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जनसंख्या नियंत्रण पर सुनवाई: परिवार नियोजन के लिए लोगों को बाध्य नहीं कर सकती सरकार: सुप्रीम कोर्ट

नई दिल्ली। केंद्र सरकार ने सुप्रीम कोर्ट को बताया है कि भारत अपने लोगों को परिवार नियोजन के लिए बाध्य करने और बच्चा पैदा करने की संख्या निर्धारित करने के खिलाफ है। यह जनसांख्यिकीय विकृतियों की ओर ले जाता है। सुप्रीम कोर्ट में दायर एक हलफनामे में, स्वास्थ्य मंत्रालय ने बताया कि देश में परिवार कल्याण कार्यक्रम स्वैच्छिक है, जो लोगों को उनका परिवार कितना बड़ा हो तय करने और अपने अनुसार बिना किसी मजबूरी के परिवार नियोजन के तरीकों को अपनाने में सक्षम बनाता है।

मंत्रालय ने यह जवाब भाजपा नेता और वकील अश्विनी कुमार उपाध्याय द्वारा दायर एक जनहित याचिका के जवाब में दिया। इस याचिका में दिल्ली उच्च न्यायालय के एक आदेश को चुनौती दी गई थी। दिल्ली हाईकोर्ट ने देश की बढ़ती जनसंख्या को नियंत्रित करने के लिए दो- बच्चों की नीति सहित कुछ अन्य कदमों की मांग को खारिज कर दिया था।

स्वास्थ्य और परिवार कल्याण मंत्रालय ने सुप्रीम कोर्ट को बताया कि भारत ने स्पष्ट रूप से व्यक्त उद्देश्यों, रणनीतिक विषयों और परिचालन रणनीतियों के साथ एक व्यापक और समग्र राष्ट्रीय जनसंख्या नीति (एनपीपी) 2000 को अपनाया है। राष्ट्रीय स्वास्थ्य नीति (एनएचपी), 2017 स्वास्थ्य प्रणाली को आकार देने में सरकार की भूमिका को सूचित करने, स्पष्ट करने, मजबूत करने और प्राथमिकता देने के लिए एक नीति मार्गदर्शन प्रदान करती है। मंत्रालय ने कहा कि कुल प्रजनन दर (टीएफआर) में लगातार गिरावट देखी जा रही है। 2025 तक इसे 2.1 तक पहुंचाने का लक्ष्य है। एनपीपी को अपनाने के समय प्रजनन दर 3.2 थी। 2018 में यह गिरकर 2.2 तक पहुंच गई।

स्वास्थ्य मंत्रालय ने कहा कि ‘सार्वजनिक स्वास्थ्य’ एक राज्य के अंतरगत आने वाला विषय है और राज्य सरकारों को स्वास्थ्य क्षेत्र के सुधारों की प्रक्रिया का नेतृत्व करना चाहिए, ताकि आम लोगों को स्वास्थ्य संकट से बचाया जा सके। इस दौरान मंत्रालय ने कहा कि दिशानिर्देशों और योजनाओं के कार्यान्वयन पर प्रभावी निगरानी और हस्तक्षेप के माध्यम से राज्य सरकार स्वास्थ्य क्षेत्र में सुधार ला सकती है। मंत्रालय इसमें सहायक की भूमिका निभाता है।

मंत्रालय ने कहा कि जहां तक राज्यों में दिशानिर्देशों और योजनाओं के कार्यान्वयन का संबंध है, इसमें उसकी कोई प्रत्यक्ष भूमिका नहीं है। निर्धारित दिशानिर्देशों के अनुसार योजनाओं को लागू करने के लिए संबंधित राज्य सरकारों के पास विशेषाधिकार है। मंत्रालय केवल अनुमोदित योजनाओं के कार्यान्वयन के लिए राज्य सरकारों को धन आवंटित करता है।

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