‘Puspa’, कहानी शुरू होती है आंध्र प्रदेश के घने जंगल शेषाचलम से…

‘Puspa’, कहानी शुरू होती है आंध्र प्रदेश के घने जंगल शेषाचलम से जहां से लाल चंदन की लड़कियों की तस्करी चेन्नई और फिर वहां से चीन से होते हुए जापान तक होती है। पुष्पा राज (अल्लू अर्जुन) इन्हीं लकड़ियों की तस्करी करता है। पुष्पा की बैक स्टोरी भी है।
पैन इंडिया फिल्मों में शामिल तेलुगु भाषा में बनी पुष्पा : द राइज – पार्ट 1 हिंदी, तमिल, मलयालम और कन्नड़ भाषाओं में सिनेमाघरों में रिलीज हुई है। इस फिल्म से दक्षिण भारतीय फिल्मों के सुपरस्टार अल्लू अर्जुन हिंदी दर्शकों के सामने आए हैं।
कहानी शुरू होती है, आंध्र प्रदेश के घने जंगल शेषाचलम से जहां से लाल चंदन की लड़कियों की तस्करी चेन्नई और फिर वहां से चीन से होते हुए जापान तक होती है। पुष्पा राज (अल्लू अर्जुन) इन्हीं लकड़ियों की तस्करी करता है। पुष्पा की बैक स्टोरी भी है। वह एक नाजायज औलाद है।
सहकारी बैंकों में कैसे हुए करोड़ों के घोटाले
वह लकड़ी काटने वाले दिहाड़ी मजदूर के तौर पर लाल चंदन की लकड़ी की तस्करी करने वाले कोंडा रेड्डी (अजय घोष) के लिए काम करता है। मोबाइल के दौर में पेजर का इस्तेमाल करने वाला पुष्पा तेज दिमाग का है। वह कोंडा को इन लकड़ियों को पुलिस की नजरों से बचाकर ले जाने के कई पैंतरे बताता है।
जल्द ही वह कोंडा का सबसे भरोसेमंद आदमी बन जाता है। इस बीच उसे दूध बेचने वाली श्रीवल्ली (रश्मिका मंदाना) से प्यार हो जाता है। इस प्यार वाले एंगल के बीच कहानी का दूसरा ट्रैक भी चलता है। मंगलम श्रीनु (सुनील) तस्करी की लकड़ियों को चेन्नई तक पहुंचाता है।
पीएम मोदी बोलेः यूपी में योगी बहुत है उपयोगी
वह इसके लिए प्रति टन दो करोड़ रूपये लेता है, जबकि इसके बदले कोंडा को वह प्रति टन सिर्फ 25 लाख रूपये ही देता है। पुष्पा को जब यह बात पता चलती है, तो वह श्रीनु से बात करता है। यहां से दुश्मनी का सिलसिला शुरू होता है। यह फिल्म दो हिस्सों में बांटी गई है।
ऐसे में फिल्म की कहानी अभी अंजाम तक नहीं पहुंची है। एक मजदूर का क्राइम की दुनिया का बेताज बादशाह बनने की कहानी नई नहीं है, लेकिन इसे निर्देशक और लेखक सुकुमार ने आज के दर्शकों को ध्यान में रखते हुए नए तरीके से पेश किया है।
शंकराचार्य ब्रह्मानंद ने किया ज्योतिष्पीठ में ऊर्जा का संचार : शंकराचार्य वासुदेवानंद
हालांकि इंटरवल के बाद सुकुमार की पकड़ निर्देशन और स्क्रीनप्ले दोनों से छूटती नजर आती है। उसकी वजह फिल्म की लंबी-चौड़ी स्टारकास्ट है। एक वक्त के बाद लगता है कि इसे एक ही पार्ट में समेटा जा सकता था। लेकिन फिर फिल्म के आखिरी आधे घंटे में भंवर सिंह शेखावत (फहाद फासिल) की एंट्री होती है।
पुष्पा और भंवर की दुश्मनी के सीन्स से जो उम्मीदें थीं, वह अधूरी रह जाती हैं। यह पूरी तरह से अल्लू अर्जुन की फिल्म है। हर दूसरे फ्रेम में वही नजर आते हैं। दूसरे किरदारों को स्थापित करनेa का वक्त सुकुमार को नहीं मिला है।