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गिलगिट-बाल्टिस्‍तान भारत का अंदरूनी हिस्सा

नई दिल्‍ली. पाकिस्तान के कानून एवं न्याय मंत्रालय ने गिलगिट-बाल्टिस्‍तान को देश के एक प्रांत के तौर पर स्वीकार करने का मसौदा तैयार कर लिया है. 2009 से पहले ये उत्तरी क्षेत्रों के रूप में जाना जाता था.

वहीं भारत गिलगिट-बाल्टिस्‍तान को अपना अंदरूनी हिस्सा मानता रहा है. भारत ये बात 1947 में भारत संघ के कानूनी तौर पर जम्मू-कश्मीर के पूर्ण अधिग्रहण के आधार पर कहता है. चीन-पाकिस्तान के आर्थिक कॉरीडोर पर होने के बाद कूटनीतिक तौर पर भी ये क्षेत्र भारत के लिए अहम हो जाता है. इस करार के तहत चीन सड़क और बेल्ट निर्माण में भारी निवेश करने वाला है. वैसे भी पिछले साल पूर्वी लद्दाख में दोनों देशों की सेना के बीच तनातनी के बाद ये भारत के लिए चिंता का विषय हो सकता है.

क्षेत्र का इतिहास
गिलगिट पहले जम्मू-कश्मीर रियासत का हिस्सा हुआ करता था, जिस पर ब्रिटिश सरकार का शासन था, ब्रिटिश सरकार ने इस क्षेत्र को हरिसिंह ( जो इस मुस्लिम बाहुल्य राज के हिंदु शासक थे) से लीज़ पर लिया था. जब 26 अक्टूबर,1947 को हरिसिंह ने भारत के साथ मिलना स्वीकार किया, तब गिलगिट में ब्रिटिश कमांडर मेजर विलियम एलेक्जेंडर ब्राउन के नेतृत्व में विद्रोह का बिगुल बजा और गिलगिट के सिपाही बाल्टिस्‍तान पर कब्जा जमाने के लिए आगे बढ़े, जो उस वक्त लद्दाख का हिस्सा हुआ करता था, और विद्रोहियों ने स्कार्दु, करगिल और द्रास पर भी कब्जा जमा लिया. आगे की लड़ाइयों में भारत की सेना ने अगस्त 1948 को द्रास और करगिल को वापस हासिल कर लिया.

इसके पहले 1 नवंबर, 1947 को एक कथित राजनीतिक संगठन गिलगिट-बाल्टिस्‍तान क्रांतिकारी परिषद ने गिलगिट-बाल्टिस्‍तान को स्वतंत्र राज्य घोषित कर दिया. 15 नवंबर को उसने पाकिस्तान में शामिल होने की घोषणा कर दी, लेकिन पाकिस्तान को केवल प्रशासनिक नियंत्रण ही मिला और इस क्षेत्र को सीधे फ्रंटियर क्राइम रेग्यूलेशन के तहत शासित करने का फैसला लिया गया, ये वो कानून था जिसे ब्रिटिश सरकार ने उत्तर पश्चिम के अशांत आदिवासी क्षेत्र को नियंत्रित करने के लिए बनाया था. आगे 1 जनवरी, 1949 में भारत-पाकिस्तान युद्धविराम के बाद उसी साल अप्रैल में पाकिस्तान ने जम्मू-कश्मीर की अंतरिम सरकार के साथ एक समझौता किया, जिसके तहत वो हिस्से जिस पर पाकिस्तानी सेना और अनियमित सैनिकों ने कब्जा किया था उसके रक्षा और विदेशी मामले को अपने काबू में कर लिया. इस समझौते के तहत जम्मू-कश्मीर सरकार ने गिलगिट-बाल्टिस्‍तान का प्रशासन भी पाकिस्तान को सौंप दिया.

1974 में पाकिस्तान ने पहला पूर्ण नागरिक संविधान पारित किया, जिसमें पाकिस्तान को चार प्रांतों में विभाजित किया गया. इनमें पंजाब, सिंध, बलूचिस्तान और खैबर पख्तूनख्वा आते हैं. खास बात ये थी कि पाक अधिकृत कश्मीर (पीओके) और गिलगिट-बाल्टिस्‍तान प्रांत के तौर पर शामिल नहीं किया था. इसके पीछे एक वजह ये भी थी कि पाकिस्तान अंतर्राष्ट्रीय मामले को कमज़ोर नहीं करना चाहता था जहां कश्मीर मुद्दे का समाधान संयुक्त राष्ट्र संघ के प्रस्तावों (जनमत संग्रह) के जरिये होना चाहिए. 1975 में पाक अधिकृत कश्मीर ने खुद का संविधान लागू किया जिसके तहत वो एक स्वायत्त क्षेत्र प्रकट होता है. इस संविधान में उत्तरी इलाके पर कोई अधिकार क्षेत्र नहीं था जिससे यहां पर इस्लामाबाद का प्रत्यक्ष प्रशासन (फ्रंटियर क्राइम रेग्युलेशन 1997 में समाप्त कर दिया गया, बस 2018 में इसे रद्द किया गया) जारी रहा . वास्तव में पीओके पर कश्मीर परिषद के ज़रिये पाकिस्तानी प्रशासन और सुरक्षा स्थापना का ही नियंत्रण रहा.

बस इसमें खास अंतर सिर्फ इतना है कि पीओके के लोगों को अधिकार और स्वतंत्रता उनके संविधान के आधार पर थी, जो एक तरह से पाकिस्तानी संविधान की ही प्रतिकृति है. अल्पसंख्यक शिया प्रभावी उत्तरी क्षेत्र का कोई भी राजनीतिक प्रतिनिधित्व नहीं रहा. जबकि इन्हें पाकिस्तानी माना जाता है और इनके पासपोर्ट पर नागरिकता भी पाकिस्तान की ही होती है. फिर भी चार प्रांतों और पीओके की तरह ये संवैधानिक सुरक्षा के घेरे से बाहर आते हैं.

पहला बदलाव
सदी की शुरुआत के पहले दशक में ही पाकिस्तान ने उत्तरी इलाकों में प्रशासनिक बदलाव करना शुरू कर दिया था. क्योंकि विकास के नाम पर चीन की रणनीतिक गतिविधि बढ़ रही थी. और चीन की इस परियोजना के लिए दोनों देशों के बीच गिलगिट-बाल्टिस्‍तान की ज़मीन बेहद मायने रखती है. 2009 में पाकिस्तान ने गिलगिट-बाल्टिस्‍तान में ( सशक्तिकरण और स्वशासन) का आदेश पारित किया, 2009 के आदेश के बाद उत्तरी क्षेत्र विधान परिषद को विधानसभा में तब्दील कर दिया गया और उत्तरी इलाके को गिलगिट-बाल्टिस्‍तान नाम वापस मिल गया.

 

इसके पहले उत्तरी क्षेत्र विधान परिषद एक निर्वाचित निकाय था जिसका काम कश्मीर मुद्दे और उत्तरी इलाकों के लिए मंत्री (इस्लामाबाद) को परामर्श देना था. विधानसभा से इसमें एक छोटी सी प्रगति हुई. अब इसमें 24 प्रत्यक्ष चयनिय सदस्य और 9 नामित सदस्य होते हैं. 2010 से इस्लामाबाद की सत्ताधारी दल ने इस क्षेत्र का हर चुनाव जीता है. नवंबर 2020 में प्रधानमंत्री इमरान ख़ान की पाकिस्तान-तहरीक-इ-इन्साफ ने यहां पर 33 में से 24 सीट पर फतह हासिल की थी.

प्रांतीय स्थिति
नवंबर 1, 2020 को गिलगित-बाल्टिस्‍तान का स्वतंत्रता दिवस मनाया गया, इमरान ख़ान की सरकार ने इस क्षेत्र को अंतरिम प्रांतीय दर्जा देने की घोषणा की. इसी साल मार्च में नवनिर्वाचित विधानसभा ने सर्वसम्मति से गिलगिट-बाल्टिस्‍तान को (कश्मीर विवाद को लेकर किसी भी पूर्वाग्रह के बगैर) पाकिस्तान का अंतरिम प्रांत बनाए जाने के संवैधानिक संशोधन की मांग की.

इमरान ख़ान ने जुलाई में कानून मंत्री से गिलगित-पाकिस्तान को एक प्रांत का दर्जा दिए जाने के मसविदे पर तेजी लाने को कहा. और इसे 26वें संवैधानिक संशोधन बिल के तहत तैयार करके सौंप दिया गया है. प्रस्तावित कानून के अनुसार कश्मीर के अनसुलझे विवाद का हिस्से की वजह से, गिलगित-बाल्टिस्‍तान को संविधान के आर्टिकल 1 में संशोधन के तहत अंतरिम प्रांत का दर्जा दिया गया है. गिलगिट-बाल्टिस्‍तान में विधानसभा की स्थापना के अलावा पाकिस्तान संसद में प्रतिनिधित्व को लेकर अलग से एक मसौदा तैयार किया जाएगा.

ये बदलाव गिलगिट-बाल्टिस्‍तान के लोगों की लंबे समये से चली आ रही मांग को पूरा करेगा. पाकिस्तान के प्रति इस बात को लेकर नाराज़गी जरूर है कि उसने वहां के शियाओं को निशाना बनाने के लिए उग्रवादी ताकतों का इस्तेमाल किया लेकिन सरकार का ऐसा मानना है कि एक बार ये प्रांत पाकिस्तान का हिस्सा बन गया तो ये नाराज़गी अपने आप खत्म हो जाएगी.

वहीं कुछ रिपोर्ट कहती है कि पाकिस्तान ने ये फैसला चीन के दबाव में आकर लिया है. क्योंकि गिलगिट-बाल्टिस्‍तान की अस्पष्ट स्थिति से चीन की परियोजना खटाई में पड़ सकती है. ऐसा भी कयास लगाया जा रहा है कि ये पाकिस्तान द्वारा भारत के 5 अगस्त, 2019 को कश्मीर से विशेष दर्जा हटाए जाने के फैसले की स्वीकृति से पहले की हवा है. पीओके चुनाव के दौरान पाकिस्तान मुस्लिम लीग (एन) ने इमरान ख़ान पर इल्जाम लगाया था कि वो भारत के साथ एक गुप्त समझौते के तहत गिलगिट-बाल्टिस्‍तान को पाकिस्तान का प्रांत बनाने वाले थे.

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