उत्तर प्रदेशलखनऊ

उप्र लोक सेवा आयोग ने तीन साल में 26103 युवाओं को बनाया अधिकारी

-पूर्ववर्ती सरकार पांच वर्ष में भी नहीं कर सकी थी इतनी नियुक्ति
-योगी सरकार का दावा, आयोग की प्रतिष्ठा और विश्वसनीयता को किया पुनस्र्थापित

लखनऊ। योगी सरकार का दावा है कि उसने उत्तर प्रदेश लोक सेवा आयोग की खोई हुई प्रतिष्ठा, विश्वसनीयता और पारदर्शिता को पुनस्र्थापित किया है। आयोग ने वर्तमान सरकार के मात्र तीन वर्ष में ही 26103 पदों पर अभ्यर्थियों का चयन कर दिया। वहीं पूर्ववर्ती सरकार में पूरे पांच साल की अवधि में इससे भी कम कुल 26000 अभ्यर्थियों का ही चयन हुआ था। राज्य सरकार के प्रवक्ता ने शनिवार को यहां बताया कि योगी शासन में तीन सालों के अंदर लोक सेवा आयोग से चयन किये गये 26103 अभ्यर्थियों में से 141 युवा उप जिलाधिकारी के पद पर नियुक्त किये गये हैं। वहीं 184 अभ्यर्थियों का चयन पुलिस उपाधीक्षक पद के लिये हुआ है। इसके अलावा 4108 एलोपैथिक चिकित्साधिकारी, 773 होमियोपैथ चिकित्साधिकारी, 969 आयुर्वेदिक चिकित्साधिकारी और 535 पद डेंटल सर्जन के शामिल हैं। इसी तरह तीन वर्षों में कुल 610 पीसीएस जे के अधिकारियों का चयन लोक सेवा आयोग द्वारा किया गया। प्रवक्ता ने बताया कि इस अवधि में 6566 अधिकारियों को पदोन्नति के माध्यम से भी चयन किया गया। वहीं पूर्ववर्ती सरकार में पांच साल के दौरान मात्र 1588 अधिकारियों को पदोन्नति मिल सकी थी। योगी सरकार के प्रवक्ता ने दावा किया है कि तीन साल की अवधि में आयोग में समयबद्ध कार्य हुये। समय से विज्ञापन, परीक्षा की स्कीम तथा समयबद्ध परीक्षा परिणाम घोषित करना सुनिश्चित किया गया। इसके अलावा आयोग का पूरे साल का एक परीक्षा कैलेंडर वर्ष के पूर्व जारी किया गया ताकि अभ्यर्थी अपनी तैयारी समयानुसार सुनिश्चित कर सकें। प्रवक्ता का यह भी दावा है कि इस दौरान आयोग की कार्य संस्कृति में बदलाव करके उसमें पारदर्शिता, सुचिता, विश्वसनीयता, समयबद्धता तथा कर्तव्यपरायणता का समावेश किया गया। अभ्यर्थियों की शिकायतों के निवारण के लिये आयोग के अध्यक्ष द्वारा प्रत्येक बुधवार को अभ्यर्थियों से मिलकर उनकी शिकायतों के निवारण की व्यवस्था प्रारम्भ की गई। इसके लिए आयोग के अध्यक्ष एवं सदस्यों के पद पर ईमानदार, योग्य एवं कर्मठ लोगों की नियुक्ति की गई। उन्होंने कहा कि आयोग ने इन तीन वर्षों में इतनी पारदर्शिता के साथ काम किया कि किसी भी परीक्षा के विरुद्ध न्यायालय से कोई भी स्थगनादेश जारी नहीं किया गया। पूर्ववर्ती सरकार में आयोग की पारदर्शिता पर उठे थे सवाल गौरतलब है कि पूर्ववर्ती सपा सरकार में उप्र लोक सेवा आयोग की गतिविधियों पर लगातार सवाल उठते रहे। योगी सरकार के प्रवक्ता का कहना है कि उस कालखंड में आयोग की विश्वसनीयता, पारदर्शिता एवं सत्यनिष्ठा पूरी तरह से ध्वस्त थी। आरोप लगाया कि उस समय आपराधिक इतिहास वाले व्यक्ति को आयोग का अध्यक्ष बनाया गया था, जिन्हें इलाहाबाद उच्च न्यायालय द्वारा बर्खास्त किया गया था। इसी तरह अनर्ह विभागीय अधिकारी को आयोग के सचिव पद पर तैनात किया गया था। उच्च न्यायालय द्वारा उन्हें भी पद से हटाया गया था। प्रवक्ता का कहना है कि वर्ष 2012 से 2017 तक आयोग द्वारा जो भी चयन हुये थे उनमें गंभीर शिकायतों के दृष्टिगत सीबीआई द्वारा जांच की जा रही है। इसके अलावा वर्ष 2016 में आरओ एवं एआरओ प्रारम्भिक परीक्षा का प्रश्नपत्र लीक हुआ था, जिसके कारण वर्तमान सरकार द्वारा उस परीक्षा को निरस्त कर पुनः परीक्षा कराने का निर्णय लिया गया। इसी तरह आयोग के इतिहास में पहली बार पीसीएस-2015 की प्रारम्भिक परीक्षा का प्रश्नपत्र लीक हुआ था। प्रवक्ता का कहना है कि पिछली सरकार के पांच साल के कार्यकाल में आयोग से करीब 26 हजार अभ्यर्थियों का चयन किया गया था। वहीं, वर्तमान सरकार के केवल तीन साल में ही 26103 अभ्यर्थियों का चयन कर लिया गया है, जबकि इस कालखंड का काफी समय कोरोना संकट से प्रभावित रहा।

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