सोचे विचारें

खून से तेरे कदमों को धोयेंगे हम

स. सम्पादक शिवाकान्त

भेंट अपने सरों की चढ़ा जाएंगे  जिन रचनाकारों, कवियों व शहीदों ने जेल की दीवारों पर नाखूनों से कुरेद कर वंदेमातरम लिखकर आजादी की इबारत लिखी थी उनकी पीठ पर पड़े कोड़ों की मार से निकले फफोलों के फूटने पर आये लहू के कतरों की परवाह ना करते हुए हम आज लोकतंत्र की आड़ लेकर बड़े बड़े घोटाले करके पूंजीपतियों की सूची में अपना स्थान बनाने में कामयाबी हासिल कर जनता के सामने कितना भद्दा मजाक कर रहे हैं अपने देश को आजादी के नाम पर लूटने में हमको कतई लज्जा नहीं आती ऐक साधारण परिवार में जन्मा व्यक्ति देखते ही देखते चुनाव लड़ने पर जीतने के बाद किस प्रकार से करोड़ो में खेलने लगता है क्या कभी सोचा आपने क्या यह हमको फिर ऐक बार गुलामी का अहसास नहीं दिला रहा !पता है इस समर में कई घरों के इकलौते चिराग आजादी की बलिवेदी पर निसार हो गए। मां की कोख से जन्मे रत्न मातृभूमि की दुर्दशा को देख आजादी की जंग का लोहा लेते हुए मिट्टी में सदा के लिए विलीन गए और जाते समय भी जिनकी जिह्वा पर अंग्रेजी क्रूरता के लिए ये शब्द आए-

याद रहे इतिहास कभी ना माफ करेगा तुमको!
पीढ़ियां तुम्हारी करनी पर पछताएगी!
बांध बवाने से पहले जल सूख गया तो,
धरती की छाती पर दरारे पड़ जाएगी!
जब आजादी हर आंगन में नन्ही-सी हंसी बनकर थिरक रही थी। तिरंगे को नभ में चल रही हवाओं के साथ लहराते देख आंखें चमक रही थीं। लोकतंत्र की नींव रखने के साथ ही देश का पहला प्रधानमंत्री पंडित जवाहरलाल नेहरू को चुना गया !
सरदार वल्लभभाई पटेल के अथक परिश्रम के परिणामस्वरूप रियासतों का एकीकरण हुआ और डॉ. भीमराव अंबडेकर के प्रयासों ने देश का संविधान अल्प समय में तैयार कर अपनी महत्वपूर्ण भूमिका का निर्वहन किया। बच्चों की शिक्षा के लिए शिक्षामंत्री बनाया गया और हर गांव में पाठशालाएं खोलने के लिए स्वीकृति प्रस्ताव पारित किए गए। थोड़े समय के लिए सब कुछ सही चलता रहा। यह सब परतंत्रता की बेड़ियों से पड़े जिस्म पर घावों के लिए मरहम की तरह था। कहें तो बिलकुल जन्मों के प्यासे के लिए पानी को प्राप्त करने और भूख से व्याकुल भूखे के लिए भोजन प्राप्त करने के समतुल्य ही था। लेकिन आजादी के कुछ सालों बाद ही देश की लोकतांत्रिक प्रक्रिया से चयनित हुए जनप्रतिनिधियों की मानसिकता देशहित न रहकर स्वहित होने लगी। वस्तुत: राजनेताओं की विकृत मानसिकता और स्वच्छंद रवैये ने अय्याशी की समस्त सीमाएं तोड़ दीं।

पहले गोरे, कालों को लूट रहे थे, तो अब काले ही कालों को लूटने पर तुलने लगे। विकास को परिभाषित करने के लिए जनकल्याणकारी योजनाओं को लागू करने के साथ ही अलमारी में फाइलों की संख्या बढ़ने लगी। लेकिन, ‘जन’ और ‘कल्याण’ धरती और आकाश की तरह कल्पनालोक में मिलते दिखे। जिन रचनाधर्मियों और कवियों ने जेल की दीवारों पर नाखूनों से ‘वंदेमातरम्’ लिखकर आजादी की इबारत लिखी थी उनकी पीठ पर पड़े कोड़ों की मार से निकले फोड़ों के फूटने पर आए लहू के कतरे-कतरे की यह पुकार थी-

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