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जाने प्रदेश सरकार के कौन से फैसले पर सुप्रीम कोर्ट कहा कि करे फिर विचार

नई दिल्ली। उच्चतम न्यायालय ने उत्तर प्रदेश सरकार को उम्रकैद के दोषियों की समयपूर्व रिहाई की अपनी नीति की फिर से जांच करने का निर्देश दिया है। इसमें न्यूनतम आयु 60 वर्ष निर्धारित की गई है। न्यायमूर्ति एस के कौल और न्यायमूर्ति एम एम सुंदरेश की पीठ ने एक दोषी की अपील पर विचार करते हुए यह टिप्पणी की जिसमें जेल से समय से पहले रिहा करने का निर्देश देने की मांग की गई थी।

गौरतलब है कि कोर्ट ने हाल ही में दिए अपने एक आदेश में कहा था कि उत्तर प्रदेश सरकार के वकील के अनुसार छूट नीति को भी इस न्यायालय के समक्ष चुनौती दी जा रही है, लेकिन फिर वह राज्य को इस मुद्दे पर फिर से आने से नहीं रोक सकता। शीर्ष अदालत ने याचिका पर सुनवाई करते हुए कहा कि आज तक दोषी बिना किसी छूट के 22 साल से अधिक की सजा काट चुका है।

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इस नीति के अनुसार सभी अपराधी जिन्होंने 60 वर्ष की आयु पूरी कर ली है और बिना किसी छूट के 20 वर्ष की हिरासत में और 25 वर्ष की छूट के साथ समय से पहले रिहाई के लिए विचार करने के पात्र हैं। पीठ का कहना है कि हम 60 वर्ष की न्यूनतम आयु निर्धारित करने वाले इस खंड की वैधता पर एक बड़ा संदेह है। इसका अर्थ ये होगा कि 20 साल के युवा अपराधी को छूट के लिए उसके मामले पर विचार करने से पहले 40 साल की सेवा करनी होगी। कोर्ट ने कहा कि हमें इस पहलू का परीक्षण करने की जरूरत नहीं है।

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हम राज्य सरकार से नीति के इस हिस्से की फिर से जांच करने की अपील करते हैं। ये नीति पहली निगाह में सही नहीं लगती है। कोर्ट ने यूपी सरकार से इस बात की भी अपील की है कि वो इस खंड को जोड़ने पर नए सिरे से विचार करे। इसके लिए कोर्ट ने चार माह की समय सीमा भी निर्धारित की है। शीर्ष अदालत ने सक्षम प्राधिकारी को तीन महीने के भीतर दोषी की याचिका पर विचार करने का निर्देश दिया।

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