एक देश के दावे पर दूसरा विवाद पैदा करता बासमती चावल
भारत और पाकिस्तान, दोनों इस पर दावा जताते हैं, जिस कारण अंग्रेजों को इसे अपने पास रखने में आसानी हो जाती है। दोनों देशों के बीच नया विवाद उस बासमती चावल को लेकर है, जो दोनों देशों ही नहीं, पूरी दुनिया में खाने की मेज पर अपनी खुशबू बिखेरता है। हालांकि भारत-पाकिस्तान के अंतहीन टकराव में यह मुद्दा अब तक उपेक्षित रहा, पर अब यह सामने आया है। ‘बादशाहों के लिए उपयुक्त’ इस चावल का यूरोपीय संघ से जीआई दर्जा पाने के लिए दोनों देश प्रतिस्पर्धा कर रहे हैं। भारत ने वर्ष 2018 में इस संबंध में आवेदन कर अपने बासमती चावल को ‘जीआई’ दर्जा देने के लिए कहा था, जिससे कि इस चावल को इसके मूल उत्पादन स्थान यानी भारत से संबद्ध किया जा सके।
बासमती भारत का उसी तरह है, जिस तरह शैंपेन की पहचान फ्रांस से और जैतून की पहचान यूनान से है। जीआई दर्जा अक्सर गुणवत्ता के चिह्न के रूप में काम करता है और निर्यातकों को उच्च मूल्य हासिल करने में मदद करता है। विगत 10 जून को नींद से जागते हुए पाकिस्तान ने भी इस पर जवाबी दावा किया। अब पिछले ही महीने पाक प्रधानमंत्री इमरान खान ने व्यक्तिगत रूप से अपने मुल्क का प्रतिनिधित्व करने के लिए ब्रुशेल्स स्थित एक लॉ कंपनी को चुना, ताकि भारत के दावे का विरोध किया जा सके।
ऐसा इसलिए, क्योंकि चावल की यह विशेष किस्म दोनों मुल्कों के पंजाब प्रांत में उगाई जाती है। बासमती चावल का कारोबार व्यापक है, पर उससे ज्यादा यह प्रतिष्ठा का विषय है, जिसे दोनों में से कोई देश गंवाना नहीं चाहता। कहा जाता है कि वैश्विक बासमती बाजार में भारत की हिस्सेदारी 65 फीसदी है, जबकि शेष हिस्सेदारी पाकिस्तान की है। लेकिन यूरोपीय संघ को पाकिस्तान का बासमती निर्यात पिछले तीन वर्षों में लगभग दोगुना हो गया है, क्योंकि 2018 में आयातित कृषि उत्पादों पर कीटनाशकों के मुनासिब स्तर को कम कर दिया गया था, हालांकि भारत बार-बार इन परीक्षणों में विफल रहा है।
वाणिज्य मंत्रालय के अनुसार, 2019-20 में भारत में 75 लाख टन बासमती चावल का उत्पादन हुआ, जिसमें से 61 फीसदी का निर्यात किया, जिससे देश को 31,025 करोड़ रुपये की आय हुई। क्षेत्रवार देखें, तो भारत ने 4.3 अरब डॉलर का बासमती विदेशों में बेचा, जिसका तीन चौथाई हिस्सा पश्चिम एशियाई देशों में गया। अखिल भारतीय चावल निर्यात संघ के अनुसार, मोटे तौर पर 18 करोड़ डॉलर मूल्य के बासमती का निर्यात अमेरिका को किया गया। पाकिस्तान को डर है कि अगर भारत को जीआई टैग मिल जाता है, तो यूरोपीय देशों के बाजारों में पाकिस्तानी बासमती चावल के लिए दरवाजे बंद हो जाएंगे, बावजूद इसके कि वह इसका एक प्रमुख उत्पादक है। हालांकि भारत वैश्विक बासमती बाजार के दो-तिहाई हिस्से को नियंत्रित करता है, पर हाल के वर्षों में यूरोप में पाक बासमती की बिक्री बढ़ने से राष्ट्रों के बीच प्रतिस्पर्धा बढ़ी है।
ईरान भारतीय बासमती का प्रमुख आयातक रहा है। लेकिन अमेरिकी प्रतिबंध के चलते भारतीय आपूर्तिकर्ताओं को ईरान से भुगतान प्राप्त करना मुश्किल हो गया है, क्योंकि इस इस्लामी गणराज्य के खिलाफ अंतरराष्ट्रीय प्रतिबंध जारी है। समाचार रिपोर्टों से संकेत मिलता है कि पाकिस्तानी व्यापारी ईरान के साथ नए वस्तु विनिमय तंत्र स्थापित करने में सक्षम रहे हैं, जबकि भारतीयों को अपने पुराने नकदी-आधारित सौदों को तुरंत वस्तु विनिमय तंत्र में बदलने के लिए संघर्ष करना पड़ा है। हालांकि यूरोपीय संघ का जीआई टैग अमेरिकी बाजार में लागू नहीं होगा, पर यह वैश्विक उपभोक्ताओं के मन में बासमती को भारतीय उत्पाद के रूप में उतारने में मदद तो कर ही सकता है। भारत के जम्मू-कश्मीर, हिमाचल प्रदेश, पंजाब, हरियाणा, चंडीगढ़, दिल्ली, उत्तराखंड और उत्तर प्रदेश में बासमती का उत्पादन होता है। जबकि पाकिस्तान में रावी और चनाब नदी के बीच पंजाब प्रांत के नरोवाल, स्यालकोट, गुजरांवाला, हाफिजाबाद और शेखुपुरा जिलों में बासमती का उत्पादन होता है। बासमती का एक इतिहास है, जो इसे मध्यकाल से जोड़ता है। आईन-ए-अकबरी में जिक्र है कि लाहौर, मुल्तान, इलाहाबाद, अवध, दिल्ली, आगरा, अजमेर और मालवा के रायसेन क्षेत्र में मुस्कीन (लाल बासमती) की खेती होती थी।