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जब ससुर की पार्टी पर दामाद ने किया कब्जा’ ( party)

शिवसेना’: निर्वाचन आयोग ने शुक्रवार को महाराष्ट्र के मुख्यमंत्री एकनाथ शिंदे के नेतृत्व वाले समूह को ‘शिवसेना’ ( party) नाम और उसका चुनाव चिह्न ‘तीर-कमान’ आवंटित किया. इसे उद्धव ठाकरे के लिए एक बड़ा झटका माना जा रहा है. इस बीच महाराष्ट्र के मुख्यमंत्री एकनाथ शिंदे ने निर्वाचन आयोग द्वारा उनके धड़े को वास्तविक शिवसेना के रूप में मान्यता दिए जाने के फैसले को सचाई एवं लोगों की जीत बताया.
निर्वाचन आयोग ने मुख्यमंत्री शिंदे के नेतृत्व वाले धड़े को असली शिवसेना के रूप में मान्यता दी और पार्टी का मूल चुनाव चिन्ह ‘तीर-कमान’ दे दिया. शिंदे की ओर से दायर छह महीने पुरानी याचिका पर एक सर्वसम्मत आदेश में, तीन सदस्यीय आयोग ने ठाकरे गुट को शिवसेना (उद्धव बालासाहेब ठाकरे) नाम और ‘मशाल’ चुनाव चिह्न को बनाए रखने की अनुमति दी.

लेकिन देश में ऐसा पहली बार नहीं हुआ है जब एक पार्टी को अपना नाम और अपनी पहचान इस तरह गंवानी पड़ी हो. देश की राजनीति में 28 साल पहले भी ऐसी ही एक घड़ी आई थी जब दामाद ने अपने ही ससुर की पार्टी पर कब्जा कर लिया था. मामला आंध्र प्रदेश का है.

फिल्मकार एनटी रामाराव ने 1983 में आंध्र प्रदेश में तेलुगू देशम पार्टी की स्थापना की थी. इसके 9 महीने बाद ही वह राज्य के मुख्यमंत्री बने. ये राज्य में पहली गैर कांग्रेसी सरकार थी.

एनटी रामाराव साल 1995 में आंध्र प्रदेश के मुख्यमंत्री थे. इसी दौरान उनके दामाद चंद्रबाबू नायडू ने बगावत कर दी. नायडू का कई विधायकों ने साथ दिया और रामाराव की सीएम कुर्सी चली गई. इसके कुछ ही समय बाद जनवरी 1996 में रामाराव का निधन हो गया.
एनटीआर के निधन के बाद चंद्रबाबू नायडू का सरकार से लेकर संगठन तक कब्जा हो गया. ऐसा समझा जाता है कि भारत में किसी राजनीतिक पार्टी के भीतर ये सबसे बड़ा उलटफेर था.

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