उमा भारती की मप्र में सक्रियता के सियासी मायने
भोपाल। मध्यप्रदेश में एक बार फिर पूर्व मुख्यमंत्री उमा भारती की सक्रियता बढ़ गई है और उन्होंने इसके लिए जनता से जुड़े शराबबंदी के मुद्दे को बड़ा हथियार बनाया है। उमा भारती की इस सक्रियता के सियासी मायने भी खोजे जाने लगे हैं और कयास लगाया जा रहा है कि वह एक बार फिर मध्य प्रदेश की राजनीति में सक्रिय होने की तैयारी में तो नहीं है।
राष्ट्रीय राजनीति के फलक पर उमा भारती की पहचान तेज-तर्रार नेता के तौर पर रही है और मध्य प्रदेश में भाजपा की जड़ों को जमाने में उनकी अहम भूमिका को कोई नकार नहीं सकता। उन्होंने वर्ष 2003 में भाजपा को सत्ता में लाया था, मगर हुबली तिरंगा कांड के चलते उन्हें पद से इस्तीफा देना पड़ा था। उसके बाद वे राष्ट्रीय राजनीति में सक्रिय हुई और अपनी सियासी जमीन उत्तर प्रदेश में तैयार की। वर्तमान में वे तो ना तो भाजपा की सक्रिय राजनीति का हिस्सा है और न ही निर्वाचित जन प्रतिनिधि।
उमा भारती ने पिछले दिनों शराबबंदी का नारा बुलंद किया है और पार्टी के राष्ट्रीय अध्यक्ष जेपी नड्डा तक से भाजपा शासित राज्यों में शराबबंदी की मांग कर डाली। इतना ही नहीं वह शराबबंदी का नारा बुलंद करने के लिए मध्यप्रदेश पहुंची और यहां बेबाकी से अपनी बात रखी। उमा भारती कहती हैं कि उनके पास शराबबंदी से होने वाले राजस्व की भरपाई का विकल्प भी है इस संदर्भ में वे मुख्यमंत्री शिवराज सिंह चौहान से बात भी करेंगी।
उमा भारती की मध्य प्रदेश में बढ़ती सक्रियता के सियासी मायने भी खोजे जाने लगे हैं। राज्य में उनके समर्थक बड़ी संख्या में हैं। उमा भारती के प्रभाव को वर्ष 2018 में हुए विधानसभा के उपचुनाव में देखा जा सकता है, जब उनके चार करीबियों को भाजपा ने उम्मीदवार नहीं बनाया तो चारों ने भाजपा का दामन छोड़कर कांग्रेस के उम्मीदवार के तौर पर चुनाव लड़ा और जीत भी दर्ज की थी। उनमें से दो बड़ा मलहरा से प्रद्युम्न सिंह लोधी और दमोह से राहुल लोधी कांग्रेस को छोड़कर फिर भाजपा में आ गए हैं। प्रद्युम्न लोधी तो मलहरा से निर्वाचित हो चुके हैं और अब दमोह से राहुल लोधी को उम्मीदवार बनाए जाने की कवायद जारी है। राहुल का विरोध भी हो रहा है।
राजनीतिक विश्लेषक शिव अनुराग पटेरिया भी उमा भारती के शराबबंदी वाले बयान को सियासी तौर पर महत्वपूर्ण मानते हैं। उनका कहना है कि उमा भारती ने शराबबंदी के बयान के जरिए आधी आबादी की आवाज उठाई है, वे हमेशा ही व्यवस्था के खिलाफ (एंटी स्टेबलिशमेंट) आवाज उठाने वाली नेता के तौर पर पहचानी जाती रही हैं। आदर्श स्थिति में शराबबंदी होनी भी चाहिए। यह बात अलग है कि ये हो नहीं पाती। उन्होंने इस बयान के जरिए यह बता दिया है कि उनकी सक्रियता बनी हुई है और वे महिला की बड़ी पैरोकार बनकर सामने आई हैं। यही कारण है कि मध्य प्रदेश सरकार को दो कदम आगे बढ़ाकर पीछे करना पड़ा है। वहीं वे असहमति के स्वर का भी नेतृत्व कर रही हैं। इतना ही नहीं अभी हाल ही में उत्तर प्रदेश में हुआ हाथरस प्रकरण हो या किसान आंदोलन, दोनों ही मामलों में उन्होंने अपनी आवाज बुलंद की थी।