड़ा।
उन्होंने यह भी दिखाया कि किस तरह से टाइमलाइन के साथ कथित साजिशकर्ता रणनीति तैयार करते थे। कोर्ट ने पूछा कि इसमें उमर खालिद कहां है तो अभियोजक ने कहा कि डीपीएसजी के ग्रुप में उमर खालिद शामिल था। अमित प्रसाद ने कहा कि धरनास्थलों पर कथित तौर पर साजिशकर्ताओं के विभिन्न समूह अपना-अपना काम कर रहे थे। खुरेजी और कर्दमपुरी समेत कई धरनास्थलों पर यूनाइटेड अगेंस्ट हेट ग्रुप की निगरानी थी। हर हलचल संबंधित वाट्सएप ग्रुप पर अपडेट करते थे, जिसके अंश डीपीएसजी में दिखाई देते थे। उन्होंने कहा कि कई संदेश कोड वर्ड में कहे जाते थे।
उदाहरण के तौर पर उन्होंने ‘सावित्री-फातिमा’ शब्द के उपयोग को दिखाया, जिसका इस्तेमाल चैट में महिलाओं के बारे जिक्र करते हुए किया गया था। इसी के साथ इस मामले में कई अन्य आरोपितों की जमानत अर्जी का विरोध भी विशेष लोक अभियोजक ने किया।