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अगर पृथ्वी ब्लैकहोल (blackhole)में गिर जाए तो क्या होगा,

ब्लैक होल: ब्लैक होल (blackhole) के बारे में ज्‍यादा से ज्‍यादा जानकारी जुटाने के लिए वैज्ञानिक दिनरात लगे रहते हैं. अब तक की जानकारियों के मुताबिक, ब्‍लैक होल ऐसे पिंड हैं, जो प्रकाश के साथ ही यूनिवर्स में मौजूद सभी चीजों को अपने अंदर खींचकर खत्‍म कर देने की क्षमता रखते हैं. खगोलविदों ने अंतरिक्ष में ऐसी कई जगह देखी हैं, कोई तारा ब्लैक होल में समा रहा है. ब्‍लैक होल में समाने के बाद उस तारे का अस्तित्‍व ही नष्‍ट हो गया. अब ये सवाल उठना लाजिमी है कि अगर पृथ्वी किसी ब्‍लैक होल में समा जाएं तो क्‍या होगा? हमारे ग्रह के सबसे नजदीक कौन सा ब्‍लैक होल है? इसकी दूरी कितनी है और ये कब धरती को निगल सकता है?

सबसे पहले जानते हैं कि ब्लैक होल क्‍या होते हैं? ये कैसे बड़े से बड़े तारे को निगलकर खत्‍म कर देते हैं? दरअसल, ब्लैक होल की पूरी ताकत उसके छोटे आकार में होती है. इसके इस आकार में बहुत ज्यादा भार होता है. इससे उसका गुरुत्‍व बहुत ज्‍यादा ताकतवर हो जाता है. इसी ताकतवर गुरुत्‍व बल के कारण ब्‍लैक होल अपने आसपास आने वाली हर चीज को अपनी ओर खींचकर निगल जाते हैं. इसका गुरुत्‍व बल इतना ज्‍यादा होता है कि अगर कोई तारा इसके नजदीक से प्रकाश की गति से भी गुजरेगा तो भी ये उसे अपने अंदर खींच लेते हैं. ये भी जरूरी नहीं है कि ब्‍लैक होल सिर्फ काले रंग के ही हों. क्‍वासार्स जबरदस्‍त चमकीले ब्‍लैक होल होते हैं.

धरती और इंसानों पर क्‍या होगा असर?
वैज्ञानिकों के मुताबिक, अगर धरती ब्‍लैक होल में गिरती है तो तीन घटनाएं हो सकती हैं. पहली, इसके गुरुत्‍व के कारण हमारा शरीर लंबा होने लगेगा और खिंचाव महसूस होने लगेगा. पैर और सिर केंद्र में होने के कारण खिंचते चले जाएंगे. वहीं, हाथों के केंद्र से बाहर होने के कारण अलग दिशा में लंबे होने शुरू होंगे. इससे हमारा पूरा शरीर स्‍पेगेटी की तरह हो जाएगा. इसे वैज्ञानिकों ने स्‍पेगेटिफिकेशन प्रॉसेस नाम दिया है. दूसरी, ब्‍लैक होल में बहुत ज्‍यादा रेडिएशन होता है. इससे उसमें गिरते ही हमारा शरीर भुन जाएगा. तीसरी, ब्‍लैक होल में गिरने वाली वस्‍तु की होलोग्राफ‍िक इमेज बन जाए और वह अपने मूल रूप में भी सही सलामत रहे.
ब्‍लैक के नजदीक कैसे टूटता है तारा?
किसी भी तारे का ब्लैक होल के पास वाला हिस्सा ज्यादा तेजी से अंदर की ओर खिंचता है. तारे के ब्लैक होल से दूर के हिस्‍से पर गुरुत्‍व कमजोर रहता है. इस अंतर को ज्‍वारीय बल कहते हैं. इससे तारा टूटने लगता है. ब्‍लैक होल में गिरने पर कुछ ऐसा ही असर सपेगेटी के बनने के समय भी नजर आता है. खगोलविदों ने इस तरह की घटनाओं को दूसरी गैलेक्‍सीज में होते हुए देखा है. इस प्रक्रिया को वैज्ञानिक ज्‍वारीय व्‍यवधान कहते हैं. इसमें तारा ब्‍लैक होल के बहुत ही ज्‍यादा नजदीक पहुंचने के बाद टूटा था.

धरती का सबसे नजदीकी ब्‍लैक होल
स्‍पेगेटिफिकेशन के लिए तारे का ब्‍लैक होल के नजदीक पहुंचना जरूरी है. इस समय हमारे ग्रह धरती का सबसे नजदीकी ब्‍लैक होल भी बहुत ज्यादा दूर है. इस समय धरती के पास ऐसा कोई भी ब्‍लैक होल नहीं है, जो हमारे ग्रह को निगलकर नष्‍ट कर सके. इस समय धरती के सबसे नजदीक वी-616 मोनोसेरॉटिस है. वैज्ञानिक इसे ‘ए 0620-00’ कहते हैं. वैज्ञानिकों के मुताबिक, ये ब्‍लैक होल धरती के मुकाबले साढ़े 6 गुना से भी ज्‍यादा वजनी है. अगर धरती इसके 8 लाख किमी दायरे में आ गई तो ये हमारे ग्रह को कई टुकड़ों में बांट देगा. हालांकि, इसकी धरती से मौजूदा दूरी के हिसाब से ये कहा जा सकता है कि अभी दशकों तक ऐसा कुछ नहीं होने वाला है. अभी वी-616 मोनोसेरॉटिस धरती से 3300 प्रकाशवर्ष दूर है.

 

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