अचानक कहां गायब हुए दर्जनों मदरसे व लाखो छात्र !
लखनऊ। भ्रष्टाचार हमारे देश की विकराल समस्या है। हाल ही में उत्तराखंड में मदरसों के नाम पर करोड़ों रुपए के गोलमाल का सनसनीखेज मामला सामने आया है। यह घोटाला मुस्लिम बच्चों की पढ़ाई के नाम पर हड़प लिया गया। बताया जाता है कि मदरसों में २ लाख मुस्लिम बच्चों के नाम पर मदरसा संचालकों ने सालों से सरकारी धन की लूट मचा रखी थी लेकिन जब इन मदरसों में स्कालरशिप सहित अन्य मदों में मिलने वाले पैसों को आधार कार्ड से जोड़ने का फैसला सरकार ने लिया तो सारा घोटाला पकड़ में आ गया। दरअसल मदरसों में पढ़ने वाले बच्चों को पिछले कई दशकों से हर महीने सरकार की ओर से वजीफा यानी स्कॉलरशिप दी जा रही थी लेकिन जैसे ही उत्तराखंड सरकार ने इन बच्चों के बैंक खातों को आधार नंबर से लिंक करने को कहा, तो एक साथ 1 लाख 95 हजार 360 बच्चे गायब हो गए। गायब हुए इन छात्रों के नाम पर अभी तक सरकार हर साल करीब साढ़े 14 करोड़ रुपये छात्रवृत्ति बांट रही थीं जोकि अब घट कर केवल 2 करोड़ रह गयी है।
दरअसल गायब हुए ये बच्चे कभी थे ही नहीं, बच्चो के झूठे नामों के आधार पर मदरसों द्वारा सरकार से पैसे लिए जा रहे थे।
मदरसों के नाम पर सरकारी धन की ये लूटपाट अकेले उत्तराखंड का मामला है, उप्र जैसे बड़े राज्यों में भी यह आम है, मुख्यमंत्री आदित्यनाथ ने उत्तर प्रदेश में मदरसों को अपना रजिस्ट्रेशन करवाने को कहा तो इसीलिए मुस्लिम मौलवियों ने हंगामा खड़ा कर दिया था।
चलिए बात उत्तराखंड की ही करते हैं जहां 2014-15 तक 2 लाख 21 हजार आठ सौ मुस्लिम छात्र सरकारी स्कॉलरशिप पा रहे थे। आधार से लिंक होते ही इनकी संख्या गिरकर केवल 26 हजार 440 रह गई। यानी लगभग 88 फीसदी मुस्लिम छात्रों की संख्या कम हो गई। ये वो स्कॉलरशिप है जो बीपीएल यानि बेहद गरीब परिवारों के छात्रों को दी जाती है। सरकार उन छात्रों के लिए भी प्रावधान लायी, जिनके पास आधार नहीं है। ऐसे छात्रों को भी स्कॉलरशिप का फायदा मिल रहा है, लेकिन इसके लिए उन्हें जिलाधिकारी से सत्यापन करवाना जरूरी है लेकिन सत्यापन हो कैसे, जब वो छात्र हैं ही नहीं।
फर्जी नामों के आधार पर बरसों से जनता के पैसों की लूट हो रही थी, अनेक मदरसे केवल कागजों पर चल रहे थे। असलियत में वे मदरसे थे ही नहीं और ना ही इनमे कोई छात्र पढ़ते थे। फर्जी छात्रों के नाम भेजकर आराम से सरकारी फंड हासिल कर रहे थे।
हैरत की बात तो ये है कि उत्तराखंड के 13 जिलों में से 6 जिलों में तो एक भी मुसलमान छात्र स्कॉलरशिप लेने नहीं आया। सबसे ज्यादा लूट हरिद्वार जिले में चल रही थी। इसके बाद ऊधमसिंहनगर, देहरादून और नैनीताल जिलों के नंबर आते है।
बताया जा रहा है कि कुछ जिलों में अब तक जितने मुस्लिम छात्रों को स्कॉलरशिप दी जा रही थी, उतनी तो उन जिलों की कुल आबादी भी नहीं है यानी जितनी आबादी नहीं है, उससे भी ज्यादा छात्रों के नाम पर मदरसे वर्षों से जनता के पैसों की लूट कर रहे थे।
सरकार ने मामला सामने आने पर जिला प्रशासन को इस घोटाले के दोषियों की लिस्ट तैयार करने और उन पर कार्रवाई के आदेश दिए गए हैं। मदरसे के लुटेरों की धर-पकड़ शुरू हो गयी है, अंदेशा है कि इन्हे सजा तो होगी ही, साथ ही इनसे लूटा हुआ पैसा भी निकलवाया जाएगा।
उत्तर प्रदेश में तो और भी काफी कुछ चल रहा है। सरकारी पैसों की लूट वहां भी ऐसे ही की जा रही है, साथ ही खुफिया एजेंसियों ने ये भी अलर्ट दिया है कि कई मदरसों में बच्चों को कट्टरपंथी शिक्षा भी दी जा रही है। इस तरह की गड़बड़ियों को देखते हुए मुख्यमंत्री योगी ने सभी मदरसों का रजिस्ट्रेशन अनिवार्य कर दिया है। राज्य में कई मदरसे बिना रजिस्ट्रेशन के चल रहे हैं, उन्हें फंड कहाँ से आता है, इसकी किसी को कोई जानकारी तक नहीं है।
इन मदरसों में क्या पढ़ाया जा रहा है, इस पर भी सरकार का कोई नियंत्रण नहीं होता। जबकि ऐसे छात्रों को लगातार अल्पसंख्यक कल्याण योजनाओं के तहत तमाम फायदे मिलते रहते हैं। उत्तर प्रदेश सरकार राज्य में चल रहे लगभग 800 मदरसों पर प्रतिवर्ष 4000करोड़ रुपये खर्च करती है। मगर हैरत की बात है कि इसका एक बड़ा हिस्सा छात्रों तक पहुंचने की जगह मदरसा संचालकों की जेब में जा रहा है।