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नाराजगी पर भारी जाति-धर्म !!!

मतदाताओं के मिजाज की चर्चा से पहले कुछ बातें चुनावी समरभूमि की। इसके इतिहास की। इसके भूगोल की। वाराणसी, मिर्जापुर, सोनभद्र, भदोही और जौनपुर जिले में कुल मिलाकर विधानसभा की 29 सीटें हैं। 2017 की चुनावी जंग में 19 सीटों पर भाजपा ने फहराया था अपना परचम। 4 सीटें अपना दल, तो 3 सीटें सपा के हिस्से आई थीं। सुभासपा, निषाद पार्टी और बसपा को 1-1 सीट पर विजय मिली थी। सबसे पहले बात प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के संसदीय क्षेत्र वाराणसी की। कुल आठ विधानसभा सीटें हैं इस जिले में। इनमें छह पर भाजपा, एक पर सहयोगी अपना दल (एस) का कब्जा है, तो एक सीट सुभासपा के खाते में है। हालांकि, सुभासपा ने यह सीट भाजपा के सहयोगी के तौर पर ही जीती थी।

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विधायकों से नाराजगी सबसे बड़ा मुद्दा – वाराणसी का चुनावी मिजाज जानने के लिए हम शहर उत्तरी विधानसभा क्षेत्र के पिसनहरिया इलाके में पहुंचे। यहां चाय की दुकान पर गरमा-गरम बहस चल रही थी। छात्र नेता राकेश दुबे ने कहा, विकास के नाम पर वही काम गिनाया जा सकता है, जो सांसद के नाते प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने किया। मौजूदा विधायक रवींद्र जायसवाल तो अपने में ही मस्त रहे।

पास बैठे व्यवसायी राजेश चौबे ने हामी भरते हुए कहा, जिस विश्वास व उम्मीद से विधायक बनाया था, उन्हाेंने इसका ख्याल नहीं रखा। बगल में बैठे रामसजीवन सोनकर ने दोनों से नाइत्तफाकी जताते हुए कहा कि वोट काम पर नहीं, पार्टी को देखकर दिया जाता है। विधायक को कोसना बेकार है। हम आगे महेशपुर पहुंचे तो वहां भी एक जगह चुनावी चर्चाएं चलती मिलीं। गोविंद पाल ने चर्चा के बीच में अपनी दलील दी, अगर सपा से कोई मजबूत उम्मीदवार आया तो भाजपा को भारी पड़ सकता है। पाल की दलीलें अभी पूरी नहीं हुई थी कि सभासद का चुनाव लड़ चुके रामदीन उपाध्याय मैदान में कूद पड़े। वे बोले- भाई यह कहां भूल जाते हो कि लोग विधायकों के कार्य प्रदर्शन पर नहीं, मोदी को नेता मानकर वोट देंगे।

वाराणसी : ध्रुवीकरण की तैयार हो रही पटकथा – उत्तरी विधानसभा क्षेत्र के ही ढेलवरिया में हमें पेशे से शिक्षक संजय कन्नौजिया आग तापते मिले। कैसा माहौल है, इस सवाल पर वे बोले- हर बार की तरह इस बार भी ध्रुवीकरण होगा। जो विधायक रहा है, उसके प्रति नाराजगी हो ही जाती है। विधानसभा क्षेत्र का टकटकपुर मोहल्ला भाजपा का गढ़ माना जाता है। यहां के लोग स्थानीय विधायक से नाराज हैं, पर कमल को लेकर उनकी संवेदना बरकरार है। विनोद सिंह लंबी सांस छोड़ते हुए कहते हैं, विकल्प ही क्या है? कहा जाएं? राम जतन राय और त्रिभुवन प्रजापति ने भी विनोद सिंह की हां में हां मिलाई।

त्रिभुवन ने भी सवाल उछाल दिया, क्या गारंटी है कि दूसरे दल का विधायक क्षेत्र का ख्याल रखेगा? अशोक नगर पहुंचे तो यहां कपड़े की दुकान पर हमें डॉ. आशीष खरवार मिले। डॉ. खरवार दो दशक में हुए चुनावों का हवाला देते हुए कहते हैं ‘वरुणापार का यह क्षेत्र हमेशा से जनप्रतिनिधियों के लिए सिर्फ वोट लेने का केंद्र रहा है। क्षेत्र के विकास को लेकर किसी भी सरकार ने गंभीरता नहीं दिखाई।  मतदाता भी जाति व धर्म में बंटा हुआ है। विकास पर वोट नहीं देता। ऐसे में किया ही क्या जा सकता है?

शहर दक्षिणी : उम्मीदवार नहीं बदला तो मिलेगी कड़ी टक्कर – भाजपा की इस परंपरागत सीट से श्यामदेव राय चौधरी 1989 से 2012 तक लगातार सात बार विधायक रहे। 2017 में भाजपा से नीलकंठ तिवारी जीते। पर, लोगों के बीच उनके खिलाफ नाराजगी के स्वर सुनाई दे रहे हैं। कच्चीबाग के रामधनी बिंद कहते हैं, मंत्री होने के बावजूद उन्होंने जनता का ख्याल नहीं रखा। सामाजिक संस्थाओं से जुड़े सेनपुरा निवासी रवींद्र चटर्जी भी मानते हैं कि विधायक से नाराजगी है।चटर्जी यह भी जोड़ते हैं कि इससे परिणाम में अंतर नहीं आएगा। अलबत्ता समीकरण जरूर प्रभावित होने का खतरा है। इससे हो सकता है कि जीत में वोटों का अंतर कुछ कम हो जाए।

सरायगोवर्धन के अवनीश शंकर कहते हैं, ऐसा कैसे हो सकता है कि नाराजगी हो और उसका असर न पड़े। असर तो पड़ेगा। मच्छोदरी के सैयद काजिम आब्दी अपना तर्क अलग तरीके से रखते हैं। वे कहते हैं, सपा या कांग्रेस ने मजबूत उम्मीदवार उतार दिया तो जीत की परंपरा टूट भी सकती है। शुरू से जनसंघ के समर्थक रहे रामजी पोद्दार कहते हैं, उम्मीदवार नहीं बदला तो भाजपा का बेड़ा पार नहीं हो सकता।

पिंडरा में कांग्रेस, रोहनिया में सपा दे सकती है कड़ी टक्कर – पिंडरा व रोहनिया विधानसभा क्षेत्र का ज्यादातर हिस्सा ग्रामीण है। दोनों सीटें भाजपा के पास हैं। बसनी बाजार में मिठाई की दुकान पर हमें मिले युवा शिवेंद्र त्रिपाठी पिंडरा के मौजूदा विधायक डॉ. अवधेश सिंह की सक्रियता पर सवाल उठाते हैं। वह कहते हैं, पांच बार के विधायक अजय राय हारने के बावजूद लोगों के सुख-दुख में साथ नजर आए। मौजूदा विधायक तो कुछ खास बिरादरी के अलावा वाराणसी या लखनऊ में ही सक्रिय रहे। हालांकि, उनके साथ चाय पी रहे अभिनव उनके तर्कों से नाइत्तफाकी जताते हैं। वह कहते हैं, केंद्र और प्रदेश सरकार की जनकल्याणकारी योजनाओं का असर सभी लोग महसूस कर रहे हैं। इस वजह से भाजपा को कोई खास नुकसान नहीं होने वाला है।

अनेई बाजार में मिले जफर इरशाद कांग्रेस का पलड़ा भारी बतातेे हैं, तो बरसाती मौर्या भाजपा का। पिंडरा बाजार में दवा की दुकान पर मिले पूर्व छात्र नेता रवीश तिवारी और चिरंजीव सिंह कहते हैं, विकास नहीं होने से मायूस लोग बदलाव चाहते हैं। उधर, शहरी और ग्रामीण परिवेश वाले रोहनिया विस क्षेत्र में भी विधायक से नाराजगी के स्वर कई जगह सुनाई दिए। शहरी इलाकों की बात करें तो मंडुवाडीह, रामनगर, अमरा, अखरी, रमना में तो लोगों में भाजपा के पक्ष में, तोे मेहनसराय, कोटवा और कंदवा में भाजपा-सपा के पक्ष में बराबर दलीलें सुनाई दीं।

यहां मुकाबला होगा जोरदार – कैंट में लोगों की भाजपा-सपा के पक्ष में मिली-जुली दलीलें मिलीं। अलबत्ता शिवपुर सीट पर जीत-हार को लेकर लोग असमंजस में हैं। भाजपा के सहयोग से सुभासपा के खाते में रही अजगरा सीट को लेकर लोगों का कहना था कि यहां मुकाबला जोरदार होगा। भाजपा को इस सीट पर नए सिरे से रणनीति बनानी पड़ेगी। वहीं, सेवापुरी सिटी भाजपा की सहयोगी अपना दल (एस) के खाते में है। यहां के मौजूदा विधायक को लेकर भी लोग मुतमईन नहीं दिखे।

भाजपा और सपा में मुख्य मुकाबला होने के आसार – सुरक्षित औराई विधानसभा क्षेत्र के लक्ष्मण पट्टी कस्बे में पोखरे पर चुनावी चर्चा गरम थी। बृजनंदन सिंह किसानों के मुद्दे पर सरकार से नाराजगी दिखाते हैं, लेकिन घरभरन राय और राम कहरमा शर्मा मुफ्त राशन से लेकर घर-घर नल से जल, उज्ज्वला योजना जैसी कई योजनाओं को लेकर भाजपा की पैरवी करते दिखे। सराय मिसरानी में मिले जयकरन बिंद और सरबजीत गुप्ता का कहना है कि यहां पार्टी के आधार पर नहीं, उम्मीदवार को देखकर वोट होता है।

भुसौला में मिले रजवंत गुप्ता, रामजी पटेल और सूरत पटेल मुख्य मुकाबला भाजपा और सपा में ही मानते हैं। बाहुबली विजय मिश्रा के कब्जे वाली ज्ञानपुर सीट पर रोचक मुकाबला है। वे जिस पार्टी से विधायक हैं, वह पार्टी इस बार भाजपा की सहयोगी है। गोपीगंज पेट्रोल पंप पर मिले राम प्रताप सिंह का कहना है कि अभी तो यही तय नहीं है कि यह सीट भाजपा के पास रहेगी या निषाद पार्टी के। वहीं, ब्राह्मण बहुल भदोही विधानसभा क्षेत्र के सुरियांवा में रेस्टोरेंट में मिले राम मनोहर मिश्रा, जुगल किशोर शर्मा व राजेंद्र कुमार विश्वकर्मा कहते हैं, इस बार भाजपा की राह आसान नहीं है।  ओबीसी के मतदाता नाराज हैं।

मिर्जापुर : कमल को साइकिल और हाथी से मिल सकती है टक्कर – मिर्जापुर में विधानसभा की पांच सीटें हैं। सुरक्षित सीट छानबे का मिजाज जानने के लिए हम हलिया बाजार पहुंचे। यहां मिले शिवमूरत कोल बेबाकी से कहते हैं, रोटी, कपड़ा और मकान ही व्यक्ति की मूलभूत जरूरतें होती हैं। वह सभी चीजें अब मिलने लगी हैं। अलबत्ता स्थानीय अधिकारी और नेताओं की वजह से योजनाओं का लाभ राजनीतिक चश्मे से देखकर दिया जा रहा है। लेकिन यह उम्मीद तो जगी है कि भाजपा रहेगी तो योजना का लाभ जरूर मिलेगा। वहीं, ददरी के रहने वाले राजेश यादव का कहना है कि भाजपा को नुकसान होगा तो मौजूदा विधायक की वजह से।

सगड़ी डीह के गप्पू चौधरी कहते हैं, भाजपा के अलावा सपा और बसपा के भी उम्मीदवार अच्छे मिले तो लड़ाई तगड़ी होगी। 2012 में जिले की एक भी सीट पर भाजपा का खाता तक नहीं खुला था, लेकिन 2017 में अपना दल (एस) से गठबंधन की वजह सेे सभी सीटों पर भाजपा और अपना (दल) का कब्जा हो गया था।

विधायकों से नाराजगी दिखा सकती है रंग : मिर्जापुर नगर सीट के पीलीकोठी के त्रिभुवन कहते हैं, इस बार भी यहां तो भगवा का ही शोर ज्यादा है। वहीं, राम मिलन खरवार कहते हैं कि पहले भी इस सीट पर लगातार तीन बार सपा का कब्जा रहा है। जनता इस बार बदलाव के मूड में है। सिंचाई कॉलोनी के पास रहने वाले मूलन बिंद भाजपा की जीत को लेकर आश्वस्त दिखे। भाजपा के वरिष्ठ नेता ओमप्रकाश सिंह की कर्मस्थली रही चुनार विस क्षेत्र के लोग उनके ही विधायक बेटे से नराज हैं। उनकी बिरादरी के लोग कहते हैं,

ओमप्रकाश के काम की वजह से ही उनके बेटे अनुराग को विधायक बनाया था, लेकिन उन्होंने न क्षेत्र का ध्यान रखा और न अपने समाज का। फिर भी जब तक वह हैं, उन्हीं के साथ रहेंगे। अदलहाट बाजार में मीट की दुकान पर बैठे बृजेश पटेल और शिवाकांत राजभर कहते हैं, मंत्री रहते ओमप्रकाश सिंह ने काम बहुत कराया है। भाई खुर्द के रहने वाले रमई यादव और रघुनंदन सिंह कहते हैं, जब विधायक को नहीं चिंता है, तो हम भी अपनी नई राह देखेंगे। जमालपुर बाजार में जनरल मर्चेंट की दुकान चलाने वाले रास बिहारी पटेल का कहना है कि चुनाव स्थानीय मुद्दे पर नहीं होगा। ध्रुवीकरण तो होगा ही। ब्राह्मण और बिंद बहुल मझवां और मड़िहान सीट पर भी लोगों की चर्चाओं में ज्यादातर भाजपा के पक्ष में बोल सुनाई दिए।

समीकरण साधने की होगी परीक्षा – सोनभद्र जिले की सभी चार सीटें भाजपा व उसके सहयोगी की झोली में हैं। घोरावल विस क्षेत्र के बीसरेखी, हिनौती, जोगनी, खुटहा, मगरहां व परसौनी जैस ग्रामीण क्षेत्रों से हम गुजरे तो इन इलाकों में चुनावी बयार पर चर्चा कम ही मिली। धुवास के बनाफर कुशवाहा कहते हैं, जो थोड़ा-बहुत काम हुआ, इसी सरकार में हुआ। भाजपा के अलावा कहीं और जाने का औचित्य नहीं हैं। वहीं, दुद्धी विधानसभा के चिल्का टांड में बस स्टैंड के पास एक साथ बैठे रघुनंदन कोल और सुक्खू राम चाय तो साथ पी रहे थे, लेकिन उनकी सियासी प्रतिबद्धता अलग-अलग दिखी। रघुनंदन भाजपा की जीत के प्रति आश्वस्त हैं, तो सुक्खू कहते हैं कि एक सीट पर हाथी दौड़ेगा।

राबर्ट्सगंज बाजार में मिले शमशेर खां, मो. जब्बार और अरुण मिश्रा मानते हैं कि इस सीट पर हार-जीत का अंतर बहुत मामूली रहेगा। अरुण कहते हैं, पुख्ता तौर पर तो नहीं कह सकते कि कौन पार्टी जीतेगी, पर इतना तय है कि उम्मीदवारों के चयन पर ही बहुत कुछ निर्भर करेगा। जिले की ओबरा सीट पर मौजूदा विधायक को लेकर लोगों में असंतोष तो है, लेकिन विकल्पहीनता की भी लोग बात करते हैं। खनन व्यावसायी रमेश कुमार कहते हैं, सबका तो एक ही हाल है। इसलिए भाजपा के अलावा कहां जाएं? वहीं, परमजीत मौर्य कहते हैं, चारों सीटों के बंटवारे और उम्मीदवार की घोषणा के बाद ही स्थिति साफ होगी।

जौनपुर : कहीं नाराजगी, तो कहीं ध्रुवीकरण की चर्चा – नौ सीट वाले इस जिले की चार सीटों पर भाजपा, तो तीन पर सपा का कब्जा है। एक सीट अपना दल (एस) और एक बसपा के पास है। जौनपुर सदर की सीट से भाजपा के मौजूदा विधायक को लेकर नाराजगी दिखी। लाइनबाजार स्थित परचून की दुकान पर मिले रामधारी मिश्रा, राम प्रकाश सिंह और सूरज अग्रवाल कहते हैं कि वे एक जाति विशेष के अलावा किसी और को तवज्जो नहीं देते। अगर भाजपा ने उम्मीदवार नहीं बदला तो मुस्लिम बहुल इस सीट पर भाजपा की जीत मुश्किल होगी। वहीं, संदहा में मिले अशोक सिंह समेत अन्य लोग भी विधायक की छवि से भाजपा को ही नुकसान बताते हैं।

शाहगंज सीट लगातार दो बार से सपा के कब्जे में है। यादव और मुस्लिम मतों के ध्रुवीकरण की वजह से यह सीट सपा के लिए आसान मानी जाती है। हालांकि उसे भाजपा से कड़ी टक्कर मिलती दिख रही है। भाजपा और निषाद पार्टी के गठबंधन की वजह से इस सीट के निषाद पार्टी के खाते में जाने की चर्चा को देखते हुए कहा जा रहा है कि समीकरण बदल भी सकते हैं। ताखी बाजार के समर बहादुर पासी कहते हैं, हर चुनाव में आरक्षण के नाम पर पिछड़ों को बरगला कर वोट लिया जाता है, लेकिन इस बार पिछड़े वर्ग के लोग किसी के झांसे में नहीं आएंगे। पुख्ता आश्वासन मिलने पर ही अपना पत्ता खोलेंगे।

जौनपुर : कहीं नाराजगी, तो कहीं ध्रुवीकरण-  चर्चा नौ सीट वाले इस जिले की चार सीटों पर भाजपा, तो तीन पर सपा का कब्जा है। एक सीट अपना दल (एस) और एक बसपा के पास है। जौनपुर सदर की सीट से भाजपा के मौजूदा विधायक को लेकर नाराजगी दिखी। लाइनबाजार स्थित परचून की दुकान पर मिले रामधारी मिश्रा, राम प्रकाश सिंह और सूरज अग्रवाल कहते हैं कि वे एक जाति विशेष के अलावा किसी और को तवज्जो नहीं देते। अगर भाजपा ने उम्मीदवार नहीं बदला तो मुस्लिम बहुल इस सीट पर भाजपा की जीत मुश्किल होगी। वहीं, संदहा में मिले अशोक सिंह समेत अन्य लोग भी विधायक की छवि से भाजपा को ही नुकसान बताते हैं। शाहगंज सीट लगातार दो बार से सपा के कब्जे में है।

यादव और मुस्लिम मतों के ध्रुवीकरण की वजह से यह सीट सपा के लिए आसान मानी जाती है। हालांकि उसे भाजपा से कड़ी टक्कर मिलती दिख रही है। भाजपा और निषाद पार्टी के गठबंधन की वजह से इस सीट के निषाद पार्टी के खाते में जाने की चर्चा को देखते हुए कहा जा रहा है कि समीकरण बदल भी सकते हैं। ताखी बाजार के समर बहादुर पासी कहते हैं, हर चुनाव में आरक्षण के नाम पर पिछड़ों को बरगला कर वोट लिया जाता है, लेकिन इस बार पिछड़े वर्ग के लोग किसी के झांसे में नहीं आएंगे। पुख्ता आश्वासन मिलने पर ही अपना पत्ता खोलेंगे।

जातीय समीकरण साधना होगा अहम  – सुरक्षित मछली शहर सीट पर भी भाजपा और सपा के बीच कड़ा मुकाबला दिखाई दिया। ब्राह्मण व यादव बहुल इस सीट पर लगातार दो बार से सपा का कब्जा है। बेहवर के रामदीन सोनकर कहते हैं, इस बार भी जातिगत समीकरण हावी रहेगा। राम सजीवन प्रजापति कहते हैं, सभी दलों के घोषणा पत्र में पिछड़े वर्ग से जुड़े मुद्दे देखने के बाद ही यह समाज अपना मन बनाएगा। जफराबाद सीट पर भी मौजूदा विधायक के प्रति नाराजगी मुश्किल खड़ी कर सकती है।

पुरेव बाजार में चाय की दुकान पर मिले नहोरा के रवींद्र तिवारी कहते हैं, लोग पार्टी से नहीं, विधायक से नाराज हैं। ब्रह्मानंद त्रिपाठी भी यही सवाल उठाते हैं। वे कहते हैं, ऐसे लोगों की वजह से भाजपा का नुकसान हो रहा है। अपना दल के कब्जे वाली मडियाहूं सीट को लेकर असमंजस की स्थिति है। बहरहाल, राम प्रताप राजभर, अमरेंद्र कुशवाहा और प्रभुनाथ बिंद का कहना है कि लोग अधिकारियों की तानाशाही से आजिज आ चुके हैं।

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