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ब्रिटेन में सत्ता बदलाव का भारत पर क्या पड़ेगा असर ?

ब्रिटेन के मतदाताओं ने लेबर पार्टी को भारी जीत दिलाई है । 650 सदस्यीय हाउस ऑफ कॉमन्स में लेबर पार्टी ने 412 सीटें जीतीं। जिससे कंजरवेटिव पार्टी की सत्ता पर 14 साल की पकड़ खत्म हो गई। स्टारमर अब ऋषि सुनक की जगह लेंगे, जो पहले ब्रिटिश एशियाई प्रधानमंत्री थे। जिन्होंने भारत को अपने पक्ष में किया और मुक्त व्यापार समझौते (FTA) के लिए बातचीत को आगे बढ़ाने की कोशिश की। जो बाजार पहुंच और ऑटोमोबाइल और शराब पर टैरिफ जैसे मुद्दों पर मतभेदों के कारण मुश्किल में पड़ गया था।

अब स्टारमर के आने से ब्रिटेन में उनकी पार्टी के हौसले बुलंद हैं। चुनाव जीतने वालों में कई भारतीय चेहरे भी शामिल हैं, जिसमें प्रीति कौर गिल का चेहरा भारत से रिश्तों के लिहाज से काफी अहम साबित हो सकता है। ब्रिटेन की पहली सिख महिला सांसद लेकिन इनकी असली पहचान भारत विरोध से जुड़ी है, जो समय-समय पर भारत के खिलाफ जहर उगलती रहती हैं।

साल की शुरुआत में लेबर पार्टी से चुनाव जीतीं प्रीति कौर गिल ने ब्रिटिश संसद के निचले सदन में ब्रिटेन में रहने वाले सिखों का मुद्दा उठाया और कहा था कि भारतीय एजेंट्स का टारगेट ब्रिटेन में रहने वाले सिख हैं। ब्रिटेन में रह रहे कई सिख उनकी हिट लिस्ट में हैं। उन्होंने सवाल उठाया कि ब्रिटिश सरकार सिखों की सुरक्षा के लिए क्या कदम उठा रही है। उन्होंने स्पीच में ऑस्ट्रेलिया कनाडा, न्यूजीलैंड, अमेरिका और UK के इंटेलिजेंस अलायंस का जिक्र भी किया। प्रीति कौर गिल ने ये सब बातें चुनाव से पहले कही थीं। लेकिन तब उनकी पार्टी की सरकार नहीं थी। लेकिन अब ऐसा नहीं है।

14 साल बाद लेबर पार्टी का प्रधानमंत्री 10 डाउनिंग स्ट्रीट में रहेगा। इससे पहले लेबर पार्टी साल 2010 में जीती थी। लेकिन उसके बाद कंजर्वेटिव पार्टी के ही प्रधानमंत्री बनते रहे। इस दौरान भारत और ब्रिटेन के रिश्ते खूब बढ़े। लेकिन 10 डाउनिंग स्ट्रीट में लेबर पार्टी का प्रधानमंत्री आने से खालिस्तान को लेकर नई सरकार का क्या रुख रहेगा। इस पर भारत की नजर रहेगी।

पिछले साल मार्च के महीने में लंदन में भारतीय उच्चायोग पर 50 खालिस्तान समर्थकों ने हमला किया था। इस घटना का असर दोनों देशों के रिश्तों पर भी पड़ा था। ऐसे में ब्रिटेन की सत्ताधारी पार्टी में खालिस्तान समर्थकों का बोलबाला क्या खालिस्तान समर्थकों का हौसला बढ़ाने वाला साबित नहीं होगा? क्योंकि सिख लेबर काउंसलर परबिंदर कौर पहले ही खालिस्तान समर्थक पोस्ट साझा करने के लिए पार्टी की जांच के घेरे में हैं जिसमें भारत में नेताओं की हत्या करने वाले आतंकवादी समूहों और आतंकवादियों का भी समर्थन किया गया था।

किएर स्टार्मर ने लेबर पार्टी को जिताने के लिए अपनी पार्टी की नीतियों पर दोबारा विचार किया। उन्हें बदला। सवाल ये है कि क्या विदेश नीति को लेकर भी किएर स्टार्मर ऐसा ही करेंगे। क्योंकि पिछले 14 सालों में दुनिया काफी कुछ बदल चुकी है। भारत एक उभरती शक्ति है। जो अपनी चिंता और ऐतराज को पहले से कहीं ज्यादा आक्रामक होकर दर्शाता है। ऐसे में किएर स्टार्मर का भारत को लेकर क्या रुख रहता है। भारत के लिहाज से ये अहम होगा।

लेबर पार्टी से एक और सांसद वरिंदर जूस ने भी जीत दर्ज की है। वो वॉल्वरहैम्प्टन वेस्ट से सांसद हैं। जूस के साथ-साथ कौर पर खालिस्तानी समूहों से संबंध रखने का आरोप है। उन्होंने लाभ सिंह और सुखदेव सिंह बब्बर जैसे अलगाववादियों की एक गैलरी के सामने स्टार्मर के साथ पोज़ दिया था। तो प्रधानमंत्री और उनकी पार्टी ने उन्हें टिकट दिया और किएर स्टार्मर ने उनके लिए प्रचार किया। इसीलिए सवाल उठ रहा है कि क्या ब्रिटेन में हुआ सत्ता परिवर्तन भारत से पक्ष में साबित होगा या फिर अभिव्यक्ति की आजादी के नाम पर ब्रिटेन में भारत के खिलाफ जहर उगलने वालों को खुली छूट मिल जाएगी?

ब्रिटेन में बनने वाली नई सरकार का कश्मीर को लेकर क्या रुख रहता है। इस पर भी दोनों देशों के रिश्ते काफी कुछ निर्भर करेंगे। लेबर पार्टी कश्मीर पर भारत विरोधी रुख अपनाती आई है। पार्टी कश्मीरियों के लिए आत्मनिर्णय के आह्वान का समर्थन करती रही है। अब सवाल ये है कि क्या किएर स्टार्मर अपनी पार्टी की इस भूल को सुधारेंगे?

माना जाता है कि कंजर्वेटिव पार्टी के सत्ता में आने के बाद से भारत और ब्रिटेन के रिश्ते मजबूत हुए। खासकर बोरिस जॉनसन के कार्यकाल में भारत और ब्रिटेन के रिश्तों में ऊर्जा आई। साल 2022 में द्विपक्षीय संबंधों को व्यापक रणनीतिक साझेदारी तक मजबूत किया गया। लेकिन स्टार्मर लेबर पार्टी से हैं। जिनका रुख ऐतिहासिक तौर पर भारत को लेकर नरम नहीं माना जाता। लेबर पार्टी कश्मीर मुद्दे पर भारत विरोधी रुख अपनाती आई है।

पार्टी कश्मीरियों के लिए आत्मनिर्णय के आह्वान का समर्थन करती रही है। खास तौर पर साल 2019 में जेरेमी कॉर्बिन के नेतृत्व में, लेबर ने अंतरराष्ट्रीय पर्यवेक्षकों को कश्मीर में प्रवेश करने की वकालत करते हुए एक आपातकालीन प्रस्ताव पारित किया था। इस प्रस्ताव में घोषणा की गई थी कि कश्मीर में मानवीय संकट पैदा हो गया है। प्रस्ताव में इस बात को भी बहुत ज़ोर दिया गया था कि कश्मीर को आत्मनिर्णय का अधिकार दिया जाना चाहिए। भारत ने इस प्रस्ताव का विरोध किया था। लेबर पार्टी के कॉर्बिन से भारत और पाकिस्तान के बीच संभावित परमाणु तनाव को रोकने के लिए मध्यस्थता की सुविधा और शांति बहाल करने के लिए दोनों देशों के उच्चायुक्तों के साथ जुड़ने का भी आग्रह किया गया।

कश्मीर को लेकर जर्मी कोर्बिन से जुड़ी ये बात पुरानी हो चुकी है। स्टार्मर ने लेबर पार्टी को पूरी तरह से बदल डाला है। 4 साल पहले लेबर पार्टी के नेता के तौर पर किएर स्टार्मर सफाई दे चुके हैं कि कश्मीर, भारत और पाकिस्तान का आपसी मसला है। यही नहीं किएर स्टार्मर जनता से भारत के साथ रिश्ते सुधारने का वादा करके सत्ता में आए हैं।

लेबर पार्टी पारंपरिक रूप से विचारधारा पर आधारित विदेश नीति पर चलती रही है। मानव अधिकारों के रिकॉर्ड लेकर लेबर पार्टी अक्सर भारत और दूसरे देशों की आलोचना करती रही है। भारत की सरकार ने इसे कभी नहीं पसंद किया है। एक और मुद्दा ब्रिटेन आकर बसने वाले भारतीय कामगारों को वर्क परमिट जारी करने का भी है। लेबर पार्टी का घोषित लक्ष्य ये है कि वो वैध प्रवासियों की संख्या को कम करेगी और अवैध प्रवासियों को ब्रिटेन में दाखिल होने से रोकेगी।

अगर लेबर पार्टी की सरकार भारत के साथ रिश्ते सुधारने को अपने एजेंडे का हिस्सा बनाती है, तो किएर स्टार्मर के लिए भारत के साथ मुक्त व्यापार समझौते पर दस्तखत करना सबसे बड़ी प्राथमिकता होगी। जिसका आगाज दोनों देशों के लिए बहुत फायदेमंद साबित हो सकता है।तो साफ है कि अगर किएर स्टार्मर, भारत के साथ अच्छे रिश्ते कायम करना चाहते हैं, तो फिर उनको भारत सरकार को ये यकीन दिलाना होगा कि वो ज्यादा व्यवहारिक विदेश नीति पर चलेंगे। अब ये देखना होगा कि ब्रिटेन की नई सरकार इन दोनों के बीच किस तरह संतुलन बनाती है।

ब्रिटेन की जो आज हालत है उसे देखते हुए किएर स्टार्मर की राह आसान नहीं है। बड़ी बात ये है कि पिछली बार की तरह इस बार भी ब्रिटेन के चुनाव में भारतवंशियों का बोलबाला है। लेबर और कंजर्वेजिव पार्टी, दोनों दल से बड़ी संख्या में भारतवंशी जीतकर आए हैं।ऋषि सुनक भले ही चले गए हों। लेकिन इस बार पिछली बार से ज्यादा भारतवंशी ब्रिटिश संसद पहुंचे हैं। इस चुनाव में ब्रिटेन में 650 सीटों पर 107 भारतीयों ने अपनी किस्मत आजमाई थी जिसमें से कई चेहरे जीतने में कामयाब हो गए हैं। बड़ी बात ये है कि कोई भी पार्टी हो जीतने वालों में भारतीयों का दबदबा है।

ऋषि सुनक की पार्टी भले ही चुनाव हार गई हो लेकिन वो कड़े मुकाबले में उत्तरी इंग्लैंड से चुनाव जीत गए। लेबर पार्टी के सदस्य कनिष्क नारायण ने ब्रिटेन आम चुनाव में जीत हासिल की है। कनिष्क नारायण का जन्म बिहार के मुजफ्फरपुर में हुआ है। वो 12 साल की उम्र में पढ़ाई के लिए यूके चले गए थे। उन्होंने ऑक्सफोर्ड और फिर स्टैनफोर्ड में पढ़ाई की है। कनिष्क सिविल सेवक रह चुके हैं। इसके अलावा उनके पास प्राइवेट सेक्टर में भी काम अनुभव है

कंजर्वेटिव पार्टी की बड़ी नेता सुएला ब्रेवरमैन वाटरलूविले से जीती हैं। गगन मोहिंद्र पंजाबी हिंदू फैमिली से हैं। वह कंजर्वेटिव पार्टी के सदस्य हैं। वह यूके जनरल इलेक्शन में साउथ वेस्ट हर्ट्स से चुनाव जीते हैं। उनके माता-पिता पंजाब से थे। गगन मोहिंद्र के जन्म से पहले ही वो यूके चले गए थे।

लेबर पार्टी के सदस्य नवेंदु मिश्रा ने स्टॉकपोर्ट सीट से जीत हासिल की है। उन्होंने 2019 के चुनावों में भी इस सीट पर परचम लहराया था। उनकी मां गोरखपुर से आती हैं, जबकि उनके पिता उत्तर प्रदेश के कानपुर से हैं। इस सीट पर 1992 से हर चुनाव में लेबर पार्टी के सांसद ने जीत दर्ज की है। इसके अलावा सतवीर कौर भी साउथैम्पटन टेस्ट से सांसद बनने वाली भारतवंशी हैं।

पिछली संसद में लेबर पार्टी के छह सांसद भारतीय मूल के थे। इस बार ये तादाद दो गुना बढ़ने की बात हो रही है। लेबर पार्टी में स्टार्मर के करीबियों को लगता है कि ब्रिटेन की ये राजनीतिक हकीकत दोनों देशों के रिश्तों में सुधार सुनिश्चित करेगी। कंजर्वेटिव पार्टी की शिवानी राजा लीसेस्टर ईस्ट से चुनाव जीती हैं। उन्होंने लेबर पार्टी के राजेश अग्रवाल और बतौर निर्दलीय चुनाव मैदान में उतर पूर्व सांसद क्लाउड वेब्बे और कीथ वाज को हराया। बड़ी बात ये है कि लीसेस्टर ईस्ट से लेबर पार्टी पिछले 40 सालों से जीत रही थी। लेकिन इस बार देशभर में उसकी लहर के बावजूद शिवानी राजा ने अपनी पार्टी का परचम लहरा दिया।

ब्रिटेन के चुनावों में भारतीय मूल के लोग कितनी अहमियत रखते हैं इसका अंदाजा इसी बात से लगा सकते हैं कि ऋषि सुनक की तरह किएर स्टार्मर भी चुनाव से पहले हिंदू मंदिर पहुंचे। उन्होंने लंदन के स्वामीनारायण मंदिर में जाकर दर्शन किए और जयकारा भी लगाया और कहा कि ब्रिटेन में हिंदूफोबिया के लिए कोई जगह नहीं है। साल 2021 की जनगणना के अनुसार ब्रिटेन में 10 लाख से ज्यादा हिंदू आबादी है। 2011 में ब्रिटेन की कुल जनसंख्या का डेढ़ फीसदी हिंदुओं का था। ये बढ़कर 1।7 फीसदी हो गया। वहां ईसाई और मुस्लिम के बाद हिंदू तीसरा सबसे बड़ा धर्म है।

   अशोक भाटिया,

वरिष्ठ स्वतंत्र पत्रकार ,लेखक, समीक्षक  एवं टिप्पणीकार , लेखक  5  दशक से लेखन कार्य से जुड़े हुए हैं ,पत्रकारिता में वसई गौरव अवार्ड से  सम्मानित, वसई पूर्व  – 401208 ( मुंबई )

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