कर्ज राहत के सवाल पर आंखें क्यों मूंद रखी हैं विश्व बैंक और आईएमएफ ने?
कई विशेषज्ञों ने इस बात पर असंतोष जताया है कि यहां विश्व बैंक और अंतरराष्ट्रीय मुद्रा कोष (आईएमएफ) की चल रही सालाना बैठक में दुनिया के एक बड़े हिस्से पर गहरा रहा कर्ज संकट विचार-विमर्श का नंबर एक मुद्दा नहीं है। उन्होंने आरोप लगाया है कि अगर यह संकट विकसित देशों पर आया होता, तो ये दोनों संस्थाएं उसे सबसे ऊपर रखतीं। जानकारों ने कहा है कि मौजूदा कर्ज संकट धीरे-धीरे इस स्थिति में पहुंचा है। लेकिन इस पूरे दौरान विश्व बैंक और आईएमएफ ने इस वाजिब ध्यान नहीं दिया।
संयुक्त राष्ट्र के मुताबिक इस समय 54 देश ऐसे हैं, जो गंभीर कर्ज संकट में हैं। हालांकि इन देशों का दुनिया की कुल अर्थव्यवस्था में योगदान महज तीन फीसदी है, लेकिन वहां दुनिया की 18 फीसदी आबादी रहती है। उस आबादी का 50 फीसदी से भी ज्यादा हिस्सा पहले से घोर गरीबी में जी रहा है। संयुक्त राष्ट्र ने ध्यान दिलाया है कि इनमें से कई देश इस समय जितनी रकम स्वास्थ्य, शिक्षा और सामाजिक सुरक्षा पर खर्च कर रहे हैं, उससे ज्यादा रकम वे कर्ज का ब्याज चुकाने में लगा रहे हैं।
अब विश्व बैंक के मुख्य अर्थशास्त्री इंदरमीत गिल यह स्वीकार किया है कि मौजूदा स्थिति के बीच दुनिया में घोर गरीबी घटाने के संयुक्त राष्ट्र के लक्ष्य को पूरा करना संभव नहीं होगा। संयुक्त राष्ट्र ने 2030 तक चरम गरीबी में तीन फीसदी की कमी लाने का लक्ष्य तय किया था। गिल ने कहा है- ह्यनिश्चित रूप से हम पटरी से उतर गए हैँ। गरीबी घटाने का काम ठहर गया है।
अखबार द गार्जियन में छपे एक विश्लेषण के मुताबिक लगभग 60 फीसदी निम्न आय वाले देश और 25 फीसदी उभरती अर्थव्यवस्था वाले देश इस समय कर्ज संकट झेल रहे हैं या उनके इसमें फंसने की स्थितियां बनती जा रही हैं। अमेरिका में ब्याज दर बढ़ाने की अपनाई गई नीति ने उनकी मुश्किलें और बढ़ा दी हैं।
गरीब देशों को कर्ज राहत दिलाने के लिए अभियान चला रही संस्था डेट जस्टिस के कार्यकर्ता टिम जोंस ने द गार्जियन से कहा- निम्न और मध्यम आय वाले दो तिहाई देशों के बॉन्ड पर ब्याज दर दस फीसदी से ऊंची हो गई है। ऐसे में वे निजी क्षेत्र से कर्ज नहीं ले सकते। इसलिए अगर कर्जदाता देशों ने उनके बॉन्ड नहीं खरीदे, तो उन देशों का संकट में फंसना तय है। कर्ज राहत के लिए मुहिम चलाने वाली एक अन्य संस्था डेट रिलीफ इंटरनेशनल से जुड़े कार्यकर्ता मैथ्यू मार्टिन ने इस धारणा को गलत बनाया है कि चीन या प्राइवेट सेक्टर के कर्जदाताओं ने कर्ज राहत के सवाल को रोक रखा है।
उन्होंने कहा- ज्यादातर गरीब देशों ने कर्ज बहुपक्षीय विकास बैंकों से ले रखा है। वे बैंक भी कर्ज राहत देने के लिए आगे नहीं आए हैं। इनमें विश्व बैंक भी शामिल है। लेकिन विश्व बैंक के मुख्य अर्थशास्त्री गिल ने दावा किया है कि विश्व बैंक कर्ज राहत के सवाल को गंभीरता से ले रहा है। उसने इसे जलवायु परिवर्तन के साथ इस वक्त मौजूद सबसे बड़ी चुनौतियों में एक माना है। लेकिन आलोचकों का कहना है कि इस बात की झलक विश्व बैंक और आईएमएफ की यहां चल रही बैठक में देखने को नहीं मिल रही है।