सोचे विचारें

जब कोरोना का उफान तो बेफिक्र क्यों इंसान!

केन्द्र द्वारा राज्यों को दिए मनमाफिक अधिकारों के बजाए कोरोना पर वन नेशन वन डायरेक्शन का फॉर्मूला अपनाया जाए. सोशल डिस्टेंसिंग, सभी जरूरी जगहों पर मास्क पहनने, देश भर में दूकानों के बन्द और खुलने का एक सा समय, सप्ताहान्त व साप्ताहिक कर्फ्यू जैसी सख्ती के लिए पूरे देश में एक से नियम हों ताकि विविध नियमों का भय और संशय न रहे. कोविड अस्पतालों की बेहतरी के लिए देश में सभी सेन्टरों को सीसीटीवी सर्वेलॉन्स के एक प्लेटफॉर्म पर लाकर तुरंत एक सेण्ट्रल मॉनीटरिंग प्रणाली विकसित की जाए जो नामुमिकन नहीं है.
दरअसल कोरोना को लेकर अब लोगों में तरह-तरह की भ्रान्तियां बहुत तेजी से घर करती जा रही हैं.निश्चित रूप से यह बेहद चिन्ताजनक और भयावह है. उससे भी बड़ी हैरानी की बात यह कि भारत में पहली बार एक दिन में 30 जुलाई को कोरोना मरीजों की संख्या 50 हजार पार कर 52 हजार 123 क्या हुई जो अब तक थमने का नाम नहीं ले रही है. इसके बाद तो जैसे हर रोज संख्या बढ़ोत्तरी की होड़ सी लग गई. पिछले एक हफ्ते से तो लगातार 60 से 70 हजार संक्रमितों के मामले सामने आते रहे. लेकिन इसी सप्ताहांत शनिवार देर रात इसका भी रिकॉर्ड टूट गया और एक दिन में कुल मामले 70 हजार को पार कर गए. इसे हल्के से लेना न केवल बेहद घातक होता जा रहा है बल्कि इसके गंभीर, नकारात्मक और दूरगामी परिणाम भी हो सकते हैं. आखिर ऐसा क्या हो रहा है जो लोग कोरोना को लेकर एकदम बेफिक्र से होते जा रहे हैं? वह भी तब, जब विश्व स्वास्थ्य संगठन यानी डब्ल्यूएचओ लगातार चेता रहा है. स्वास्थ्य मंत्रालय भी बता रहा है. सभी राज्य सतर्कता को लेकर नित नए आदेश निकाल रहे हैं. सब जानते हैं कि कोरोना इस सदी की घातक वैश्विक महामारी तो भारत की राष्ट्रीय आपदा है.
69 दिनों के लॉकडाउन का दौर देश पहले देख चुका है. अब कोई भी लॉकडाउननहीं देखना चाहता क्योंकि इससे लाखों नौकरियां चली गईं, न जाने कितने छोटे-बड़े रोजगार, धंधे बन्द हुए. बावजूद इसके लोगों के दिमाग से कोरोना का डर आखिर क्योंखत्म हो रहा है?यह चिन्ताजनक है! हाल ही में उप्र के दो कैबिनेट मंत्रियोंकी मृत्यु गई. 9 दूसरे मंत्री संक्रमित हुए. देश के पूर्व राष्ट्रपति प्रणव मुखर्जी संक्रमण के साथ गंभीर हैं. जबकि गृहमंत्री अमित शाह भी कोरोना की चपेट में आए. मप्र में तो मुख्यमंत्री सहित कई मंत्री गिरफ्त में आ चुके हैं और सिलसिला जारी है. दूसरे कई प्रदेशों में भी कमोवेश यही हालात हैं. मंत्री, विधायक, विशिष्ट, अतिविशिष्ट किसी को भी कोरोना ने नहीं बख्शा. केन्द्रीय आयुष मंत्री श्री पद नाइक की हालत कोरोना संक्रमण से बेहद गंभीर हो गई थी. गोवा सरकार ने भी माना हैवो मौत के मुंह से लौटे हैं. फिर भी लोग लापरवाह क्यों हो रहे हैं?

समझना होगा कि आखिर हुआ क्या जो लोगों के मन से कोरोना का डर खत्म हो रहा है? इस सच को समझने से नुमाइन्दों और हुक्मरानों को भी परहेज नहीं करना चाहिए. हो सकता है कि कमीं कहें या चूक या फिर अनदेखी जो भी हो उसे सुधार लिया जाए और एक बार फिर संक्रमण की रफ्तार थामी जा सके.दुनिया का भूगोल तो बदला नहीं जा सकता. देश, शहर, गांव की दूरियां वही रहेंगी. हां कुछ घटा है तो इंसानों का आपसी संपर्क जिसे मोबाइल और सोशल मीडिया ने खत्म कर दिया और आपसी विश्लेषणों के दौर तर्क-कुतर्क का मौका दिया. कितनी ही सच्ची-झूठी धारणाएं, अवधारणाएँ भी बनी, बिगड़ी होंगी. लॉकडाउन में कठोरता, अनलॉक में ढ़ील के अपने-अपने मायनों से ही लापरवाहियों केउपजने का सिलसिला चल पड़ा. पहले केन्द्र की इकलौती गाइड लाइनथी. अबराज्यों के अपने निर्देशों हैं.कई राज्यों में डीएम को जरूरत के मुताबिक जिले में आदेश का अधिकार है तो डीएम अपने-अपने अनुविभागों में एसडीएम को जिम्मेदारी दे चुके हैं. नतीजन एक-दूसरे पर जिम्मेदारी डालने से भी भारत में कोरोना महामारी पर राज्यों की अपनी-अपनी ढ़पली, अपना-अपना राग जैसी स्थिति बन गई. बस यहीं से लोगों में भ्रान्तियां भी फैलीं और ऐसी भ्रान्ति सोशल मीडिया पर कैसी-कैसी क्रान्ति लातीहै पूछिए मत. वाट्स एप यूनिवर्सिटी का सच सबको पता है. कोरोना को लेकर भी कुछ यही हुआ. वह अपनी अंधी रफ्तार बढ़ता रहा. इस बीच रही सही कसर तमाम कोविड अस्पतालों की दुर्दशा, साधारण दवाओं से इलाज का भ्रम और इलाज में लापरवाहियों के लीक तमाम वायरल वीडियो जिसमें इंसानी अंगों के निकालने की मनगढ़ंत कहानियों ने पूरी कर दी. शायद इन्हीं सब से डर जाता रहा. वैक्सीन के आभाव में इम्युनिटी पर जोर का वाजिब फण्डा प्रशंसनीय है.

सच कहा जाए तो होम आइसोलेशन, क्वारण्टीन, कंटेनमेण्ट एरिया के जहां-तहां नित नए बदलते नियमों से भी आम जनमानस में डर कमा और भ्रम बढ़ा. माना कि हालातों के मद्देनजर यह जरूरी था लेकिन उससे जरूरी यह था कि जनसामान्य को मानसिक रूप से संक्रमण के पहले जैसे बल्कि और भी बढ़े खतरे से आगाह कराते हुए राहत कीवजहें बताकर सोशल डिस्टेंसिंग, मास्क, सैनिटेशन की जरूरत पर सख्ती से अमल काकड़ा संदेश देना था. यही नहीं हुआ. यह भी नहीं भूलना चाहिए कि उसी सोशल मीडिया पर ऐसे वीडियो भी खूब फॉरवर्ड और शेयर हुए जिन्हें कईकोरोना पीड़ितों ने मौत से पहले बनाकर जारी किया था. बावजूद इन सबके कोरोना को लेकर बेफिक्रीहैरान करती है. अब चाहे व्यापारी हों,नागरिक या फिर अधिकारी ही क्यों न हो मास्क न लगाने, सोशल डिस्टेंसिंग की लापरवाही, सार्वजनिक स्थलों पर थूंकना या गंदगी फैलाने पर जुर्माना प्रशंसनीय है. लेकिन दुख तब होता है जब एक आम आदमी यह कीमत लाठियों से पिटकर चुकाता है.कठोरता का मतलब पिटाई तो नहीं. समझाइश से हल निकलता है, निकला है.

बीते शनिवार की देर रात कोरोना संक्रमण ने एक दिन में 70 हजार पार कर नया रिकॉर्ड रचाजबकि कुल संक्रमितों की संख्या साढ़े 30 लाख के करीब पहुंच गई. यहबेहद गंभीर चेतावनी है. ऐसे में रिकवरी रेट के बढ़ते आंकड़ों से वाहवाहीलूटसंक्रमण केभय को दबाने की कोशिशभी ठीक नहीं. दूसरे देशों के आंकड़ों से रिकवरी कीतुलना कर हम जनसामान्य को अच्छा संदेश जरूर देते हैं. लेकिन यह भूल जाते हैं कि केवलकोरे संदेशों और आंकड़ों की बाजीगरी से लड़ाई जीत नहीं पाएंगे. निदान के रास्ते पर बढ़ना होगा और कोरोना से बचाव, सेहत की सुरक्षा, जनजीवन के लिए जरूरी गतिविधियों को बिना संक्रमण की जद में आए जारी रखने वाले प्रयासों पर ज्यादा ध्यान देना होगा. जाहिर है अब लॉकडाउन की स्थिति दिखती नहीं.

हाँ, ऐसी सख्तियों की सख्तजरूरत है ताकि लोग खुद ही होशियार रहें. केन्द्र द्वारा राज्यों को दिए मनमाफिक अधिकारों के बजाए कोरोना पर वन नेशन वन डायरेक्शन का फॉर्मूला अपनाया जाए. सोशल डिस्टेंसिंग, सभी जरूरी जगहों पर मास्क पहनने, देश भर में दूकानों के बन्द और खुलने का एक सा समय, सप्ताहान्त व साप्ताहिक कर्फ्यू जैसी सख्ती के लिए पूरे देश में एक से नियम हों ताकि विविधनियमों का भय और संशय न रहे. कोविड अस्पतालों की बेहतरी के लिए देश में सभी सेन्टरों को सीसीटीवी सर्वेलॉन्स के एक प्लेटफॉर्म पर लाकरतुरंत एक सेण्ट्रल मॉनीटरिंग प्रणाली विकसित की जाए जो नामुमिकन नहीं है. सभी बड़े अस्पतालों, जिला अस्पतालोंमें सीसीटीवी होते हैं जिन्हें सहज उपलब्ध तकनीक से जोड़नेशनल सर्वेलान्स सिस्टम बनाना होगा ताकि देश के किसी भी अस्पताल की व्यवस्था-अव्यवस्था कोरेण्डमली कभी भी देखा, जाना जा सके. इससे भयवश ही सही व्यवस्था सुधरेगी.

एक बार फिर कोविड-19 युध्द पर सरकारी तंत्र की कसावट के साथ पुलिसिंग को भी पूर्ववत सख्ती के लिए तैयार करना होगा ताकि सार्वजनिक स्थान, हाट, बाजार, चल रहे सार्वजनिक परिवहन और कोरोना संक्रमित क्षेत्रों में नियमों का सुनिश्चित पालन हो. उससे भी बड़ा यह हो कि बढ़ते आंकड़ों के बावजूद कोरोना के भय को लेकर हाल ही मे हुई लापरवाहियों को बिना किसी टीका-टिप्पणी के दुरुस्त किया जाए. जरूरत पड़ने पर कड़े फैसले लिए जाएं. अब तक लापरवाही से ही सही आ बैल मुझे मार वाली स्थिति आगे न बढ़ पाए क्योंकि कोरोना का असर पूरे देश में है और यह कोई मायने नहीं रखता कि कहां ज्यादा कहां कम. रिकॉर्ड बताते हैं कब कहां कोरोना ब्लास्ट हो जाए किसी को नहीं पता होता, जब होता है तब हड़कंप मच जाता है. वैसे भी इस वैश्विक महामारी से निपटने के लिए देश को एक जुट होना होगा. यह तभी होगा जब केन्द्र के निर्देशों में राज्य काम करें ताकि पूरे देश में कोरोना की एक जैसी, एक साथ लड़ाई लडी जाए. आपसी भेद, मतभेद न दिखें ताकि कोरोना की मजूबत हो चुकी चैन को इस बार तोड़ ही दिया जाए. यह नहीं तो कम से कम कोरोना की रफ्तार को ही रोके रखा जाए क्योंकि वैक्सीन करीब है और उसके बाद जंग जीतना तय है. रफ्तार को रोकना ही किसी बड़ी जंग जीतने से कम नहीं होगा.चुनौती आसान नहीं है लेकिन नामुमकिन भी तो नहीं. बस जरूरत है हर कोई एक बार फिर कोरोना की चुनौती समझे और मात देने को आगे आए.

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