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UP पुलिस ने KGMU से दिल्ली पहुंचाया लीवर, मात्र डेढ़ घंटे में ग्रीन कॉरीडोर बनाकर
लखनऊ. बुधवार को यूपी पुलिस के एक कदम ने खाकी की वर्दी में चार चांद लगा दिए। एक ब्रेन डेड महिला के लीवर को मात्र डेढ़ घंटे में लखनऊ स्थित किंग जॉर्ज मेडिकल यूनिवर्सिटी (केजीएमयू) से दिल्ली पहुंचा दिया। शाम 4.28 बजे केजीएमयू से लीवर को लेकर डॉक्टरों की टीम एयर एम्बुलेंस के माध्यम से शाम 6 बजे दिल्ली स्थित इंस्टीट्यूट ऑफ लीवर एंड बिलिअरी साइंसेज पहुंची। यहां पहुंचते ही डॉक्टरों की टीम लीवर प्रत्यारोपण में जुट गई। आगे पढ़िए केजीएमयू से मात्र 24 मिनट में पहुंचाया अमौसी एयरपोर्ट…
-बताते चलें कि केजीएमयू के शताब्दी हॉस्पिटल से अमौसी एयरपोर्ट तक की दूरी 28 किलोमीटर है। यहां पहुंचने में आमतौर पर एक घंटे से अधिक समय लगता है, लेकिन पुलिस ने ग्रीन कॉरीडोर तैयार करके महज 24 मिनट में एयरपोर्ट पहुंचा दिया। ऐसे में सिर्फ डेढ़ घंटे में ही लीवर को लखनऊ से दिल्ली पहुंचा दिया गया। लीवर डोनेट महिला के भाई डॉ. आलोक सक्सेना ने किया है, जो वर्तमान में स्वास्थ्य विभाग की डिस्पेंसरी में तैनात हैं।
ऐसे तैयार किया गया था ग्रीन कॉरीडोर का मैप…
-एसपी ट्रैफिक के मुताबिक, रूट मैप के हिसाब से केजीएमयू से अमौसी एयरपोर्ट की दूरी 28 किलोमीटर है।
-ग्रीन कॉरीडोर बनाने के लिए केजीएमयू से हजरतगंज, राजभवन, अहिमामऊ और शहीदपथ होते हुए एयरपोर्ट ले जाने का रूट मैप तैयार किया गया।
-इसके लिए हर चेक प्वाइंट और चौराहों पर दो-दो पुलिसकर्मियों की तैनाती की गई थी।
-इसके साथ ही इस कार्य में सभी सीओ और एसपी स्तर के अधिकारी लगे थे।
-एम्बुलेंस के आगे एक इंटरसेप्टर लगी थी, जो ट्रैफिक को क्लीयर करते हुए आगे बढ़ रही थी।
-महज 24 मिनट में एयरपोर्ट लीवर को पहुंचा दिया गया।
बहन के ब्रेन डेड के बाद भाई डॉक्टर ने किया लीवरऔर कॉर्निया डोनेट
-त्रिवेणीनगर निवासी 55 वर्षीय महिला विनीता सक्सेना किडनी की मरीज थी।
-विनीता सक्सेना नवोदय विद्यालय कानपुर देहात में शिक्षिका थी।
-अविवाहित होने की वजह से वह अपने भाई डॉ. आलोक कुमार के साथ रहती थी।
-डॉ. आलोक कुमार पीएमएस कैडर में स्वास्थ्य विभाग की डिस्पेंसरी पर तैनात हैं।
-विनीता को दो माह पूर्व ही किडनी की बीमारी का पता चला था।
-बीमारी का पता चलने के बाद दिल्ली में उनका इलाज चल रहा था, आगे किडनी ट्रांसप्लांट होना था।
-बीते गुरुवार रात एक बजे के दौरान सांस लेने में दिक्कत की वजह से उन्हें अलीगंज स्थित नीरा नर्सिंग होम में भर्ती कराया गया था।
-वहां पर 72 घंटे तक वेंटीलेटर पर रहने के दौरान उनका ब्रेन डेड हो गया।
-ब्रेन डेड होने के बाद डॉक्टरी पेशे से जुड़े होने की वजह से ऑर्गन ट्रांसप्लांट के महत्व को देखते हुए डॉ. आलोक ने ऑर्गन डोनेट का निर्णय लिया।
-आलोक कुमार ने गैस्ट्रोइट्रोलॉजी विभाग के डॉ. अभिजीत चन्द्रा से संपर्क किया।
-अभिजीत चन्द्रा ने पहले एसजीपीजीआई से संपर्क किया, लेकिन पीजीआई ने इनकार कर दिया।
-वहां से इनकार होने के बाद डॉ. अभिजीत चन्द्रा ने दिल्ली स्थित आईएलबीएस से संपर्क किया।
-विनीता सक्सेना की किडनी खराब होने से लीवर और दोनों कॉर्निया निकाली गई।
विशेष बॉक्स में रखकर ले जाया गया लीवर
-लीवर निकालने के बाद उसे एक लाल रंग के विशेष बाक्स में रखा गया।
-इस बॉक्स में ऑर्गन प्री-जर्वेटिव सॉल्यूशन और बर्फ के मिश्रण में लीवर को रखा गया।
-ऑर्गन डोनेट के बाद लीवर की 6 घंटे और किडनी की 24 घंटे की लाइफ होती है।
-लीवर निकालने के बाद डॉ. अभिजीत चन्द्रा और डॉ. विवेक गुप्ता साथ दिल्ली गए हैं।
-दिल्ली पहुंचने के बाद डॉ. अभिजीत चन्द्रा वहां पर ट्रांसप्लांट की टीम में शामिल होंगे।
क्या होता है ग्रीन कॉरीडोर
-ग्रीन कॉरीडोर मानव अंग को एक निश्चित समय के भीतर एक स्थान से दूसरे स्थान पर भेजने के लिए बनाया जाता है।
-यह उस वक्त बनाया जाता है कि जब आपात स्थिति में किसी मरीज का इलाज चल रहा हो।
-वर्तमान में यह व्यवस्था बेंगलुरु, दिल्ली, कोची, चेन्नई और मुंबई में उपलब्ध है।
-लेकिन लखनऊ की पुलिस ने किंग जॉर्ज मेडिकल कॉलेज की अपील पर यह ग्रीन कॉरीडोर बनाया।
-इसमें पुलिस उस पूरे रूट को खाली करवाती है, जिसमें से एम्बुलेंस को गुजरना होता है।
-एम्बुलेंस के आगे पुलिस की गाड़ी चलती है, ताकि उसकी स्पीड में कोई ब्रेक न लगे, इसलिए इस प्रक्रिया को “ग्रीन कॉरीडोर” नाम दिया गया है।
-यदि फ्लाइट के जरिए उस ऑर्गन को ले जाया जाता है तो एयरपोर्ट अथॉरिटी को भी मदद के लिए कहा जाता है।
-एम्बुलेंस के आगे पुलिस की गाड़ी चलती है, ताकि उसकी स्पीड में कोई ब्रेक न लगे, इसलिए इस प्रक्रिया को “ग्रीन कॉरीडोर” नाम दिया गया है।
-यदि फ्लाइट के जरिए उस ऑर्गन को ले जाया जाता है तो एयरपोर्ट अथॉरिटी को भी मदद के लिए कहा जाता है।
-इस ग्रीन कॉरीडोर की कमान एसपी वेस्ट सर्वेश मिश्रा के हाथ में थी।
इससे पूर्व भी बनाया जा चुका है ग्रीन कॉरीडोर
-केजीएमयू के ऑर्गन ट्रांसप्लांट टीम के डॉ. मनमीत सिंह के मुताबिक, 2015 में एक मरीज प्रमोद साहनी जिसका ब्रेन मृत घोषित हो चुका था।
-उसका कॉर्निया, किडनी और लीवर दिल्ली में एक मरीज को प्रत्यर्पित किया जाना था।
-इसके लिए मरीज के पिता राम नयन और भाई तैयार हो गए थे और उन्होंने लिखित अपनी सहमति दी थी।
-इसके बाद पुलिस से संपर्क कर ग्रीन कॉरीडोर बनाकर भेजा गया था।
यह केजीएमयू निकला चौथा ऑर्गन है, जो ट्रांसप्लांट के लिए बाहर भेजा गया है।
आम आदमी भी ले सकता है ग्रीन कॉरीडोर की मदद
एसपी ट्रैफिक हबीबुल हसन ने बताया कि मरीज का जीवन बचाने के लिए न केवल संस्थान, बल्कि आम आदमी भी ग्रीन कॉरीडोर की मदद ले सकता है। इसके लिए शर्त है कि दो घंटे पूर्व एसपी ट्रैफिक को सूचना देनी होगी, ताकि तैयारी की जा सके। इसके लिए 9454401085 नंबर पर संपर्क कर सकते हैं। ये सुविधा अभी केवल लखनऊ में उपलब्ध है।