ऑक्सीजन का बंधन करने वाले अन्य प्रोटीन,!!!!!
मयोग्लोबिन – मानव समेत अनेक पृष्ठवंशियों के मांसपेशी ऊतकों में पाया जाता है.यह मांस पेशी ऊतक को एक स्पष्ट लाल या गहरा धूसर रंग देता है. यह रचना और श्रृंखला में हीमोग्लोबिन के जैसा ही होता है, लेकिन यह टैट्रामर न होकर मोनोमर होता है, जिसमें सहकारी बंधक गुण की कमी होता है. इस का प्रयोग आक्सीजन के परिवहन की जगह उसके भंडार के लिये किया जाता है.
हीमोसयानिन – प्रकृति में पाया जाने वाला दूसरा सबसे आम आक्सीजन का वहन करने वाला प्रोटीन, यह कई आर्थोपाडों और मोलस्कों के रक्त में होता है. लौह हीम समूहों की जगह इसमें तांबे के प्रास्थेटिक समूहों का प्रयोग होता है और आक्सीदनित होने पर यह नीले रंग का दिखता है. हीमएरिथ्रिन – कुछ समुद्री अपृष्ठवंशी और एनेलिड जातियां उनके रक्त में आक्सीजन के परिवहन के लिये इस लौह युक्त गैर-हीम प्रोटीन का प्रयोग करती हैं. आक्सीजनित होने पर गुलाबी/बैंगनी दिखता है, और आक्सीजनित न होने पर रंगहीन दिखाई देता है.
क्लोरोक्रूओरिन – कई एनेलिडों में पाया जाने वाला, यह एरिथ्रोक्रुओरिन के बहुत समान होता है, लेकिन इस का हीम समूह रचना में बहुत भिन्न होता है. विआक्सीजनित होने पर हरा और आक्सीजनित होने पर लाल दिखता है.
वैनैबिन -इन्हें वैनेडियम क्रोमाजन भी कहते हैं, और ये समुद्री स्किर्टों के रक्त में पाए जाते हैं और यह समझा जाता है कि ये विरल धातु वैनेडियम को अपने आक्सीजन बंधक प्रास्थेटिक समूह के रूप में उपयोग में लाते हैं.
एरिथ्रोक्रुओरिन – केंचुओं सहित कई एनेलिडों में पाया जाने वाला, यह एक विराट मुक्त बहने वाला रक्त प्रोटीन है जिसमें, एक अकेले प्रोटीन काम्प्लेक्स में आपस में बंधी दर्जनों या संभवतः सैकड़ों लौह और हीमयुक्त प्रोटीन उपइकाईयां होती हैं, जिनका अणु भार 3.5 मिलियन डाल्टनों से भी अधिक होता है.
पिन्नाग्लोबिन – केवल मोलस्क पिन्ना स्क्वेमोसा में पाया जाता है. भूरा मैंगेनीज पर आधारित पॉरफआइरिन प्रोटीन.
लेगहीमोग्लोबिन – फली वाले पौधों, जैसे अल्फाल्फा या सोयाबीनों में, जड़ों के नाइट्रोजन को स्थिर करने वाले बैक्टीरिया की आक्सीजन से रक्षा इस लौह हीम युक्त आक्सीजन-बंधक प्रोटीन द्वारा की जाती है.प्रारक्षित विशिष्ट एंजाइम नाइट्रोजेनेज़ होता है, जो मुक्त आक्सीजन की उपस्थिति में नाइट्रोजन गैस का अपघटन करनें में असमर्थ होता है.
कोबोग्लोबिन – एक संश्लेषित कोबाल्ट पर आधारित पॉरफाइरिन.आक्सीजनित होने पर कोबोप्रोटीन रंगहीन दिखता है, पर शिराओं में यह पीला नजर आता है.
गैर हड्डीवाला अवयव में अनालोगुएस – सारे पशु और वनस्पति संसार में जीवों में अनेक आक्सीजन-परिवहन और बंधक प्रोटीन पाए जाते हैं. बैक्टीरिया, प्रटोजोआ, और फफूंदी सभी जीवों में हीमोग्लोबिन जैसे प्रोटीन होते हैं, जिनकी ज्ञात व अपेक्षित भूमिकाओं में गैसीय लाइगैंडों का बंधन करना शामिल होता है. चूंकि इन प्रोटीनो में से अनेकों में ग्लोबिन और हीम भाग (पारफाइरिन के सहारे मौजूद लौह) होते हैं, इन्हें अकसर हीमोग्लोबिन कहा जाता है, भले ही उनकी रचना पृष्ठवंशी हीमोग्लोबिन से बहुत भिन्न क्यौ न हो.विशेषकर निचले दर्जे के जीवों में मयोग्लोबिन और हीमोग्लोबिन में फर्क करना अकसर असंभव होता है, क्यौंकि इनमें से कुछ जीवों में मांसपेशियां नहीं होतीं. या, उनमें पहचानने योग्य अलग रक्तप्रवाह तंत्र तो होता है, लेकिन इसका आक्सीजन के परिवहन से संबंध नहीं होता.(उदा.अनेक कीट और अन्य आर्थोपाड). इन सभी समूहों में, गैस-बंधन से संबंधित हीम व ग्लोबिन युक्त अणु (मोनोमेरिक ग्लोबिन भी) हीमोग्लोबिन कहलाते हैं. आक्सीजन के परिवहन और पहचान के अलावा वे एनओ, सीओ2, सल्फाइड यौगिकों, और एनएयरोबिक पर्यावरणों में ओ2 की सफाई का काम भी करते हैं. वे हीम-युक्त पी450 एंजाइमों और पराक्सिडेजों की तरह क्लोरीनीकृत वस्तुओं के अविषाक्तीकरणृ का कार्य भी करते हैं.
हीमोग्लोबिनों की रचना विभिन्न जातियों में भिन्न होती है. हीमोग्लोबिन सभी जीव समुदायों में होता है, लेकिन सभी जीवों में नहीं. प्राचीन जातियों जैसे बैक्टीरिया, प्रोटोजोआ, शैवाल और पौधों में अकसर एकल ग्लोबिन वाले हीमोग्लोबिन होते हैं. कई निमाटोड कीटों, मोलस्कों, और क्रूस्टेसियनों में बहुत बड़े अनेक उपइकाईयों वाले अणु होते हैं, जो पृष्ठवंशियों के अणुओं से काफी बड़े होते हैं. खास कर, फफूंदी और विराट एनेलिडों में पाए जाने वाले चिमेरिक हीमोग्लोबिनों में ग्लोबिन और प्रोटीनों के अन्य प्रकार हो सकते हैं. जीवों में हीमोग्लोबिन के सबसे खास उपयोगों में से एक जायंट ट्यूब वर्म (रिफ्टिया पैचिप्टिला, या वेस्टीमेंटीफेरा), जो 2.4 मीटर तक लंबा हो सकता है और समुद्री ज्वालामुखी वेंटों में रहता है, में उसका उपयोग है. इन जीवों में पाचक नली की जगह जीव के वजन के आधे वजन के बैक्टीरिया होते हैं. ये बैक्टीरिया वेंट के एच2एस और पानी के ओ2 से प्रतिक्रिया करके ऊर्जा का उत्पादन करते हैं जिससे पानी और सीओ2 से भोजन बनता है. इन वर्मों के पिछले सिरे पर एक गहरी लाल पंखे जैसी रचना होती है, जो पानी में फैलती है और एच2एस और ओ2 का बैक्टीरिया के लिये, तथा प्रकाश-संश्लेषक पौधों की तरह संश्लेषित कच्चे माल के रूप में प्रयोग के लिये सीओ2 का अवशोषण करती है. ये रचनाएं उनमें मौजूद असाधारण रूप से जटिल हीमोग्लोबिनों के कारण चमकदार-लाल होती है, जिनमें 144 तक ग्लोबिन श्रृंखलाएं होती हैं, जिनमें प्रत्येक में संबंधित हीम रचनाएं होती हैं. ये हीमोग्लोबिन सल्फाइड की उपस्थिति में आक्सीजन और सल्फाइड का, अन्य जातियों के हीमोग्लोबिनों की तरह, बिना पूरी तरह विषाक्त हुए या अवरूद्ध हुए परिवहन करने की क्षमता रखते हैं.
नोनेर्य्थ्रोइद कोशिकाओं में उपस्थिति – कुछ नॉन एरिथ्रायड कोशिकाएं (यानी लाल रक्त कोशिका के अतिरिक्त प्रकार की कोशिकाएं) हीमोग्लोबिन युक्त होती हैं.मस्तिष्क में, सबस्टैंशिया निग्रा के ए9 डोपमिनर्जिक न्यूरान, सेरेब्रल कार्टेक्स और हिप्पोकैम्पस के ऐस्ट्रोसाइट, और सभी परिपक्व आलिगोडेंड्रोसाइट इनमें शामिल हैं.. ऐसा समझा जाता है कि, इन कोशिकाओं में मस्तिष्क हीमोग्लोबिन आक्सीजनहीन स्थितियों में होमियोस्टैटिक प्रक्रिया के लिये आक्सीजन के भंडारण को संभव करता है, जो ए9 डीए न्यूरानों के लिये खास तौर पर महत्वपूर्ण है, क्यौंकि उनमें ऊर्जा के उत्पादन के लिये अधिक चयापचय के साथ अधिक आक्सीजन की आवश्यकता पड़ती है. इसके अलावा, ए9 डोपमिनर्जिक न्यूरानों को विशेष जोखम होता है, क्योंकि वे स्वआक्सीकरण और मोनोअमाइन आक्सिडेज द्वारा किये गए डोपमिन को विअमाअनीकरण से उत्पन्न हाइड्रोजन पराक्साइड के कारण अत्यंत गहन आक्सीकरण दबाव में होते हैं, और जिनमें फेरस लौह की प्रतिक्रिया के कारण अत्यंत विषाक्त हाइड्राक्सिल मूलों का उत्पादन होता है. इससे पार्किन्सन रोग में इन कोशिकाओं के अपक्षय को खतरे को समझाया जा सकता है. इन कोशिकाओं में हीमोग्लोबिन के लौह की उपस्थिति के कारण मृत्यु के बाद ये कोशिकाएं गहरी पड़ जाती हैं, जिससे इन कोशिकाओं का लैटिन नाम सबस्टैंशिया निग्रा पड़ा है.
मस्तिष्क के बाहर, हीमोग्लोबिन का एंटीआक्सीटैंट और मैक्रोफैजों, अल्वियोलार कोशिकाओं, और गुर्दे की मेसेंजियल कोशिकाओं में लौह चयापचय का नियंत्रण जैसे गैर-आक्सीजन-परिवहन कार्य करना होता है.