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जानें क्‍यों हुए इसके 7 टुकड़े, ऊंट की कुर्बानी देखने लोगों ने ऐसे लगाई जान की बाजी

वाराणसी. बकरीद के दूसरे दिन बुधवार को यहां हजारों लोगों के बीच ऊंट की कुर्बानी दी गई। इसका उद्देश्य यह है कि इंसान के अंदर की बुराई खत्‍म हो और वह जीवन भर सच्‍चाई के रास्‍ते पर चले। मान्‍यता है कि‍ इसमें शामि‍ल होने वालों की हर प्रकार से तरक्‍की होती है। इसीलि‍ए प्रदेश भर से आए लोग जान जोखि‍म में डालकर छतों, खि‍ड़कि‍यों आदि‍ पर खड़े होकर इसे देखते हैं। ब्रि‍टि‍श काल से चली आ रही है परंपरा…
– कुर्बानी देने वाले परिवार के मुखिया इलियास ने बताया कि ब्रिटिश काल के समय साल 1912 से उसके पूर्वजों ने इसकी शुरुआत की थी।
– मन्‍नत मांगने वाले सात परिवार कुर्बानी का ऊंट खरीदकर लाते हैं।
– उन परि‍वारों के लि‍ए ये ऊंट कुर्बान होता है। इसलि‍ए इसके सात टुकड़े कि‍ए जाते हैं।
– सातों परिवार में ये टुकड़े बांट दि‍ए जाते हैं।
– सभी अपने-अपने हिस्से को मोहल्ले में बांट देते हैं।
– कुर्बानी के बाद ऊंट के हिस्सों से ताबीज भी बनाया जाता है।
– मान्‍यता है कि‍ हर बाधाओं और मुश्‍कि‍लों से ये कुर्बानी बचाता है और तरक्‍की देता है।
– इस बार का ऊंट मिर्जापुर से 40 हजार रुपए में खरीद कर लाया गया था।
– इसे कुर्बानी से 10 दिन पहले वहां से खरीदा गया था।
क्यों दी जाती है कुर्बानी
– यहां के मौलाना मो. कलीम ने बताया कि‍ सैकड़ों साल पहले हजरत इब्राहिम को स्वप्न आया कि अपने बेटे हजरत इस्माइल को कुर्बान कर दो।
– सपने को हकीकत का रूप देने वो निकल पड़े।
– उन्हें रास्ते में तीन शैतान मिले जो उन्‍हें इस काम से रोकना चाहते थे।
– अल्लाह का ऐसा चमत्कार हुआ कि बेटे को अल्लाह ने बचा लिया। उसकी कुर्बानी रुक गई।
– उसकी जगह डुम्बा (बकरी) प्रकट हो गई और उसकी कुर्बानी दे दी गई।
– इसलिए कहा जाता है कि‍ उनका मन सच्‍चा था। सच्ची इबादत से एक बड़ी समस्‍या टल गई।
– उनके अंदर की बुराई खत्‍म हो गई और वह जीवन भर सच्‍चाई के रास्‍ते पर चले।
– तभी से कुर्बानी की परंपरा चली आ रही है।

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