सोचे विचारें

गटर में गुम होती जिंदगी

रमेश सर्राफ धमोरा-

झारखण्ड के देवघर जिले के देवीपुर में रविवार को एक मकान के सेप्टिक टैंक की जहरीली गैस से दम घुटने के कारण छह लोगों की मौत हो गई। जानकारी के मुताबिक रविवार को सेप्टिक टैंक के अंदर राजमिस्त्री गोविंद मांझी, मजदूर लीलू मुर्मू उतरे। काफी देर तक अंदर से किसी तरह की आवाज नहीं आने पर मकान मालिक ब्रजेश भी टैंक के अंदर गए। काफी देर तक अंदर कोई हलचल नहीं होने पर उनके भाई मिथिलेश भी टैंक के अंदर गए। चारों के अंदर जाने के बाद भी कोई सुगबुगाहट नहीं होता देख राज मिस्त्री गोविंद का बेटा बबलू और लालू उन्हें बचाने के लिए अंदर गए। लेकिन दम घुटने के कारण अंदर ही सबकी मौत हो गई।
राजस्थान में सीकर जिले के फतेहपुर में सीवरेज की खुदाई के दौरान हुई तीन मजदूरों की मौत के मामले में वहां के अपर जिला एवम स़त्र न्यायाधीश ने कुछ माह पहले एक ऐतिहासिक फैसला सुनाया था। कोर्ट ने इस मामले में कंपनी के इंजीनियर सहित तीन लोगों को गैर इरादतन हत्या का दोषी मानते हुये दस-दस साल के कारावास की सजा सुनाई थी। कोर्ट ने माना कि काम कर रहे मजदूरों के लिए सुरक्षा का इंतजाम करना कम्पनी की जिम्मेदारी थी। उस दिन कम्पनी की ओर से सीवरेज का काम किया जा रहा था। वहां सुरक्षा संबंधी पर्याय उपाय नहीं करने के कारण तीन मजदूरों को जान गंवानी पड़ी थी।
सीवर सफाई के दौरान हादसों में मजदूरों की दर्दनाक मौतों की खबरें लगातार आती रहती हैं। उत्तर प्रदेश के सुल्तानपुर में सीवर टैंक की जहरीली गैस की चपेट में आने से 5 लोगों की मौत हो गई थी। गुजरात के वड़ोदरा जिले के डभोई तहसील में एक होटल की सीवेरेज टैंक साफ करने उतरे सात मजदूरों की दम घुटने से मौत हो गई थी। उत्तर पश्चिम दिल्ली के एक मकान के सेप्टिक टैंक में उतरने के बाद दो मजदूरों की मौत हो गई थी। इस मामले में भी जांच में यह बात सामने आई थी कि मजदूर टैंक में बिना मास्क, ग्लब्स और सुरक्षा उपकरणों के उतरे थे।
नोएडा स्थित सलारपुर में सीवर की खुदाई करते समय पास में बह रहे नाले का पानी भरने से दो मजदूरों की डूबने से मौत हो गई थी। गत वर्ष आन्ध्र प्रदेश राज्य के चित्तूर जिले के पालमनेरू मंडल गांव में एक गटर की सफाई करने के दौरान जहरीली गैस की चपेट में आने से सात लोगो की मौत हो गयी थी। देश के विभिन्न हिस्सो में हम आये दिन इस प्रकार की घटनाओं से सम्बन्धित खबरें समाचार पत्रों में पढ़ते रहते हैं।
सुप्रीम कोर्ट ने भी सीवर में होने वाली मौतों पर चिंता जताने के साथ ही सख्त टिप्पाणी की थी। सुप्रीम कोर्ट ने कहा था कि देश में आज भी जाति के आधार पर भेदभाव किया जाता है। मनुष्य के साथ मनुष्य द्धारा इस तरह का व्यवहार किया जाना सबसे अधिक अमानवीय आचरण है। इन परिस्थितियों में बदलाव होना चाहिए। कोर्ट ने अटॉर्नी जनरल से सवाल किया था कि आखिर हाथ से मैला साफ करने और सीवर के नाले या मैनहोल की सफाई करने वालों को मास्क व ऑक्सीजन सिलेंडर जैसे सुरक्षा उपकरण क्यों नहीं मुहैया कराई जाते हैं? दुनिया के किसी भी देश में लोगों को इस तरह के गैस चैम्बर में मरने के लिये नहीं भेजा जाता है। इस वजह से हर महीने चार से पांच लोगों की मौत हो जाती है।
कोर्ट ने कहा संविधान में प्रावधान है कि सभी मनुष्य समान हैं। लेकिन सम्बधित उन्हें समान सुविधाएं उपजब्ध नहीं करवाते हैं। कोर्ट ने इस स्थिति को अमानवीय करार दिया। अटॉर्नी जनरल ने पीठ से कहा था कि देश में नागरिकों को होने वाली क्षति और उनके लिए जिम्मेदार लोगों से निपटने के लिये अभी तक कानून नहीं बना है। मजिस्ट्रेट को ऐसी घटनाओं का स्वतः संज्ञान लेने का अधिकार नहीं है। उन्होंने कहा कि सड़क पर झाड़ू लगा रहे या मैनहोल की सफाई कर रहे व्यक्ति के खिलाफ कोई मामला दायर नहीं किया जा सकता। लेकिन ये काम करने का निर्देश देने वाले अधिकारी या प्राधिकारी को इसका जिम्मेदार ठहराया जाना चाहिए।
देश के विभिन्न हिस्सो में पिछले एक वर्ष में सीवर की सफाई करने के दौरान 200 से अधिक व्यक्तियों की मौत हो चुकी है। इस अमानवीय त्रासदी में मरने वाले अधिकांश लोग असंगठित दैनिक मजदूर होते हैं। इस कारण इनके मरने पर कहीं विरोध दर्ज नहीं होता है। देश में करीबन 27 लाख सफाई कर्मचारी कार्यरत हैं। जिसमें से 20 लाख ठेके पर काम करते हैं। एक सफाईकर्मी की औसतन कमाई 7 से 10 हजार रुपये प्रति माह तक होती है। गंदगी में काम करने से आधे से अधिक सफाई कर्मी तो कई बिमारियों से पीड़ित हो जाते हैं। इस कारण अधिकांश गटर साफ करने वाले लोगों की कम उम्र में ही मौत हो जाती है। गटर साफ करने वाले लोगों के लिये बीमा की भी कोई सुविधा नहीं होती है।
आमतौर पर सीवर में उतरने से पहले सफाईकर्मी शराब पीते है। शराब पीने के बाद शरीर में ऑक्सीजन की कमी हो जाती है। तभी सीवर में उतरते ही इनका दम घुटने लगता है। सफाई का काम करने के बाद उन्हें नहाने के लिए साबुन, नहाने तथा पीने का स्वच्छ पानी उपलब्ध करवाने की जिम्मेदारी भी कार्यकारी एजेंसी की होती है। इसके बावजूद ये उपकरण और सुविधाएं इनको अभी तक नहीं मिल पा रही है।
कोर्ट के निर्देशों के अनुसार सीवर की सफाई करने वाली एजेंसी के पास सीवर लाईन के नक्शे, उसकी गहराई से सम्बंधित आंकड़े होना चाहिए। सीवर सफाई के काम में लगे लोगों की नियमित स्वास्थ्य की जांच, नियमित प्रशिक्षण देने के नियम का पालन होता कहीं नहीं दिखता है। सभी सरकारी दिशा-निर्देशों में दर्ज हैं कि सीवर सफाई करने वालों को गैस -टेस्टर, गंदी हवा को बाहर फेंकन के लिए ब्लोअर, टॉर्च, दस्ताने, चश्मा और कान को ढंकन का कैप, हैलमेट मुहैया करवाना आवश्यक है। राष्ट्रीय मानवाधिकार आयोग भी इस बारे में कड़े आदेश जारी कर चुका है। इसके बावजूद ये उपकरण और सुविधाएं गायब है। सीवर लाइनों की लंबाई तो हर दिन बढ़ रही है। वहीं सफाई करने वालों की संख्या में कमी की जा रही है।
गटर की सफाई करने वालो की मौत होने के साथ ही उनपर निर्भर उनका परिवार भी बेसहारा हो जाता है। परिवार की आमदनी का जरिया अचानक से बंद हो जाता है। देश में जाम सीवर की मरम्मत करने के दौरान प्रतिवर्ष दम घुटने से काफी लोग मारे जाते हैं। इससे पता चलता है कि हमारी गंदगी साफ करने वाले हमारे ही जैसे इंसानों की जान कितनी सस्ती है। सीवर सफाई के काम में लगे लोगों को सामाजिक उपेक्षा का भी सामना करना पड़ता है।
हाथों से सीवर की सफाई करने को देश में प्रतिबंधित किये जाने के उपरान्त भी बरकरार है। देश की सर्वोच्च अदालत ने गटर की सफाई करने वालों की सुध लेते हुये सरकार की खिंचाई की थी। मगर उसके उपरांत भी गटर में लोगों के मरने का सिलसिला जारी है।

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