राष्ट्रीय

जानिए क्या है वाजपेयी का सुशासन सिद्धांत

पूरा देश 25 दिसंबर को क्रिसमस के त्यौहार के साथ ही पूर्व प्रधानमंत्री अटल बिहारी वाजपेयी का जन्म दिन भी मना रहा है. वाजपेयी ने देश को अपने व्यवहार और समावेशी नीति के जरिए ऐसे लोकतांत्रिक मानदंड स्थापित किए जिनकी मिसाल आज भी दी जाती है. उनका सुशासन का सिद्धांत (Doctrine) भी प्रसिद्ध है. इसी वजह से वाजपेयी के सम्मान में ही हर साल 25 दिसंबर को सुशासन दिवस के रूप में मनाया जाता है. इस दिवस को मानना का उद्देश्य भारतवासियों को सरकार की लोगों के प्रति जिम्मेदारियों के लिए जागरूकता फैलाना है.

अटल बिहारी वाजपेयी का जन्म 25 दिसंबर 1924 को, मध्य प्रदेश के ग्वालियर में एक ब्रह्माण्ड परिवार में हुआ था. उनके पिता कृष्ण बिहारी वाजपोयी स्कूल में अध्यापक थे. उनकी शुरुआती शिक्षा ग्वालियर के सरस्वती शिशु मंदिर में और उसके बाद में उज्जैन के बारनगर के एंग्लोवर्नाकुलर मिडिल स्कूल में हुई थी. ग्वालियर के विक्टोरिया कॉलेज से उन्होंने हिंदी, संस्कृत और अंग्रेजी में बीए, और कानपुर के डीएवी कॉलेज से राजनीति शास्त्र में एमए की डिग्री हासिल की.
1939 में ही वे राष्ट्रीय स्वयं सेवक संघ से जुड़े. आजादी के बाद उन्हें पंडित दीन दयाल उपाध्याय और फिर श्यामा प्रसाद मुखर्जी जैसे नेताओं के साथ काम करने का मौक मिला. वे हमेशा ही अपने वाककौशल से अपने विरोधियों तक को प्रभावित करते रहे. वे संयुक्त राष्ट्र में हिंदी में भाषण देने वाले दुनिया के सबसे पहले व्यक्ति भी बने.

सुशासन का अर्थ लोगों को इस तरह से सेवा करना है, जिससे उनकी सभी अपेक्षाएं संवैधानिक ढांचे के अंतर्गत पूरी करना है. इसका प्रमुख उद्देश्य सरकारी नीतियों को प्रभावी ढंग से लागू करने के साथ साथ अटल जी की नीतियां, नेतृत्व और दिश निर्देशन आज भी सरकारों को आज की और भावी पीढ़ियों प्रेरणा और आदर्श की तरह काम करते हैं.
आजादी के बाद से अच्छे शासन का जिक्र केवल चर्चाओं तक ही सीमित रह गया. लेकिन वाजपेयी ने अपने शासन में इस दिशा में कई सार्थक प्रयास किए जिससे सुशासन को बेहतर बनाने के प्रयासों और बदलावों का असर जमीन स्तर भी दिखाई दिया. वाजपेयी ने अपने दस लोकसभाओं दो राज्यसभाओं में सांसद, और विपक्ष के प्रमुख नेता के तौर पर रहने अनुभव का पूरा निचोड़ सुशासन के लक्ष्यों को हासिल करने में लगाया.

वाजपेयी ने अपने विपक्षीय नेता के तौर पर संसदीय कार्यकाल में लोकतांत्रिक संस्थाओं को रचनात्मक आलोचना के लिए मंच की तरह उपयोग किया. अपने प्रधानमंत्री के कार्यकाल में वाजपेयी ने कई जनकेंद्रित नीतियों को अपनाया जिसमें किसान क्रेडिट कार्ड, प्रधानमंत्री ग्राम सड़क योजना, नदियों की जोड़ने, राष्ट्रीय ग्राम स्वास्थ्य कार्यक्रम, सर्व शिक्षा अभियान जैसी योजनाएं शामिल थीं. इनका सुशासन के नजरिए से दूरगामी प्रभाव दिखाई दिया.

कश्मीर समस्या को सुलझाने के लिए उनकी ‘इंसानियत, जम्हूरियत और कश्मीरियत’ का सिद्धांत भी उनके सुशासन के सिद्धांत को ही दर्शाता है. पाकिस्तान के साथ भारत के टकराव पर वे हमेशा लचीला रुख अपनाते ही दिखे. उनका वक्तव्य, “आप दोस्त बदल सकते हैं, लेकिन पड़ोसी नहीं.” आज भी भारतीय विदेश नीति को दिशा प्रदान करते हैं. 1998 में कारगिल युद्ध में उनकी नीति ने ही पाकिस्तान को अंतरराष्ट्रीय मंच पर अकेला कर दिया था.

वाजपेयी की कई नीतियों को आज भी कई परियोजनाओं में अपनाया जाता है. उनका नदियों को जोड़ने का प्रस्ताव हाल ही में केन बेतवा नदी परियोजना में लागू किया गया है. उनका दिया मंत्र न्यूनतम सरकार और अधिकतम शासन आज भी सरकारी विभागों में लागू किया जाता है जिससे लोगों को लोक सेवाओं का लाभ लेने में आसानी हो और जटिलताओं का सामना ना करना पड़े.

Show More

यह भी जरुर पढ़ें !

Back to top button