अफगानिस्तान में तालिबान का दोबारा उभरना कैसे भारत के लिए खतरा है?

अफगानिस्तान से अमेरिकी सेना की वापसी का दिन पास आने के साथ ही वहां पर आतंक के दूसरे नाम तालिबान का कब्जा हो रहा है. तालिबान ने बीते कुछ ही दिनों में अफगानिस्तान के 10 जिलों पर कब्जा कर लिया. इनमें से अधिकतर में कब्जे के दौरान कोई हिंसक संघर्ष नहीं हुआ क्योंकि खुद अफगान सैनिक आतंकियों से डरकर पड़ोसी देश भाग निकले. अब तालिबान के दोबारा उभरने का डर गहरा चुका है, जिससे पड़ोसी देश पाकिस्तान समेत भारत को भी खतरा है.
अफगानिस्तान और तालिबान का पेच समझने से पहले एक बार पूरी हिस्ट्री समझते हैं कि आखिर क्यों अमेरिकी सेना अफगान पहुंची और अब क्यों लौट रही है. अमेरिका में 9/11 आतंकी हमले की जड़ तालिबान से जुड़ी थी. इसे देखते हुए उसने साल 2001 में तालिबान के खात्मे के लिए अफगानिस्तान में अपनी सेना भेजी. ये 11 सितंबर 2001 के हमले के बाद की घटना है. तत्कालीन अमेरिका सरकार का मानना था कि अफगानिस्तान ही तालिबानियों की शरणस्थली है और यहीं पर अलकायदा से जुड़े लोग रहते हैं.
अफगानिस्तान में अमेरिकी सैनिक तब से रहते हुए लगातार आतंकियों का सफाया करते रहे. यहां तक कि वे अफगानी सेना को ट्रेनिंग देने लगे ताकि वो आतंक का मुकाबला खुद ही कर सकें. इसी बीच कुछ सालों में अमेरिकी जनता समेत नेता भी अमेरिकी सैनिकों को वापस बुलाने की मांग करने लगे.
इसकी सबसे बड़ी वजह तो सैनिकों के अपने परिवारों से दूरी के कारण आई अस्थिरता थी. जनता का मानना है कि अमेरिकी सैनिक बेवजह ही दशकों से युद्ध के हालात में रखे गए हैं. साथ ही इस असंतोष की एक और वजह ये भी है कि विदेशी जमीन पर सैनिकों की तैनाती का ज्यादातर खर्च अमेरिकी लोगों से टैक्स के तौर पर वसूला जाता है. पैसों के अलावा सैनिकों को कई मानवीय समस्याओं से भी जूझना पड़ता है. जैसे चरमपंथी समूह कभी भी उन पर हमला कर देते हैं.
अमेरिकी सैनिकों को वापस लौटने का वादा पूर्व राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रंप ने अपने कार्यकाल में किया था. जाने से पहले उन्होंने अपने सैनिकों के लौटने का एलान भी कर दिया. उनके बाद नए राष्ट्रपति जो बाइडन ने भी इसे जारी रखा. वादे के मुताबिक सितंबर महीने में सारे अमेरिकी सैनिक अफगानिस्तान से लौट आएंगे
सैनिकों के लौटने का समय नजदीक आते ही अफगानिस्तान एक बार फिर चरमपंथियों की हिंसा में सुलगने लगा. पाकिस्तान पहले से ही डरा हुआ है कि सैनिकों से खाली होते ही अफगानिस्तान में अशांति आ जाएगी. और यही हो भी रहा है. तालिबान ने पूरे देश में अपनी गतिविधियां बढ़ा दी हैं. यहां तक कि वो अमेरिकी सेना को भी धमकी दे चुका है कि समय सीमा पूरी होने तक सभी वहां से लौट जाएं.
धार्मिक तौर पर बेहद कट्टर संगठन तालिबान की शुरुआत नब्बे के दशक से मानी जाती है. तब वहां पर पश्तो आंदोलन उभरा, जो पश्तून इलाके में शरीयत की स्थापना की बात करने लगे. पहले वे धार्मिक मदरसों की तरह काम करते. उनकी लोकप्रियता भी बढ़ी लेकिन बाद में वे अपनी बात न मानने वालों पर हिंसा करने लगे और इलाकों पर जबरन कब्जा करने लगे. हालात ये बने कि अगले 5 ही सालों में तालिबान संगठन ने काबुल पर कब्जा कर लिया.
वे धार्मिक कट्टरपंथी थे, जो महिलाओं को बुरके में रहने और घर से अकेले बाहर निकलने पर पाबंदी की बात करते. पुरुषों के लिए दाढ़ी रखना अनिवार्य था. साथ ही कोई भी पश्चिमी शिक्षा नहीं पा सकता था. ब्यूटी पार्लर और विदेशी गाने सुनने पर पाबंदी लग गई. 10 साल और उससे अधिक उम्र की लड़कियों के स्कूल जाने पर रोक थी.
साल 2001 में अमेरिकी सैनिकों के दखल के बाद तालिबान सुस्त पड़ गया लेकिन अब वो फिर सिर उठा रहा है. इससे न केवल पाकिस्तान, बल्कि भारत को भी खतरा है. कंधार विमान अपहरण कांड इसी का एक उदाहरण है. साल 1999 में भारत के विमान आईसी 814 को अगवा कर लिया गया. इसमें 180 यात्री थे. हाईजैक से भारत सरकार काफी दबाव में थी.
इधर हाईजैक करने वाले अपहरणकर्ता अपने भारतीय जेलों में बंद अपने 30 से ज्यादा आतंकी साथियों की रिहाई के साथ भारी रकम भी मांग रहे थे. दबाव इस कदर था कि तत्कालीन एनडीए सरकार को यात्रियों की सुरक्षा को देखते हुए 3 आतंकियों को कंधार ले जाकर रिहा करना पड़ा था. कंधार हाइजैकिंग को भी आज भी एक डरावने सपने की तरह याद किया जाता है.
अब अफगानिस्तान पर दोबारा तालिबानी दबदबा बन जाए तो भारत एक बार फिर किसी आतंकी साजिश का शिकार हो सकता है. ये भी ध्यान देने की बात है कि पाकिस्तान की सरकार भले ही तालिबान का विरोध करती दिखे, लेकिन लगातार वहीं से आतंकियों के तालिबानी सेना में भर्ती होने की खबरें आती रहीं. ऐसे में एक बड़ा डर ये भी है कि पाकिस्तान ही कहीं तालिबान के जरिए कश्मीर में आतंकी गतिविधियां न बढ़ा दे.