चेर्नोबिल परमाणु ऊर्जा संयंत्र पर रूसी सेना ने कब्जा !!

दुनिया की सबसे बड़ी न्यूक्लियर त्रासदी का गवाह रहा चेर्नोबिल परमाणु ऊर्जा संयंत्र पर रूसी सेना ने कब्जा कर लिया है। रूस द्वारा यूक्रेन पर बोले गए हमले के 24 घंटे के भीतर ही रूसी सेना ने यूक्रेन की इस बेहद खतरनाक जगह को अपने कब्ज में ले लिया। यूक्रेन के राष्ट्रपति के एक सलाहकार ने बृहस्पतिवार को बताया कि रूसी सैनिकों के साथ भयंकर युद्ध के बाद यूक्रेन ने चेर्नोबिल परमाणु स्थल से नियंत्रण खो दिया है।
चेर्नोबिल के चलते हुआ सोवियत संघ का पतन?
चेर्नोबिल त्रासदी के वक्त मिखाइल गोर्बाचेव सोवियत संघ के राष्ट्रपति थे। 2006 में उन्होंने एक जगह लिखा था कि ‘चेर्नोबिल में न्यूक्लियर हादसा शायद सोवियत संघ के पतन पतन की असली वजह था।’
रूस के लिए क्यों है जरूरी यूक्रेन का चेर्नोबिल प्लांट?
चेर्नोबिल बेलारूस से यूक्रेन की राजधानी कीव तक सबसे छोटे मार्ग पर पड़ता है, और इसलिए यूक्रेन पर हमला करने वाली रूसी सेना के लिए यह बेहद महत्वपूर्ण है। चेर्नोबिल पर कब्जा करने को लेकर पश्चिमी देशों के सैन्य विश्लेषकों ने कहा कि रूस बेलारूस से सबसे तेज आक्रमण मार्ग का इस्तेमाल कर रहा था। बेलारूस रूस का एक सहयोगी है। कार्नेगी एंडोमेंट फॉर इंटरनेशनल पीस थिंक टैंक के जेम्स एक्टन ने कहा, “यह ए से बी तक का सबसे तेज तरीका था।”
अमेरिकी सेना के एक पूर्व प्रमुख जैक कीन ने कहा कि चेरनोबिल का “कोई सैन्य महत्व नहीं है” लेकिन बेलारूस से कीव तक के सबसे छोटे मार्ग पर पड़ता है, जो यूक्रेनी सरकार को हटाने के लिए एक रूसी रणनीति का हिस्सा है। चेरनोबिल पर कब्जा करना रूस की योजना का हिस्सा था।
क्या है चेर्नोबिल प्लांट की कहानी?
जिन्होंने HBO की एम्मी सहित कई इंटरनेशनल अवॉर्ड विनिंग सीरीज Chernobyl देखी होगी उन्हें इस प्लांट पर हुई त्रासदी के बारे में पता होगा। यूक्रेन का चेर्नोबिल दुनिया के सबसे बड़े परमाणु पावर प्लांट में से एक था। इस संयंत्र में अप्रैल, 1986 में दुनिया की सबसे भीषण परमाणु दुर्घटना हुई थी। एक परमाणु रिएक्टर में विस्फोट के बाद पूरे यूरोप में रेडिएशन फैल गया था। यह संयंत्र यूक्रेन की राजधानी कीव के उत्तर में 130 किलोमीटर की दूरी पर स्थित है। जब यहां धमाका हुआ था तब यानी 1986 में यूक्रेन सोवियत संघ का हिस्सा था। Chernobyl परमाणु ऊर्जा संयंत्र में नंबर 4 रिएक्टर पर 26 अप्रैल 1986 को विस्फोट के बाद पूरे यूरोप में हाहाकार मच गया था।
कैसे हुआ था चेर्नोबिल प्लांट में विस्फोट?
रिपोर्ट्स की मानें को चेर्नोबिल त्रासदी लागत और मारे गए लोगों के मामले में आज तक की सबसे भयानक परमाणु दुर्घटना है। हादसे के बाद पर्यावरण को रेडिएशन से मुक्त करने और हादसे को बिगड़ने से रोकने के लिए कुल 1.8 करोड़ सोवियत रूबल (करीब 5 खरब भारतीय रुपए) खर्च हुए थे। गोपनीय दस्तावेजों के आधार पर बनी सीरीज Chernobyl के मुताबिक यह दुर्घटना तब हुई जब एक RBMK-प्रकार परमाणु रिएक्टर के एक स्टीम टर्बाइन में टेस्ट किया जा रहा था। इसी टेस्ट के समय कई खामियों के चलते Chernobyl परमाणु ऊर्जा संयंत्र में नंबर 4 रिएक्ट में एक विस्फोट हुआ और सब हैरान रह गए।
सोवियत संघ ने की थी हादसे को छिपाने की कोशिश? कैसे हुआ चेर्नोबिल का खुलासा?
कहते हैं कि उस समय की सोवियत संघ सरकार ने इस हादसे को छिपाने की काफी कोशिश की थी। हालांकि कुछ अमेरिकी सेटेलाइट की तस्वीरों में इसको लेकर संदेह था। लेकिन चेर्नोबिल से रेडिएशन फैलने में रोकने में महत्वपूर्ण भूमिका निभाने वाले सोवियत रसायन विज्ञानी वालेरी लेगासोव ने इसको लेकर खुलासा किया था।
सोवियत संघ के दबाव के चलते प्रोफेसर वालेरी लेगासोव ने 51 साल की उम्र में 26 अप्रैल 1988 में, चेर्नोबिल हादसे के ठीक 2 साल बाद, आत्महत्या कर ली थी। लेकिन इससे पहले उन्होंने चेर्नोबिल हादसे से जुड़े अहम सबूतों के साथ कुछ टेप रिकॉर्ड करके बाहर भेज दिए थे। कहते हैं कि उन्हीं टेप की बदौलत करोड़ों जिंदगियां बच पाईं। हालांकि प्रोफेसर लेगासोव के साथ काम करने वाले कई वैज्ञानिकों को सजा तक भुगतनी पड़ी। प्रोफेसर लेगासोव के साथ चेर्नोबिल हादसे में काम करने वाले कई लोग रेडिएशन के चलते कुछ ही सालों में गंभीर बीमारी के चलते मारे गए थे।
अभी भी तबाही मचा सकता है चेर्नोबिल प्लांट
जिस रिएक्टर में विस्फोट हुआ था, उसमें से रेडिएशन रोकने के लिए उसे एक सुरक्षात्मक उपकरण से ढका गया था और पूरे संयंत्र को निष्क्रिय कर दिया गया था। लेकिन हादसे के बाद आग बुझाने के लिए जिन फायर फाइटर्स को लाया गया था उनके रेडिएशन युक्त कपड़े अभी भी प्रिप्यात अस्पताल में कैद हैं। आज भी वो रेडियोएक्टिव हैं।
हादसे के बाद कुछ लोग एक पुल से विस्फोट को देख रहे थे। कहते हैं कि उनमें से एक भी बाद में जिंदा नहीं बचा। उस पुल को द ब्रिज ऑफ डेथ कहते हैं। हादसे के बाद और बड़ा हादसा रोकने के लिए 400 कोयला खनिकों ने अहम भूमिका निभाई थी। लेकिन रिपोर्ट्स के मुताबिक उनमें से करीब 100 लोग 40 साल की उम्र में ही मर गए थे। रूसी सेना द्वारा इस प्लांट पर कब्जा करने के बाद यूक्रेन को डर है कि कहीं यहां से फिर से रेडिएशन का रिसाव न होने लगे। कहते हैं कि परमाणु 26 हजार साल तक हवा मे जिंदा रह सकते हैं। इसलिए इस प्लांट से खतरा हमेशा बना रहेगा।
चेर्नोबिल त्रासदी में कितने लोग मरे?
चेर्नोबिल त्रासदी में कितने लोग मरे इसको लेकर सोवियत संघ ने कभी भी आधिकारिक आंकड़े जारी नहीं किए। कहते हैं कि करीब 6 लाख से ज्यादा लोगों को विस्थापित होना पड़ा था। यूक्रेन और बेलारूस के 2600 वर्गकिलोमीटर का इलाका अभी भी बीरान पड़ा है। बीबीसी के अनुसार, अंतरराष्ट्रीय स्तर पर मान्यता प्राप्त मरने वालों की संख्या से पता चलता है कि चेर्नोबिल के तत्काल परिणाम के रूप में 31 की मृत्यु हुई थी। लेकिन इस हादसे के सालों बाद भी लोग मरते रहे जिसका आज तक कोई आधिकारिक आंकड़ा नहीं है। चेर्नोबिल वेब सीरीज के मुताबिक 4 हजार से 93 हजार के करीब मौतें हुईं।