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परमाणु (परमाणु) तकनीक का उपयोग क्यों करने जा रहा है नासा?

नासा:मंगल ग्रह पर यान भेजने के लिए जो तकनीक हमारे वैज्ञानिक उपयोग कर रहे हैं, वह मानव अभियानों के लिए बिलकुल मुफीद नहीं है. फिलहाल मंगल पर जाने में कम से कम दो साल का समय लगता है. लेकिन इतने समय तक अंतरिक्ष यात्रियों के लिए इस तरह का सफर बहुत ही ज्यादा चुनौतीपूर्ण होगा और उन्हें कई समस्याओं का सामना करना होगा. इसके लिए दो ही तरह के उपाय हैं, या तो हमें ऐसी तकनीक और उपकरण विकसित कर लें जिससे इतना लंबा सफर सहज हो जाए या फिर हम इस सफर का समय ही कम कर लें जिससे एक साथ बहुत सारी समस्याएं हल हो जाएं. नासा परमाणु (परमाणु)  ऊर्जा वाले रॉकेट के साथ इसका हल लाया है.

एक निजी कंपनी को दिया ठेका
अमेरिकी स्पेस एजेंसी नासा और अमेरिकी सरकार की अगुआई वासे डिफेंस एडवांस्ड रिसर्च प्रोजेक्ट्स एजेंसी ने मंगल और अन्य महत्वाकांक्षी अंतरिक्ष अभियानों के लिए एक समाधान के साथ आए हैं. दोनों ने ही लॉकहीड मार्टिन नाम की कंपनी को परमाणु ताकत वाले रॉकेट के डिजाइन, निर्माण, और परीक्षण के लिए चुना है.

अंतरिक्ष पर्यटन में बड़ी छलांग?
डेमोन्स्ट्रेशन रॉकेट फॉर एजाइल सिसलूनार ऑपरेशन्स , डार्को नाम का यह प्रोजेक्ट के इस रॉकेट का परीक्षण 2027 तक होगा. यह तकनीक प्रणोदन या प्रपल्शन तकनीक में बहुत ही बड़ी छलांग होगी जिससे अंतरिक्ष यात्रा में क्रांति लाने की क्षमता है क्योंकि इस तकनीक का उपयो अंतरिक्ष में आने जाने का समय बहुत कम कर देगा.

एक साथ कई समस्याएं होंगी कम
लेकिन सबसे बड़ी बात इस तकनीका के इस्तेमाल से मंगल ग्रह पर मानव अभियान का समय भी बहुत ज्यादा कम हो जाएगा जो मंगल यात्रा कम जटिल और ज्यादा सुरक्षित हो जाएगी. समय कम होने से जहां साथ ले जाने वाले ईंधन, खाने और कार्गो का वजन कम होगा, वहीं अंतरिक्ष यात्रियों की समस्याएं भी कुछ हद तक कम होंगी जो बहुत लंबी यात्रा के कारण हो सकती है.
दोगुना कारगर होते हैं ऐसे रॉकेट
बताया जाता है कि परमाणु शक्ति सम्पन्न रॉकेट परम्परागत रासायनिक रॉकेट की तुलना में दो गुने कारगर होते हैं. इस वजह से उन्होंने बहुत ही कम प्रोपेलेंट की जरूरत होगी. जिससे वे ज्यादा सामान अपने साथ ले जाने में सक्षम होंगे. मंगल के अभियानों की डिजाइन में सबसे बड़ी चुनौती बहुत ज्यादा भार और उसके लिए जरूरी ईंधन को ले जाने का है. इससे अभियान की लागत और जटिलता दोनों बढ़ जाती हैं.

कौन बनाएगा इसके लिए परमाणु रिएक्टर?
जहां इस रॉकेट के डिजाइन से लेकर परीक्षण करने की जिम्मेदारी लॉकहीड मार्टिन कंपनी की होगी. वर्जीनिया की बीडब्ल्यूएक्स टेक्नोलॉजीस कंपनी इसके परमाणु विखंडन रिएक्टर का डिजाइन और निर्माण करेगी जो इंजन को शक्ति देने का काम करेगा. डार्को के परमाणु शक्ति वाले इंजन के कुल प्रबंधन और कार्यपालन की देखरेख का जिम्मा नासा के स्पेस टेक्नोलॉजी मिसन डायरेक्टरेट का होगा.
एसटीएमडी के कार्यकारी एसोसिएट प्रशासक डॉ प्रसून देसाई ने नासा के वॉशिंगटन मुख्यालय में इस अभियान के बारे में बताया कि परमाणु प्रणोदन तकनीकी के लिए व्यवसाय क्षेत्र का निवेश कितना और क्यों अहम है. उन्होंने कहा कि अब जैसे जैसे हम काम कर रहे हैं निवेश आ रहा है और कुछ कंपनियां पहले परमाणु शक्ति सम्पन्न रॉकेट अंतरिक्ष उड़ाने के लिए बनाने लगी हैं.

नासा इसके अलावा भी कई और अंतरिक्ष परमाणु तकनीकों पर काम कर रहा है और इसके लिए वह ऊर्जा विभाग से सहयोग भी ले रहा है. इसमें फिशन सर्फेस पॉवर प्रोजेक्ट और भविष्य के परमाणु ऊष्मा अंतरिक्ष यान की डिजाइन की संभावनाओं को खंगाला जाएगा. नासा ने डार्को के साथ साझेदारी के लिए 30 करोड़ डॉलर निर्धारित किए हैं. इनमें से 25 करोड़ परमाणु शक्ति वाले इंजनी की डिजाइन और विकास में ही लग जाएंगे.

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