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चाय पिलाते-पिलाते बन गए थे क्रांतिकारी(क्रांतिकारी)

बैतूल. स्वतंत्रता संग्राम सेनानी (क्रांतिकारी) नाम सुनते ही हमारे जहन में ऐसे लोगों की तस्वीर उभरती है जिन्होंने ब्रिटिश हुकूमत की यातनाएं झेलीं ,अपनी जिंदगी की परवाह किए बगैर लगातार संघर्ष किया और देश को आजादी दिलाकर ही चैन की सांस ली. ऐसे ही एक स्वतंत्रता सेनानी बैतूल में भी हैं. उन्हें महज 3 साल की उम्र में महात्मा गांधी का आशीर्वाद मिला. 12 साल की उम्र में अपने ही स्कूल में आग लगाने के आरोप में वो हवालात भी गए. आज वो 94 साल के हैं. इस उम्र में भी वे पूरी तरह सक्रिय हैं. वे अभी भी जिले की समस्याओं को लेकर आंदोलन करने पहुंच जाते हैं. इनका नाम है कॉमरेड डॉक्टर कृष्णा मोदी. मोदी आज भी अपनी बुलन्द आवाज से आंदोलन खड़ा करने का माद्दा रखते हैं.

वे मूल रूप से मध्य प्रदेश के बालाघाट जिले के रहने वाले हैं. लेकिन, पिछले 60 वर्षों से बैतूल के पाथाखेड़ा में रह रहे हैं. कृष्णा मोदी बताते हैं कि उनके जीवन पर महात्मा गांधी का खासा प्रभाव रहा. जब वो महज 3 साल के थे तब महात्मा गांधी भारत यात्रा करते हुए बालाघाट पहुंचे थे. यहां उनकी मां गोद मे लेकर गां धीजी से मिलने गई थी. यहीं उन्हें गांधीजी ने आशीर्वाद दिया था. कृष्णा मोदी ने बताया कि जब वो 12 साल के थे तब उनका सम्पर्क स्वतंत्रता आंदोलन में शामिल क्रांतिकारियों से हो गया. उन्होंने इसके पीछे की कहानी भी बताई.

चाय पिलाते-पिलाते बने वानर सेना के सदस्य
दरअसल, उनके पिता की एक होटल थी. यहां वे क्रांतिकारियों को चाय देने जाया करते थे. यहां होने वाली बैठकों को देखकर उनके मन मे भी देशप्रेम की भावना हिलोरे लेने लगी. क्रांतिकारियों ने कृष्णा मोदी और उनके दोस्तों को इकट्ठा कर एक वानर सेना बनाई. इसका काम था पोंगा लेकर आंदोलन का प्रचार करना. वे बताते हैं कि एक बार तो क्रांतिकारियों के कहने पर उन्होंने अपने ही स्कूल में आग लगा दी थी. क्रांतिकारियों ने उन्हें कई दिन छिपाकर रखा, लेकिन एक बार वो पुलिस के हत्थे चढ़ गए. उन्हें हवालात में बंद कर दिया गया. वे बताते हैं कि तत्कालीन कलेक्टर और एसपी ने उन्हें हवालात से रिहा करवाया था. 1947 में जब देश आजाद हुआ तब हैदराबाद और कश्मीर रियासत ने भारत में विलय से इनकार कर दिया. उस समय कृष्णा मोदी वामपंथी लाल सेना से जुड़ गए और उन्हें लाल सेना के साथ हैदराबाद भेज दिया गया. यहां हैदराबाद के विलय तक वो वहीं रहकर आंदोलन करते रहे.

बैतूल आकर बने मजदूरों की आवाज
लगभग 60 साल पहले कृष्णा मोदी बैतूल के पाथाखेड़ा आ गए. यहां उनकी पत्नी सरकारी अस्पताल मे बतौर नर्स काम करती थीं. यहां आकर भी कृष्णा मोदी अपनी आदत के अनुसार मजदूर संगठनों से जुड़ गए और उनके अधिकारों के लिए आंदोलन करते रहे. मजदूरों को उनका हक दिलाने और स्थानीय मुद्दों पर संघर्ष करते हुए उन्होंने एक अलग पहचान बनाई. आज भी जब इस इलाके में कोई जन सरोकार से जुड़ी समस्या होती है तो उसके लिए आंदोलन की अगुवाई डॉ. कृष्णा मोदी करते हैं. इसके साथ ही उनका परिवार भी उनके मार्गदर्शन के बिना कोई काम नहीं करता.

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