क्यों पूजे जाते हैं शालिग्राम?(Shaligram)

शालिग्राम : हिंदू धर्म की मान्यताओं के अनुसार, शालिग्राम (Shaligram) की पूजा करना विशेष महत्व रखता है. धार्मिक ग्रंथों की मानें तो शालिग्राम जगत के पालनहार भगवान श्री हरि विष्णु का विग्रह स्वरूप है. ये काले रंग के गोल चिकने पत्थर के स्वरूप में पाए जाते हैं. माना जाता है कि देवी तुलसी का विवाह इन्हीं के साथ हुआ था. हिंदू धर्म को मानने वाले बहुत से लोग अपने घरों में पूजा स्थान पर शालिग्राम को स्थापित करते हैं. ऐसा माना जाता है कि जिन लोगों के घरों में शालिग्राम की नियमित रूप से पूजा होती है, वहां पर भगवान विष्णु की सदैव कृपा बनी रहती है. इस विषय में अधिक जानकारी दे रहे हैं दिल्ली निवासी ज्योतिषाचार्य पंडित आलोक पाण्डया.
शालिग्राम एक प्रकार का जीवाश्म पत्थर है. धार्मिक आधार पर इसका प्रयोग परमेश्वर के प्रतिनिधि के रूप में भगवान विष्णु का आह्वान करने के लिए किया जाता है. शालिग्राम मूल रूप से नेपाल में स्थित दामोदर कुंड से निकलने वाली गंडकी नदी से मिलता है. इसी कारण से शालिग्राम को गंडकी नंदन भी कहते हैं. हिंदू धर्म में पवित्र नदी गंडकी में पाए जाने वाले गोलाकार, आमतौर पर काले रंग के एमोनोइड जीवाश्म को ही शालिग्राम के रूप में पूजा जाता है. माना जाता है कि इन्हें देवी वृंदा के श्राप के बाद यह नाम प्राप्त हुआ था.
हिंदू धर्म की प्राचीन मान्यताओं के अनुसार शालिग्राम को सालग्राम के रूप में भी पूजा जाता है. शालिग्राम का संबंध सालग्राम नामक गांव से भी माना गया है. यह गांव नेपाल में गंडकी नामक नदी के किनारे बसा हुआ है. शिवलिंग और शालिग्राम को भगवान का विग्रह रूप माना गया है और पुराणों में बताया जाता है कि भगवान के इस विग्रह रूप की ही पूजा की जानी चाहिए. हिंदू धर्म में शिवलिंग के तो लाखों मंदिर हैं, लेकिन शालिग्राम का एक ही मंदिर है.
भारतवर्ष सहित जहां-जहां पर भी हिंदू निवास करते हैं, वहां पर भगवान विष्णु के अलग-अलग रूपों के कई प्रकार के मंदिर बनाकर पूजा की जाती है, लेकिन शालिग्राम का एकमात्र मंदिर नेपाल के मुक्तिनाथ क्षेत्र में स्थित है. यह मंदिर वैष्णव संप्रदाय के प्रमुख मंदिरों में से एक माना जाता है. मुक्तिनाथ मंदिर की यात्रा करना भी बहुत कठिन है.
हिंदू धार्मिक पुराणों के अनुसार यहां जाने वाले व्यक्ति को हर तरह के कष्टों से मुक्ति प्राप्त होती है. काठमांडू से मुक्तिनाथ की यात्रा के लिए पोखरा जाना पड़ता है. पोखरा के लिए सड़क या हवाई मार्ग ले सकते हैं. यहां से जोनसोम तक का रास्ता चार पहिए गाड़ी से तय होता है. जोमसोम से मुक्तिनाथ के लिए हेलीकॉप्टर ले सकते हैं, सड़क मार्ग से जाने के लिए पोखरा तक कुल 200 किलोमीटर की यात्रा करनी पड़ती है.